गौरतलब हो कि एकनाथ शिंदे ने पिछले साल जून में तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत कर दी थी जिसके बाद शिवसेना दो गुटों में बंट गई। इस विद्रोह के बाद महाराष्ट्र में ठाकरे की अगुवाई वाली सरकार गिर गई थी और शिंदे बीजेपी के समर्थन से राज्य के मुख्यमंत्री बन गए थे।
इस के बाद शिंदे समूह ने शिवसेना पर दावा किया और खुद को असली शिवसेना बताते हुए चुनाव आयोग और देश की शीर्ष कोर्ट में क़ानूनी लड़ाई शुरू की। तब चुनाव आयोग ने उद्धव ठाकरे गुट को ‘शिवसेना-उद्धव बालासाहेब ठाकरे’ और मशाल निशान दिया था, वहीं एकनाथ शिंदे गुट को ‘बालासाहेबबांची शिवसेना’ और ढाल-तलवार निशान आवंटित किया था।
चुनाव आयोग ने 8 अक्टूबर को एक अंतरिम आदेश पारित किया, जिसमें दोनों खेमे को ‘शिवसेना’ पार्टी के नाम और उसके चिन्ह का उपयोग करने से रोक दिया गया। आयोग ने आदेश में कहा था कि जब तक कि यह तय नहीं हो जाता कि दो प्रतिद्वंद्वी गुटों में से कौन असली शिवसेना है, तब तक पार्टी के नाम और निशान के इस्तेमाल पर रोक लागू रहेगी।