धीरे-धीरे आत्मनिर्भरता
ठक्कर ने कहा कि सरसों की तरह अन्य तिलहनों की उपज बढ़ी तो खाद्य तेल के मामले में भारत धीरे-धीरे आत्म निर्भर बन सकता है। घरेलू जरूरतें पूरी करने के लिए फिलहाल 30 से 35 प्रतिशत खाद्य तेल आयात करना पड़ता है। सबसे ज्यादा आयात पाम ऑयल व सन फ्लावर का होता है। मांग-आपूर्ति में फासला बढऩे का बेजा फायदा विदेश में बैठे सटोरिए उठाते हैं। भारत सहित विकासशील देशों में जिन चीजों-उत्पादों की मांग बढ़ती है, उनमें जम कर सट्टेबाजी होती है।
सही दाम…किसान तैयार
ठक्कर ने कहा कि तिलहनों की खेती को सरकार प्रोत्साहन दे रही है। पिछले कुछ साल में तिलहनी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ा है। उपज का सही दाम मिलने पर किसान तिलहनों की खेती का दायरा बढ़ाएंगे। यही वह तरीका है जिससे खाद्य तेलों के मामले में भारत आत्म निर्भर बनेगा।
एक लाख करोड़ की बचत
घरेलू जरूरत पूरी करने के लिए भारत लगभग एक लाख करोड़ रुपए का खाद्य तेल आयात करता है। विदेशी किसानों को इसका फायदा होता है। नीतिगत समर्थन से तिलहनों की पैदावार बढ़ाई जा सकती है। जानकारों का कहना है कि इससे दो फायदे होंगे। एक तरफ बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा बचेगी। दूसरी तरफ उपज की वाजिब कीमत मिलने से किसानों की आमदनी बढ़ेगी।
सरसों का रकबा बढ़ा
पिछले साल छह जनवरी तक 88.42 लाख हेक्टेयर में सरसों की बुवाई हुई थी। फसली सीजन 2021-22 में 101.97 लाख टन लक्ष्य के मुकाबले 117.46 लाख टन सरसों की पैदावार हुई थी। चालू साल में सरसों की खेती का रकबा सात लाख हेक्टेयर बढ़ा है। सरसों उपज बढऩे की उम्मीदें इसी पर आधारित हैं। वैसे भारत में सरसों की खेती का औसत दायरा 63.46 लाख हेक्टेयर है। औसत के मुकाबले सरसों की बुवाई 32 लाख हेक्टेयर ज्यादा हुई है।