आश्रय गृह के प्रमुख शाहाजी चव्हाण ने बताया कि फिलहाल इस आश्रय गृह में करीब 110 लड़कियां और महिलाएं हैं और इनमें से ज्यादातर को बीमारी की हालत में यहां लाया गया था और वे बेड से उठने की भी हालत में नहीं थीं। ये सभी अनाथ हैं। इन लोगों को उन्हें पुणे और मुंबई जैसे बड़े शहरों से लाया गया है।
शाहाजी चव्हाण ने आगे कहा कि ये सभी लोग मानसिक रूप से ठीक नहीं हैं और वे अपने बारे में कुछ बता नहीं सकतीं है। इनमें से करीब 30 ऐसी हैं जिन्हें ये तक नहीं पता चल पाता कि उन्हें शौचालय जाने की जरूरत है। समय के साथ लड़कियों ने पढ़ना शुरू किया और इनमें से करीब 60 अब साक्षर हैं। हमने इन लड़कियों की रुचि वाले क्षेत्रों की पहचान करने की कवायद में उन्हें अलग-अलग प्रकार की गतिविधियों में शामिल करने का फैसला किया।
चव्हाण ने कहा कि इस दौरान हमें पता चला कि इनमें से 12 लड़कियां मिट्टी को आकार देकर उन्हें अच्छी तरह आकृतियों में ढाल रही हैं। इसके बाद इन लड़कियों ने भगवान गणेश की मूर्तियां बनानी शुरू कर दीं। इन लड़कियों को आश्रय गृह के दो लोगों ने मूर्तियां बनाने की कला सिखाई। हम हर साल करीब 400 मूर्तियां बनाने की कोशिश करते हैं, लेकिन उनमें से सिर्फ 200 के आसपास ही बाजार तक पहुंच पाती हैं।
बता दें कि महाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिला परिषद के सामाजिक न्याय विभाग के दिव्यांग प्रकोष्ठ के प्रमुख भरत कांबले ने बताया कि आश्रय गृह में रहने वाली महिलाओं का कोई रिश्तेदार नहीं है। इन महिलाओं द्वारा बनाई गई मूर्तियां उतनी ही खूबसूरत हैं जितनी किसी पेशवर मूर्तिकार की होती हैं। इससे यकीनन लड़कियों के जीवन स्तर में सुधार लाने में बहुत मदद मिलेगी।