ये कहानी है वरुण धवन यानि अजय दीक्षित उर्फ अज्जू भैया की जिन्होंने लखनऊ में अपना भौकाल बना रखा है। ये हैं तो टीचर लेकिन पढ़ाने में कोई दिलचस्पी नहीं है। इन्हें अपनी इमेज से बड़ा प्यार है। दूसरी तरफ हैं जाह्नवी कपूर यानि निशा जिन्हें बचपन से दौरे पड़ते हैं और इसी वजह से उनकी जिंदगी में कभी कोई लड़का नहीं आया। वरुण और जाह्नवी की शादी हो जाती है क्योंकि जाह्नवी को वरुण की इमेज अच्छी लगती है और वरुण को लगता है कि जाह्नवी जैसी लड़की से शादी करना उसकी इमेज के लिए और अच्छा होगा।
कैसी है फिल्म, बच्चों को भी दिखा सकते हैं आप!
इस फिल्म में कहानी भले दो लोगों के करीब आने की हो लेकिन उसे वर्ल्ड वॉर की जानकारी के बीच परोसा गया और और ये जानकारी बिना बोर किए एंटरटेनिंग तरीक से दी गई है। बच्चों को ये फिल्म जरूर दिखानी चाहिए ताकि उन्हें इस बारे में जानकारी मिल सके। कहीं पर भी फिल्म बोर नहीं करती, अपनी स्पीड से आगे बढ़ती है। लव स्टोरी और जानकारी का एक अच्छा बैलेंस बैठाने में नितेश तिवारी कामयाब हुए हैं। यूरोप की लोकेशन्स के जरिए वर्ल्ड वॉर को देखना वाकई दिलचस्प लगता है। ये साफ सुथरी फिल्म है जिसे आराम से पूरी फैमिली के साथ देखा जा सकता है।
वरुण धवन ने अच्छी एक्टिंग की है। अज्जू भैया के किरदार में वो जमे हैं। उन्होंने लोकल लहजे को भी अच्छे से पकड़ा है। जाह्नवी कपूर भी अच्छी लगी हैं। सेकेंड हाफ में वो ज्यादा इम्प्रेस करती हैं। वरुण के पापा के किरदार में मनोज पाहवा जमे हैं। वरुण की मां के किरदार में अंजुमन सक्सेना का काम भी अच्छा है।
इस फिल्म के साथ डायरेक्टर नितेश ने एक सिम्पल लेकिन गहरा मैसेज दिया है कि इतिहास होता ही इसलिए है कि अपनी गलतियों से सीख ली जाए और उन्हें सुधारा जाए। ये फिल्म फ्लॉलेस नहीं है। इसमें कमियां भी हैं, जिनकी वजह से आप इसे देखते हुए अलग ख्वाबों में भी जाने लगते हैं। इस फिल्म को आप अपनी फैमिली के साथ भी देख सकते हैं।