जबलपुर। तिलक हिंदू संस्कृति में एक पहचान चिन्ह का काम करता है। तिलक लगाने की केवल धार्मिक मान्यता नहीं है बल्कि कई वैज्ञानिक कारण भी हैं। हमारा सनातन धर्म पूर्णत: विज्ञान पर आधारित है। सनातन धर्म में अपनाई जाने वाली हर पद्धति विज्ञान को सही समझाती है।
इसी में हम आपको ललाट पर तिलक लगाने का रहस्य बता रहे हैं। शायद भारत के सिवाय और कहीं भी मस्तक पर तिलक लगाने की प्रथा प्रचलित नहीं है। यह रिवाज अत्यंत प्राचीन है। माना जाता है कि मनुष्य के मस्तक के मध्य में विष्णु भगवान का निवास होता है, और तिलक ठीक इसी स्थान पर लगाया जाता है।
तिलक लगाना देवी की आराधना
मनोविज्ञान की दृष्टि से भी तिलक लगाना उपयोगी माना गया है। माथा चेहरे का केंद्रीय भाग होता है, जहां सबकी नजर अटकती है। उसके मध्य में तिलक लगाकर, विशेषकर स्त्रियों में देखने वाले की दृष्टि को बांधे रखने का प्रयत्न किया जाता है। स्त्रियां लाल कुमकुम का तिलक लगाती हैं। यह भी बिना प्रयोजन नहीं है। लाल रंग ऊर्जा एवं स्फूर्ति का प्रतीक होता है। तिलक स्त्रियों के सौंदर्य में अभिवृद्धि करता है। तिलक लगाना देवी की आराधना से भी जुड़ा है। देवी की पूजा करने के बाद माथे पर तिलक लगाया जाता है। तिलक देवी के आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है।
यह है तिलक का महत्व
हिन्दु परम्परा में मस्तक पर तिलक लगाना शुभ माना जाता है इसे सात्विकता का प्रतीक माना जाता है विजयश्री प्राप्त करने के उद्देश्य रोली, हल्दी, चन्दन या फिर कुमकुम का तिलक किया जाता है। कार्य की महत्ता को ध्यान में रखकर शुभकामनाओं के रुप में हमारे तीर्थस्थानों पर, विभिन्न पर्वों-त्यौहारों, विशेष अतिथि आगमन पर आवाजाही के उद्देश्य से भी लगाया जाता है।
आज्ञाचक्र को मिलती है नियमित दिशा
मस्तिष्क के भू-मध्य ललाट में जिस स्थान पर टीका या तिलक लगाया जाता है यह भाग आज्ञाचक्र है। शरीर शास्त्र के अनुसार पीनियल ग्रन्थि का स्थान होने की वजह से, जब पीनियल ग्रन्थि को उद्दीप्त किया जाता हैं, तो मस्तिष्क के अंदर एक तरह के प्रकाश की अनुभूति होती है। इससे धार्मिकता, आत्मिकता की ओर की दिशा में किया गया प्रयास जिससे आज्ञाचक्र को नियमित उत्तेजना मिलती रहती है।
तंत्र शास्त्र में भी है विशेष महत्व
तन्त्र शास्त्र के अनुसार माथे को इष्ट इष्ट देव का प्रतीक समझा जाता है हमारे इष्ट देव की स्मृति हमें सदैव बनी रहे इस तरह की धारणा क ध्यान में रखकर, ताकि मन में उस केन्द्रबिन्दु की स्मृति हो सकें। शरीर व्यापी चेतना शनै: शनै: आज्ञाचक्र पर एकत्रित होती रहे। चेतना सारे शरीर में फैली रहती है। अत: इसे तिलक या टीके के माध्यम से आज्ञाचक्र पर एकत्रित कर, तीसरे नेत्र को जागृत करा सकें ताकि हम परामानसिक जगत में प्रवेश कर सकें।
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