नागपुर शहर और ग्रामीण दोनों इलाकों समेत नागपुर जिले में स्कूली बच्चों को लाने और ले जाने के लिए परिवहन विभाग में करीब 3 हजार 464 वैन और बसें पंजीकृत हैं। इनमें से 1 हजार 348 वाहनों के पास जरूरी फिटनेस सर्टिफिकेट नहीं हैं।
बता दें कि नियम के मुताबिक, एक गाड़ी में 10 से ज्यादा स्टूडेंट्स (यदि वे 12 साल से कम उम्र के हैं) नहीं ले जा सकते हैं, जबकि ऑटो में अधिकतम पांच स्टूडेंट्स ही होने चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में इसी तरह के आदेश जारी किए थे। लेकिन आरटीओ और ट्रैफिक पुलिस दोनों की आलस्य की वजह से इन नियमों का पालन नहीं हो पा रहा है।
टीओआई की रिपोर्ट के मुताबिक, कई ऐसे निजी वाहन, कार और यहां तक कि हजारों की संख्या में ऑटो भी हैं जो पंजीकृत नहीं हैं और वे बच्चों को स्कूलों से घर वापस ले जाती हैं। उनमें से ज्यादातर में स्कूली बच्चे क्षमता से अधिक भरे होते हैं। परिवहन विभाग, जो बच्चों की स्कूल बसों में यात्रा सुनिश्चित करता है, इस गंभीर मुद्दे पर अनदेखा कर रहा है। हालांकि क्षेत्रीय परिवहन विभाग के पूर्वी, शहरी और ग्रामीण कार्यालयों में बच्चों को ले जाने वाली बसों और वैन के आंकड़े हैं, लेकिन नागपुर शहर के स्कूलों में स्टूडेंट्स को ले जाने वाले ऑटो की संख्या के बारे में कोई डेटा मौजूद नहीं है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक यह संख्या 8,000 से 10,000 के बीच हो सकती है।
इस मामले में पिछले महीने पुलिस कमिश्नर अमितेश कुमार ने फिटनेस सर्टिफिकेट मानदंडों का पालन करने के लिए बसों और वाहनों के लिए 15 सितंबर की समय सीमा तय की थी। समय सीमा से एक वीक पहले, न तो शहर की पुलिस और न ही परिवहन विभाग ने वाहनों में स्कूली बच्चों को ले जाने वाले ड्राइवरों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की। हालांकि डिप्टी आरटीओ रवींद्र भुयार ने उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई का भरोसा दिया। उन्होंने कहा कि किसी को भी माफ नहीं किया जाएगा।