मुंबई। इस सप्ताह यानी शुक्रवार छह मई को तीन फिल्में रिलीज हुईं। तीनों ही अलग-अलग जॉनर की फिल्में हैं। जहां तक अभिनेता मनोज बाजपेयी के अभिनय से सजी फिल्म ट्रैफिक की बात है, तो इस फिल्म में एक जिंदगी को बचाने की कहानी में कई कहानियों को जज्बातों के साथ मजबूती से पेश किया गया है। खासकर मनोज बाजपेयी की अदाकारी की जितनी तारीफ की जाए, उतनी कम है। इसके अलावा सनी लियोन की ‘वन नाइट स्टैंड’ की बात है, तो यह फिल्म अपने टाइटल को भुनाने में सफल नहीं रही। तीसरी फिल्म है 1920 लंदन। विक्रम भट्ट की यह फिल्म हॉरर है, लेकिन कहीं से भी दर्शकों में रोमांच नहीं भरती। आइए, संक्षेप में तीनों फिल्मों की कहानी से रूबरू होते हैं। फिल्म रीव्यू पढऩे के बाद आप भी अपने हिसाब से कमेंट कर रेटिंग दे सकते हैं।
ट्रैफिक
जॉनर: थ्रिलर
कलाकार: मनोज बाजपाई, जिमी शेरगिल, प्रोसेनजीत चटजीज़्, दिव्या दत्ता, सचिन खेड़ेकर।
निर्देशक: जेश पिल्लई
निर्माता: दीपक धार और समीर गोगटे
म्यूजिक: मिथुन
साल 2011 में रिलीज हुई मलयालम फिल्म की यह रीमेक है। ओरिजनल फिल्म को निर्देशित करने वाले निर्देशक राजेश पिल्लई ने ही ट्रैफिक को भी निर्देशित किया है। फिल्म का हर किरदार जरूरी है और उन्हीं की अदाकारी इस फिल्म की जान हैं। खासकर मनोज बाजपाई की जितनी तारीफ की जाए, उतनी कम है।
ऐसी है फिल्म की कहानी…
मुंबई का एक लड़का रेहान (विशाल सिंह) सुपरस्टार देव कपूर (प्रोसेनजीत चैटर्जी) का इंटरव्यू लेने के लिए जा रहा होता है। लेकिन रास्ते में उसका बुरी तरह से एक्सीडेंट हो जाता है। दूसरी तरफ पुणे के एक अस्पताल में देव कपूर और माया कपूर (दिव्या दत्ता) की बेटी रिया जिन्दगी और मौत से लड़ रही होती है। रिया के जिस्म में कुछ ही घंटों में एक नया धडकता दिल प्लांट करने से ही उसकी जिंदगी बच सकती है।
रेहान जो की चंद घंटों का मेहमान है उसका दिल रिया के लिए परफेक्ट होता है। रेहान के पिता (सचिन खेडेकर) इस बात की इजाजत दे देते हैं। मौसम की खराबी की वजह से हवाई यातायात को 3 घंटे रोक दिया जाता है, इसलिए हार्ट जेट से लाना नामुमकिन होता है। ऐसे में एक ही ऑप्शन बचता है। वह ये कि हार्ट बाय रोड ले जाया जाए। लेकिन इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए कोई आगे नहीं आता। तभी ट्रैफिक हवालदार रामदास गोडबोले (मनोज बाजपाई) यह जिम्मेदारी लेता है। ट्रैफिक जॉइंट कमिश्नर गुरबीर सिंह (जिमी शेरगिल) मिशन को ग्रीन सिग्नल देता है। फिर शुरू होता है एक ऐसा मिशन, जो बेहद मुश्किल और चुनौतियों से भरा होता है। आगे क्या होता है…यह जानने के लिए फिल्म देखी जा सकती है।
