इस पृष्ठभूमि में मोहन भागवत के ब्राह्मणों के बारे में दिए गए बयान से राजनीति गर्म होने की संभावना है। अब ब्राह्मण महासंघ ने भी भागवत के बयान की आलोचना की है। आरएसएस प्रमुख ने शुक्रवार को नागपुर में एक पुस्तक विमोचन समारोह में कहा कि वर्ण और जाति जैसी अवधारणाओं को पूरी तरह से त्याग दिया जाना चाहिए। जाति व्यवस्था की अब कोई प्रासंगिकता नहीं है।
उन्होंने कहा, पहले जो गलतियां हो चुकी हैं, उन पर ब्राह्मणों को प्रायश्चित कर लेना चाहिए। पूर्वजों की गलतियों को मान लेने में कोई हर्ज नहीं है। पहले ब्राह्मण जन्म से नहीं कर्म से हुआ करते थे। भागवत ने कहा कि सामाजिक समानता भारतीय परंपरा का एक हिस्सा थी, लेकिन इसे भुला दिया गया और इसके हानिकारक परिणाम हुए। उन्होंने दावा किया कि वर्ण और जाति व्यवस्था में मूल रूप से भेदभाव नहीं था और इसके उपयोग थे, भागवत ने कहा कि अगर आज किसी ने इन संस्थानों के बारे में पूछा, तो जवाब होना चाहिए कि ‘‘यह अतीत है, इसे भूल जाओ।’’ उन्होंने कहा, ‘‘जो कुछ भी भेदभाव का कारण बनता है उसे खत्म कर दिया जाना चाहिए।’’
इस बीच, ब्राह्मण संघ ने मोहन भागवत के बयान पर कड़ी आपत्ति जताई है। ब्राह्मण महासंघ के अध्यक्ष आनंद दवे ने कहा “उनका बयान गलत है और अधूरे अध्ययन पर आधारित है। उस समय कुछ ब्राह्मणों ने गलती की होगी, तब ब्राह्मण समुदाय के कुछ लोगों ने उनका विरोध भी किया। लेकिन उन्होंने बिना यह कहे ब्राह्मणों को पूर्वजों के पाप का प्रायश्चित करने के लिए कहा।”
उन्होंने कहा “मोहन भागवत को पापों को धोने की आवश्यकता है। आप यहां हिंदू हत्यारों को सौंपने का पाप करने की सोच रहे हैं। आपको प्रायश्चित करना चाहिए। आप देश में जातिवाद बढ़ा रहे हैं।“