2011 की जनगणना के मुताबिक, 26 लाख से अधिक जनसंख्या वाले बीड की 80 फीसदी से ज्यादा आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है। जिसमें से 50.33 किसान है और 28.39 खेतिहर मजदूर है। जिले की अधिकांश भूमि पथरीली है।
पानी नहीं, लेकिन 80% लोग खेती पर निर्भर
बीड जिले के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि है और अधिकांश कृषि बारिश पर निर्भर है। लेकिन यहां बारिश बहुत कम होती है और यह समय पर नहीं होती है। जिसके कारण अक्सर जिले में सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। जिले में आमतौर पर हर साल जून के दूसरे पखवाड़े से बारिश शुरू होती है और सितंबर के अंत तक रहती है। कभी-कभी अक्टूबर में भी बारिश हो जाती है। बीड में बारिश के बाद दिन-ब-दिन भूजल की गहराई बढ़ती जाती है। इससे हैंडपंप, कुएं, ट्यूबवेल आदि बेकार हो जाते हैं। सभी तालुकाओं में खेती के लिए कुएं के पानी का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
बीड नाम कैसे पड़ा?
मराठवाड़ा क्षेत्र के अन्य चार जिलों के साथ भीर जिला (Bhir District) पहले निज़ाम के शासन का हिस्सा था। 1956 में राज्यों के पुनर्गठन के बाद इस क्षेत्र को तत्कालीन बॉम्बे स्टेट में शामिल कर लिया गया। लेकिन 1960 में बॉम्बे स्टेट के महाराष्ट्र और गुजरात में विभाजन के बाद से मराठवाड़ा के अन्य जिलों के साथ भीर (अब बीड) महाराष्ट्र का हिस्सा बन गया। तारिख-ए-बीर (बीड का इतिहास) में उल्लेख है कि मुहम्मद बिन तुगलक ने शहर में और उसके आसपास किला और कई कुएं बनाने के बाद इसका नाम बीर (जिसका अरबी अर्थ कुआं है) रखा था। कहा जाता है कि तब बीड शहर में भूजल प्रचुर मात्रा में था और जब कुएँ बनाए जाते थे तो कुछ फीट नीचे ही पानी मिल जाता था।
बीड का पानी से गहरा नाता
हाल के दशकों में बीड में जल आपूर्ति की आधुनिक व्यवस्था आ गई और कुओं का उपयोग कम हो गया, परिणामस्वरूप कुएं या तो खुद नष्ट हो गए या फिर भाठ दिए गए। जिसके बाद से भूजल स्तर तेजी से गिरा और अब सैकड़ों फीट खोदने के बाद भी पानी नसीब नहीं हो रहा है। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि वर्तमान नाम ‘बीड’ कैसे प्रयोग में आया। इसके पीछे कई मान्यताएं हैं। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि बीड शब्द संस्कृत शब्द वेद से आया है, जिसका अर्थ “पवित्र ज्ञान” होता है। कहा जाता है कि बीड शहर प्राचीन काल से एक महत्वपूर्ण धार्मिक और शिक्षा केंद्र रहा है।
कुछ लोग यह भी मानते हैं कि बीड जिला बालाघाट रेंज के तलहटी पर स्थित है, मानों किसी बिल (छेद) की तरह। बिल (मराठी में बील) नाम ही समय के साथ बोलचाल में बिगड़कर बीड हो गया। हालांकि जिले का केवल उत्तर पूर्वी हिस्सा ही कम ऊंचाई पर है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार प्राचीन भारत के एक यवन (Yavana) शासक ने बहुत कम गहराई पर पानी खोजने के बाद इसका नाम भीर (फ़ारसी में इसका मतलब पानी के लिए) रखा और कालांतर में भीर बीड बन गया।
नदियां तो है लेकिन पानी नहीं!
गोदावरी जिले की एक महत्वपूर्ण नदी है और जिले के उत्तर में गेवराई और माजलगांव तालुका की सीमा से होकर बहती है। इसलिए गोदावरी के तट पर स्थित भूमि को छोड़कर बाकि कही अच्छी खेती नहीं हो पाती है। जिले की अन्य महत्वपूर्ण नदियाँ मंजरा, सिंदफणा, बिंदुसरा और वान हैं। ये सभी नदियाँ आमतौर पर गर्मियों में सूखी रहती हैं। इन नदियों में मार्च माह तक पानी रहता है। अच्छी बारिश होने पर कुछ नदियों में वर्षभर पानी रहता है, लेकिन ऐसा बहुत कम ही होता है।कुआं है समाधान?
बीड में कुओं का एक समृद्ध इतिहास रहा है। प्राचीन काल से ही ये कुएं न केवल पीने के पानी का स्रोत रहे हैं बल्कि सामाजिक और धार्मिक जीवन का भी महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं। विभिन्न ऐतिहासिक संस्कृतियों, सम्राटों और शासकों के शासनकाल के दौरान कुएं बनवाएं गए और ये जल संचयन के प्रमुख स्रोत बन गए। कुओं से क्षेत्र की जल भंडारण क्षमता बढ़ी और जल स्तर बढ़ गया। यहां आज भी सदियों पुराने कुएं हैं। जिनमें नारायणेश्वर कुआं, गंगासागर कुआं और सोमेश्वर कुआं प्रमुख हैं। लेकिन आज उस बीड की स्थिति बिल्कुल उलट हो गई है। जिस बीड में कभी भरपूर पानी हुआ करता था, वह आज पानी की कमी से जूझ रहा है और यहां के लोग खुशहाल जीवन जीने के लिए संघर्ष कर रहे है।