फिल्म का निर्देशन कसावट भरा है। कहीं भी फिल्म बोर नहीं करती। फ्रेम दर फ्रेम बहुत खूबसूरती के साथ गढ़ा गया है। अभिनय में सभी कलाकार अपने किरदार के साथ न्याय किया है। सबकी अदाकारी काबिले तारीफ है। मिथुन ने इस फिल्म में संगीत दिया है, लेकिन इस फिल्म में गानों को काई स्कोप नहीं है। ऐसे में मिथुन की तारीफ करनी पड़ेगी कि उन्होंने फिल्म का बैक ग्राउंड स्कोर अच्छा दिया है।
क्यों देखें…
बेहद बोल्ड, मसालेदार फिल्मों के दौर में एक साफ-सुथरी अच्छी और नई कहानी…पूरे परिवार के साथ फिल्म देख सकते हैं। ट्रैफिक को देखकर आपको यकीनन एक अलग और बेहतरीन फिल्म देखने का अनुभव आएगा।
रेटिंग: 3/5
‘वन नाइट स्टैंड’ में नया कुछ नहीं… कुछ हटकर है
यह एक इरोटिक थ्रिलर फिल्म है। वैसे भी सनी लियोन की जब भी कोई फिल्म रिलीज होती है, तो लोगों को उससे कोई खास उम्मीद नहीं रहती। सनी लियोन जिस तरह की फिल्में करती हैं या यूं कहेंं कि उन्हें जैसी फिल्में मिलती हैं, उसका एक खास दर्शक वर्ग है, जिसके दम पर फिल्म की लागत निकल जाती है। बेशक फिल्म के टाइटल से लगता है कि फिल्म सेक्स सीन्स से भरी पड़ी होगी और इसमें कोई खास कहानी नहीं होगी, लेकिन सनी के फैन्स के लिए एक गुड न्यूज है, क्योंकि ये फिल्म उम्मीद से ज्यादा अच्छी है।
कहानी
यह कहानी है सेलिना (सनी लियोन) और उवीज्ल (तनुज वीरवानी) की, जिनके बीच वन नाइट स्टैंड होता है लेकिन उसके बाद इन दोनों की जिंदगी में काफी उलटफेर होने लगते हैं। एक तरफ जहां उवीज्ल बार-बार सेलिना से मिलने की कोशिश करता है, वहीं सेलिना दुबारा उवीज्ल की शक्ल भी नहीं देखना चाहतीं। इसी बीच उवीज्ल और उसकी पत्नी सिमरन (नायरा बैनर्जी) की शादी शुदा जिंदगी भी प्रभावित होने लगती है, सेलिना के बारे में सोच-सोचकर उवीज्ल, शराब के नशे में धुत रहने लगता है, वहीं सेलिना की जिंदगी की सच्चाई का भी पता चलता है और आखिरकार ट्विस्ट और टन्र्स के बीच फिल्म को अंजाम मिलता है। क्या ट्विस्ट है। दोनों की जिंदगी में कैसा मोड़ आता है? सेलिना ने आखिर क्यों अपने बारे में झूट बोला? सेलिना अचानक क्यों गायब हो गई? सेलिना की सच्चाई क्या है? क्या सेलिना भी उवीज्ल से प्यार करती है? क्या उवीज्ल सेलिना के लिए अपनी पत्नी को छोड़ देगा? ऐसे कई सवाल है जो इंटरवल के बाद आपके मन में घूमते रहते हैं और ये सारे सवाल आपको फिल्म देखने के बाद ही पता चलेंगे।
थ्रिल की कमी खलती है…
फस्र्ट हाफ बहुत अच्छा है। अच्छी कहानी, अच्छे लोकेशन, अच्छे गाने, अच्छे सीन्स, लेकिन इंटरवल के बाद फिल्म बोर और स्लो हो जाती है। जिस तरह से उवीज्ल, सेलिना का पीछा करता है, उसमें थ्रिल नजर नहीं आता। दृश्यों में उबाऊपन का अहसास होता है। यही फिलम का कमजोर पक्ष है।
