‘तेरे जैसे च्वाईस की मैं आईस्क्रीम न रखूं’, जैसे कुछ डॉयलाग फिल्म को रोचक बनाते हैं। फिल्म के डायलाग अच्छे हैं, खासकर के दलजीत जितने पल फ्रेम में रहे हैं, उनके अंदाज ने दर्शकों को मजे से भरा है।
अक्षय ने वरुण और करीना दीप्ती के किरदार में जान डाल दी है। हनी के रोल में दिलजीत दर्शकों का दिल जीतने में सफल हुए हैं। कियारा ने भी अपनी बेहतर अदाकारी की झलक दर्शकों को दिखाई है। इन चार लोगों को केंद्र में रखकर बनाई गई इस फिल्म में हर किसी ने अपना रोल बखूबी निभाया है। हर फ्रेम में लोग बेहतर लगे हैं। फिल्म के दूसरे भाग में सभी कलाकारों ने दर्शकों के मन को छूने में सफलता पाई है।
कहानी इंट्रेस्टिंग है और डायरेक्टर ने कहानी के साथ पूरी तरह से न्याय किया है। फर्स्ट हाफ एंटरटेनिंग है, यह हर किसी को पसंद आएगी, पर रिलेट कितने कर पाएंगे कहा नहीं जा सकता। ऐसा नहीं है कि इसे बनाने में कहीं चूक हुई है। डायरेक्शन बहुत अच्छा है। पहले हाफ में कहानी आम दर्शकों को पकड़ नहीं पाती, यह एक अलग वर्ग को ही लुभाती है। दूसरे हाफ में डायरेक्टर ने कहानी में से आम और खास को बाहर कर दिया है, जिससे कहानी हर तरह के दर्शकों को पकड़ लेती है। अंत के लगभग 25 मिनट के इमोशनल सीन बहुत अच्छे से प्रजेंट किए हैं। संवाद बढिय़ां हैं और गीत-संगीत औसत है।
मूवी में समाज में बच्चे की अहमियत से शुरू होती है। इसमें अजन्में और जन्में बच्चे से माता-पिता का प्रेम, जुड़ाव दिखाया गया है। इसमें साथी कैसे हों, यह बिना कहे भी कहा गया है। अच्छी कहानी, मजेदार संवाद और बेहतर अदाकारी के चलते यह फिल्म एक बार देखी जा सकती है।