हस्तक्षेप करने से कोर्ट का इनकार
बॉम्बे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय और जस्टिस अमित बोरकर की खंडपीठ ने कहा कि सरकार को किस प्रकार की योजना बनानी चाहिए, इसमें हम हस्तक्षेप नहीं कर सकते है। यह एक नीतिगत निर्णय है, इसलिए हम तब तक हस्तक्षेप नहीं कर सकते जब तक कि किसी के मौलिक अधिकार का उल्लंघन न हो।
सरकार का हर फैसला राजनीतिक होता है- कोर्ट
जनहित याचिका में दावा किया गया है कि यह योजना राजनीति से प्रेरित है। असल में सरकार इस योजना के जरिये मतदाताओं को रिश्वत देने का प्रयास कर रही है। याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि करदाताओं के पैसे का इस्तेमाल ऐसी योजनाओं के लिए नहीं किया जाना चाहिए। पीठ ने जनहित याचिका को खारिज करते हुए कि याचिकाकर्ता को मुफ्त और सामाजिक कल्याण योजना के बीच अंतर करना होगा। हालांकि मुख्य न्यायाधीश उपाध्याय ने यह भी कहा कि यह हमारे लिए लुभावना हो सकता है… सरकार का हर फैसला राजनीतिक होता है।
‘व्यक्तिगत रूप से भले ही सहमत हो, लेकिन…’
याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि लाडकी बहिण योजना (Ladki Bahin Yojana) महिलाओं के बीच भेदभाव करती है, क्योंकि इसका फायदा वे ही उठा सकते है जिनकी वार्षिक पारिवारिक आय 2.5 लाख रुपये से कम है। इस पर पीठ ने सवाल किया कि 2.5 लाख रुपये प्रति वर्ष कमाने वाली महिला की तुलना 10 लाख रुपये प्रति वर्ष कमाने वाली महिला से कैसे की जा सकती है। समानता की मांग समान लोगों के बीच की जानी चाहिए। हाईकोर्ट ने कहा कि यह योजना बजटीय प्रक्रिया के बाद शुरू की गई थी। योजना के लिए धन का आवंटन बजट में किया गया है। बजट बनाना एक विधायी प्रक्रिया है। पीठ ने कहा कि भले ही हम व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता से सहमत हो, लेकिन कानूनी रूप से हस्तक्षेप नहीं कर सकते है। याचिकाकर्ता पर कोर्ट द्वारा कोई जुर्माना नहीं लगाया गया।