मुख्य न्यायाधीश डी के उपाध्याय और न्यायमूर्ति आरिफ डॉक्टर की खंडपीठ ने कहा कि राज्य सरकार ने अभी तक माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम 2007 के अनुसार बनाए गए नियमों के तहत गठित होने वाली परिषद में सदस्यों की नियुक्ति नहीं की है।
इस पर मुख्य न्यायाधीश उपाध्याय ने चुटकी लेते हुए कहा, “आप कोर्ट की बात नहीं मानते, कम से कम संसद की बात तो सुनो!” मालूम हो कि केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण पर 16 साल पुराना कानून संसद द्वारा बनाया गया था।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को अधिनियम के कार्यान्वयन पर राज्य परिषद, जिला समितियों/जिला समन्वय-सह निगरानी समितियों के संबंध में डिटेल्स देने का निर्देश दिया है। पीठ ने राज्य सरकार से इस कानून के विभिन्न प्रावधानों को लागू करने के लिए उठाए गए कदमों का ब्योरा देते हुए एक हलफनामा दाखिल करने को भी कहा है।
निलोफर अरमानी ने हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की थी, जिस पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की। याचिककर्ता ने राज्यभर में वृद्धाश्रमों के लाइसेंस, पंजीकरण और प्रबंधन के लिए विस्तृत दिशानिर्देश तैयार करने की मांग की है। जनहित याचिका में वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल और सुरक्षा के लिए राज्य के सामाजिक न्याय और विशेष सहायता विभाग द्वारा अधिसूचित 2010 नियमों के प्रभावी कार्यान्वयन की भी मांग की गई। कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई 9 जनवरी तक के लिए टाल दिया है।