महाराष्ट्र के स्पीकर राहुल नार्वेकर ने अपना फैसला पढ़ते हुए कहा, शिवसेना प्रमुख के तौर पर अकेले उद्धव ठाकरे के पास एकनाथ शिंदे को पार्टी नेता के पद से हटाने का अधिकार नहीं था। यह फैसला राष्ट्रीय कार्यकारिणी ही कर सकती है। चुनाव आयोग के रिकॉर्ड में शिंदे गुट ही असली शिवसेना है। पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का स्थान सबसे ऊपर है। इसलिए एकनाथ शिंदे को हटाने का अधिकार उद्धव ठाकरे को नहीं है।
अपने फैसले में राहुल नार्वेकर ने कहा, “दोनों पार्टियों (शिवसेना के दो गुट) द्वारा चुनाव आयोग को सौंपे गए संविधान पर कोई सहमति नहीं है। दोनों दलों के नेतृत्व संरचना पर अलग-अलग दृष्टिकोण हैं… मुझे विवाद से पहले मौजूद नेतृत्व संरचना को ध्यान में रखते हुए प्रासंगिक संविधान तय करना होगा।”
उन्होंने कहा, “शिवसेना के 2018 संशोधित संविधान को वैध नहीं माना जा सकता क्योंकि यह भारत के चुनाव आयोग के रिकॉर्ड में नहीं है…रिकॉर्ड के अनुसार, मैंने वैध संविधान के रूप में शिव सेना के 1999 के संविधान को ध्यान में रखा है।” उन्होंने कहा, “21 जून 2022 को जब प्रतिद्वंद्वी गुट बना तब शिंदे गुट ही असली शिवसेना राजनीतिक दल था।”
शिवसेना विधायकों की अयोग्यता मामले पर स्पीकर राहुल नार्वेकर ने कहा, “विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग करने वाली सभी याचिकाएं खारिज की जाती हैं। शिवसेना के किसी भी गुट का कोई भी विधायक अयोग्य नहीं है।” विधानसभा अध्यक्ष ने भरत गोगावले को मुख्य सचेतक नियुक्त किये जाने को वैध माना है।
मालूम हो कि एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के अधिकांश विधायकों के जून 2022 में बगावत का बिगुल फूंका और भगवा पार्टी दो धड़ों में बंट गई। इसके चलते उद्धव ठाकरे नीत तत्कालीन महाराष्ट्र विकास आघाडी (एमवीए) सरकार गिर गई थी। इसके बाद एकनाथ शिंदे बीजेपी के समर्थन से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने। जिसके बाद से दोनों गुट चुनाव आयोग से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पार्टी पर वर्चस्व जमाने की लड़ाई लड़ रहे हैं।
पिछले साल लंबी सुनवाई के बाद चुनाव आयोग ने एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाले धड़े को असली ‘शिवसेना’ नाम और चुनाव चिह्न ‘तीर धनुष’ आवंटित किया। जबकि उद्धव गुट को नया नाम शिवसेना (यूबीटी) और निशान ‘जलती मशाल’ मिला। अभी भी यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। हालांकि उद्धव गुट स्पीकर के आज के फैसले को भी शीर्ष कोर्ट में चुनौती दे सकता है।