सनी ने किया अभिनय…
इस फिल्म में सनी ने अंग प्रदर्शन तो किया है, लेकिन इसके साथ पहली बारे अच्छी एक्टिंग भी की है। इसका श्रेय निर्देशक जैस्मिन दिसौजा को जाता है। उन्होंने बाकी फिल्ममेकर्स की तरह सिर्फ सनी के बॉडी का इस्तेमाल नहीं किया है, बल्कि उनके टैलेंट का बखूबी इस्तेमाल किया है। फिल्म का म्यूजिक पहले से ही हिट हो चुका है। फिल्म का हर गाना खूबसूरत है। कुल मिलाकर यह एक अच्छी फिल्म बनेत-बनते रहे गई। कहीं चूक हुई है। नया कुछ नहीं है…कुछ हटके जरूर देखने को मिलता है। फिल्म को सनी लियोन की अच्छी एक्टिंग के लिए जरूर देखें।
रेटिंग: 2.5/5
‘1920 लंदन’ से डर नहीं लगता…
‘1920 लंदन’ एक हॉरर फिल्म है और इसके निर्देशक टीनू सुरेश देसाई हैं। इसे लिखा है विक्रम भट्ट ने और यहां यह याद दिलाना जरूरी है कि अपनी कड़ी में ‘1920 लंदन’ तीसरा भाग है। 2008 में रिलीज ‘1920’ रिलीज हुई थी, जिसका दूसरा सीक्वल 2012 में ‘1920 ईवल रिटन्र्स’ के नाम से आया था। यह एक कामयाब फ्रेंंचायजी है। अब बात इस फिल्म की तीसरी कड़ी यानी ‘1920 लंदन’ की, जिसमें मुख्य भूमिकाओं में शरमन जोशी, मीरा चोपड़ा, विशाल कंवल और सुरेन्द्र पाल हैं। संगीत है शारिब-तोशी का और बैक ग्राउंड स्कोर अमर मोहिले का है।
फिल्म में नयापन नहीं
यदि किसी फिलम में भूत होगा, तो जादू टोना होगा। उसको भगाने के लिए एक तांत्रिक होगा, डरावने चेहरे होंगे, भूत भाग जाए ऐसी कुछ तरकीब ढ़ूंढनी होगी। एक हॉरर फिल्म के लिए यह सब चीजें जायज हैं, इन्हीं सब चीजों को मथकर डर पैदा करना होता है। अब सवाल यह है कि क्या आपको फिल्म डरा पाने में कामयाब है? हम हर बार इसी उम्मीद में कोई भी हॉरर फिल्म देखने जाते हैं और जब हमारी उम्मीदों पर पानी फिरता है, तो हम कहते हैं मजा नहीं आया। ऐसा ही होता है ‘1920 लंदन’ में, न तो स्पेशल इफेक्ट्स में कोई दम हैश् न ही ये फिल्म आपको डरा पाने में कामयाब होती है और साथ ही संवाद भी कमजोर लगते हैं।
इसके अलावा डायरेक्टर ने कई जगह फिल्म के किरदारों के लुक में एकसमानता पर ध्यान नहीं दिया। रामसे ब्रदर्स के जमाने की फिल्में फिर भी डरा जाती थीं और वह भी तब, जब कम्प्यूटर ग्राफिक्स का जमाना नहीं था। खैर, यह थी खामियां और अब ख़ूबियों पर भी नजर डालें, तो जिनमें शरमन जोशी की बात करना जरूरी है , जो अपने किरदार में काफी रमे हुए लगते हैं। इसके अलावा कहानी का ढांचा भी ठीक है, लेकिन इसकी बारीकियों को सही ढंग से पिरोया नहीं गया। फिल्म का इंटरवल प्वॉइंट रोचक है और ट्विस्ट भी दिलचस्प लगता है। मीरा चोपड़ा अपने किरदार में ठीक हैं। यह फिल्म आप देखें या नहीं…यह आप निर्भर करता है, क्योंकि फिल्म डराती नहीं है।
रेटिंग: 2/5