scriptMarathwada Liberation Day 2022: मराठवाड़ा मुक्ति संग्राम दिन कब है? जानिए इससे जुड़ा रोचक इतिहास और महत्व | Marathwada Liberation Day 2022 Date, History and Significance About Marathwada Mukti Sangram Din | Patrika News
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Marathwada Liberation Day 2022: मराठवाड़ा मुक्ति संग्राम दिन कब है? जानिए इससे जुड़ा रोचक इतिहास और महत्व

Marathwada Liberation Day 2022 History, Significance: निजाम के शासन में हैदराबाद राज्य में आज का पूरा तेलंगाना, महाराष्ट्र में मराठवाड़ा क्षेत्र जिसमें औरंगाबाद, बीड, हिंगोली, जालना, लातूर, नांदेड़, उस्मानाबाद, परभणी के साथ आज के कर्नाटक के कलबुर्गी, बेल्लारी, रायचूर, यादगिर, कोप्पल, विजयनगर और बीदर जिले शामिल थे।

मुंबईSep 16, 2022 / 06:11 pm

Dinesh Dubey

Marathwada Mukti Sangram Din

मराठवाड़ा मुक्ति दिवस 2022 का इतिहास और महत्त्व

Marathwada Mukti Sangram Din History, Significance: मराठवाड़ा मुक्ति दिवस (Marathwada Liberation Day) हर साल 17 सितंबर को महाराष्ट्र में बड़े धूमधाम और जोश के साथ मनाया जाता है। इसे मराठवाड़ा मुक्ति संग्राम दिवस के रूप में भी जाना जाता है. यह दिन खासतौर पर भारतीय सैनिकों द्वारा हैदराबाद रियासत को हराने के बाद भारतीय संघ के साथ मराठवाड़ा के एकीकरण की याद दिलाता है। इसके पीछे एक लंबा इतिहास है। सरकार इस दिन को मनाने के लिए ध्वजारोहण समारोह जैसे कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करती है। आगे हम आपको इस विशेष दिन से जुड़े ऑपरेशन पोलो (Operation Polo) और हैदराबाद के विलय का इतिहास बताएंगे।
हैदराबाद रियासत के भारतीय संघ में ऐतिहासिक विलय के उपलक्ष्य में 17 सितंबर को हैदराबाद मुक्ति दिवस मनाया जाता है। ‘ऑपरेशन पोलो’ के नाम से प्रसिद्ध यह दिवस पुलिस कार्रवाई का द्योतक है। इसी दिन 1948 में निजाम के दमनकारी शासन का अंत हुआ था।

निजाम के शासन से मिली आजादी

भारत को अंग्रेजों से आजादी मिलने के एक साल से भी अधिक समय बाद, 17 सितंबर 1948 को हैदराबाद निजाम के शासन से आजाद हुआ। निजाम के शासन में हैदराबाद राज्य में आज का पूरा तेलंगाना, महाराष्ट्र में मराठवाड़ा क्षेत्र जिसमें औरंगाबाद, बीड, हिंगोली, जालना, लातूर, नांदेड़, उस्मानाबाद, परभणी के साथ आज के कर्नाटक के कलबुर्गी, बेल्लारी, रायचूर, यादगिर, कोप्पल, विजयनगर और बीदर जिले शामिल थे।

संघर्ष में किसानों ने दिया बड़ा योगदान-

1947 में शेष भारत के स्वतंत्र होने के बाद भी हैदराबाद राज्य के लोगों को स्वाधीनता के लिए और 13 महीने की प्रतीक्षा करनी पड़ी थी। इस अवधि में आम लोगों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और किसानों ने अपने अधिकारों की रक्षा के लिए सशस्त्र संघर्ष किया। दुनिया में एकमात्र यही ऐसा संघर्ष है जिसमें किसानों को अपनी जमीन पर उचित अधिकार पाने के लिए हथियार उठाने पड़े।

सरदार वल्लभभाई पटेल ने चलाया ‘ऑपरेशन पोलो’

दरअसल भारत की आजादी के बाद हैदराबाद रियासत को भारत में मिलाने का संघर्ष मुखर हो गया। वंदे मातरम् गाते हुए लोगों की अपने आप भागीदारी बढ़ती गयी और इसके भारतीय संघ में विलय की मांग के साथ यह संघर्ष एक विशाल जन आंदोलन में तब्दील हो गया। हैदराबाद की मुक्ति भारत के प्रथम गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल के ऑपरेशन पोलो के तहत त्वरित और समय पर की गई कार्रवाई के कारण संभव हुई थी।
तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने हैदराबाद राज्य के भारतीय संघ में विलय को पुलिसिया कार्रवाई का आदेश देकर वास्तविकता बना दिया। यह सपना तभी हकीकत बना, जब भारतीय सेना ने निजाम शासन और उनकी निजी सेना के राजाकारों के खिलाफ पांच दिनों तक पुलिस कार्रवाई की। अभियान के अंत में आसफ जाह वंश के अंतिम निज़ाम, मीर उस्मान अली खान ने 1948 में आज ही के दिन विलय समझौते पर हस्ताक्षर किये। इस वजह से महाराष्ट्र और कर्नाटक की राज्य सरकारें आधिकारिक तौर पर 17 सितंबर को मुक्ति दिवस के रूप में मनाती हैं। यह दिन मराठवाड़ा के लिए कई मायनों में स्वतंत्रता दिवस भी माना जाता है।

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