एफआईआर के मुताबिक, छह महिलाएं बेहद कम कपड़े पहनकर उत्तेजक डांस कर रही थीं, जबकि कुछ लोग उन पर 10 रुपये के नकली नोट बरसा रहे थे। बेहद कम कपड़े पहनकर महिलाये डांस कर रहीं थी और कथित तौर पर अश्लील इशारे भी कर रही थीं। पुलिस को परिसर में शराब की तीन बोतलें भी मिलीं थी। जिसके बाद पुलिस ने अश्लीलता से जुड़ी भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराओं के तहत गिरफ्तारियां की।
जस्टिस विनय जोशी और जस्टिस वाल्मिकी एसए मेनेजेस ने सुनवाई के दौरान कहा कि छोटी स्कर्ट पहनना, उत्तेजक डांस करना, या ऐसे इशारे करना, जिन्हें पुलिस अधिकारी अश्लील कृत्य मानते हैं, उसको अश्लीलता नहीं कहा जा सकता और यह किसी को परेशान करने वाला भी नहीं था। कोर्ट ने माना कि वह इस मामले में प्रगतिशील रुख अपनाएगी और ऐसे फैसले केवल पुलिस अधिकारियों के विवेक पर नहीं छोड़ेगी।
पीठ ने कहा कि वर्तमान भारतीय समाज स्वीकार करता है कि महिलाएं अंग प्रदर्शन वाले कपड़े, स्विमवीयर या इसी तरह की पोशाक पहन सकती हैं, सेंसरशिप पास करने वाली फिल्मों में यह बात स्पष्ट है। साथ ही किसी को परेशान किए बिना लोगों की आंखों के सामने आयोजित होने वाली सौंदर्य प्रतियोगिताये भी यही बताती हैं। इसलिए कोर्ट ने पाया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 294 (अश्लीलता) इस (याचिकाकर्ता की) स्थिति में लागू नहीं होती है।
आरोपी व्यक्तियों ने तर्क दिया कि उनके ऊपर आईपीसी की धारा 294 के तहत दर्ज एफआईआर सही नहीं है, क्योंकि इसमें कथित अश्लील कृत्यों से किसी के नाराज होने का सवाल नहीं उठता है। इसके अतिरिक्त, डांस एक रिसॉर्ट के बैंक्वेट हॉल के भीतर हुआ, जो न तो सार्वजनिक स्थान था और न ही आम जनता के पहुंच में था।
अपीलकर्ताओं की दलीलों से सहमत होकर कोर्ट ने एफआईआर को खारिज कर दिया और निष्कर्ष निकाला कि निश्चित रूप से आईपीसी की धारा 294 के प्रावधान इस मामले पर लागू नहीं होते है।