बाल गंगाधर तिलक का निधन 1 अगस्त 1920 को हुआ था। ‘स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’ ये नारा देने वाले भी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के नायक बाल गंगाधर तिलक हैं। वैसे तो बाल गंगाधर तिलक का पूरा जीवन ही आदर्श है। भारत के गोल्डन इतिहास का प्रतीक है, लेकिन बाल गंगाधर तिलक के लोकमान्य बनने का सफर और कदम बहुत रोचक था।
जानें उनके जीवन से जुड़ी रोचक बातें: बहुत ही कम लोग जानते हैं कि लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने परोक्ष रूप से प्रसिद्ध ‘विशेष शाखा (एसबी)’ के शुभारंभ को उत्प्रेरित करके आधुनिक मुंबई पुलिस को नया अवतार देने में अहम रोल निभाया है। जिसने इसे स्कॉटलैंड यार्ड के बराबर होने की प्रतिष्ठा दी। स्वतंत्रता संग्राम को एक निर्णायक दिशा दी। तिलक का वो नारा जो कहता है कि स्वराज हर आमो-खास का जन्म सिद्ध अधिकार है। इस नारे क आज भी पूरी दुनिया बार-बार दोहराती है।
22 जुलाई 1908 को बाल गंगाधर तिलक जिन्हें ‘केसरी’ में उनके द्वारा लिखे लेख को देशद्रोही करार देते हुए ब्रिटिश सरकार की ओर से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। बाद में बॉम्बे हाई कोर्ट ने उन्हें दोषी ठहराया और 6 साल के लिए बर्मा के मांडले में भेज दिया। तिलक की सजा के कारण बंबई के लगभग 4 लाख कपड़ा मिल श्रमिकों ने प्रत्येक दिन सजा के एक वर्ष को चिह्नित करते हुए छह दिनों की हड़ताल की घोषणा की। विरोध प्रदर्शनों के कारण मामला हाथ से जाता देख सेना की तैनाती कर दी गई।
बता दें कि डीसीपी रोहिदास दुसर ने कहा कि उन 6 दिनों के लिए, पुलिस ने शहर पर कंट्रोल पूरी तरह से खो दिया था। कुछ डरे हुए यूरोपीय अधिकारियों ने जैकब सर्कल पुलिस चौकी के लॉकअप में शरण ली। इस बीच पुलिस और ब्रिटिश शासन के बीच की कलह खुलकर सामने आ गई। 5 अगस्त 1908 को आपराधिक खुफिया विभाग के कार्यवाहक निदेशक सीजे स्टीवेन्सन मूर ने गृह विभाग के कार्यवाहक सचिव सर हेरोल्ड स्टुअर्ट को लिखा: मैं यह कहने के लिए मजबूर हूं कि एजेंसी के रूप में बॉम्बे पुलिस की अज्ञानता और उपयोग किए गए तरीके प्रदर्शन से कम डरावना नहीं है।
अंग्रेजों की समस्याएं पुलिस बल की रीढ़ माने जाने वाले पूर्व-प्रमुख महाराष्ट्रीयन कांस्टेबुलरी के कारण और भी बढ़ गई। सीक्रेट डाक्यूमेंट्स से पता चलता है कि बंबई पुलिस के सिपाही और कर्मचारी उनके साथ सहानुभूति रखते थे। अधिकांश पुलिसकर्मी तटीय रत्नागिरी जिले के थे। वहीं प्रदर्शन करने वाले और यहां तक कि तिलक जिनका परिवार रत्नागिरी के चिखलगाँव का था। इसके बाद पुलिसकर्मियों ने प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने के आदेश से मना कर दिया था।
1916 के आखिर तक प्रस्तावित 17 मॉडल पुलिस स्टेशनों में से कुल 13 को शुरू किया गया था। सभी थानों का डिजाइन एक जैसा था। वरिष्ठ निरीक्षक का केबिन मुख्य गेट बाई ओर था, और चार्ज रूम उनके केबिन के ठीक सामने था ताकि उन्हें पता चल सके कि उनकी निगरानी में क्या हो रहा था। वरिष्ठ निरीक्षक के पास स्कॉटलैंड यार्ड मॉडल के सादृश्य पहले फ्लोर पर उनके घर थे। कर्मचारियों को परिसर में पुलिस लाइन में रखा गया था जिससे वे किसी घटना की स्थिति में तुरंत ड्यूटी पर रिपोर्ट कर सकें। साल 1895 में बाल गंगाधर तिलक ने पुलिस की सशस्त्र शाखा के शुभारंभ को भी उत्प्रेरित किया था।
तिलक का करियर: पढ़ाई पूरी करने के बाद बाल गंगाधर तिलक पुणे के एक निजी स्कूल में मैथ्स और इंग्लिश के शिक्षक बन गए। साल 1880 में स्कूल के अन्य शिक्षकों से मतभेद के बाद उन्होंने पढ़ाना छोड़ दिया। तिलक अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली के आलोचक थे। स्कूलों में ब्रिटिश विद्यार्थियों की तुलना में भारतीय विद्यार्थियों के साथ हो रहे दोगले व्यवहार का विरोध करते थे। बाल गंगाधर तिलक ने समाज में व्याप्त छुआछूत के खिलाफ भी आवाज उठाई थी।
आजादी के लिए तिलक की कोशिश: बता दें कि बाल गंगाधर तिलक ने दक्खन शिक्षा सोसायटी की स्थापना की, जिसका मुख्य लक्ष्य भारत में शिक्षा का स्तर सुधारना था। तिलक ने मराठी भाषा में मराठा दर्पण और केसरी नाम से दो अखबार भी शुरू किए, जो उस समय में काफी लोकप्रिय हुए। स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा बनते हुए बाल गंगाधर तिलक ने ब्रिटिश हुकूमत का खुलकर विरोध किया और ब्रिटिश सरकार से भारतीयों को पूर्ण स्वराज देने की मांग की। तिलक के अखबार केसरी में छपने वाले लेखों के कारण उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा था। अपने पकोशिशों की वजह से तिलक को ‘लोकमान्य’ की उपाधि से नवाजा गया।