दरअसल, मुरादाबाद के कोठीवाल नगर में 18 दिसंबर 2010 प्रदर्शनकारियों की भीड़ ने डकैती और दोहरे हत्याकांड के मामले में दो सगी बहनों 22 वर्षीय गीता और 20 वर्षीय मोनू के घर के बाहर प्रदर्शन कर रही थी, क्योंकि उस दोहरे हत्याकांड में गीता और मोनू के भाई आरोपी थे। घटना के दौरान घर में गीता और मोनू के साथ उनकी मां राजो मौजूद थीं। घर के बाहर जमा भीड़ नारेबाजी करते हुए उग्र प्रदर्शन कर रही थी। इसी बीच कुछ लोगों ने घर को आग लगा दी। घर में आग लगते ही राजो तो जैसे-तैसे बाल-बाल बच गई, लेकिन उसकी दोनों बेटियां घर में ही रह गईं। देखते ही देखते आग ने विकराल रूप धारण कर लिया और गीता और मोनू की घर के अंदर आग में जिंदा जलकर मौत हो गई।
लड़कियों के दलित होने के चलते यह केस जस्टिस संध्या चौधरी की एससी/एसटी स्पेशल कोर्ट में चल रहा था। 11 साल तक चली सुनवाई के बाद न्यायाधीश संध्या चौधरी ने अब इस मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। 26 पन्नों के आदेश में 7 आरोपियों को तमाम बयान और पेश किए गए सबूतों के आधार पर दोषी पाया गया है। अतिरिक्त जिला सरकारी अधिवक्ता आनंद पाल सिंह ने बताया कि अदालत ने आरोपी सतीश मदान, बंटी मलिक, आशा सचदेवा, सागर भांडुला, अमरजीत कौर, सानिया कोहली और विनोद कजक्कड़ को दोषी करार देते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई है। इसके साथ ही सभी दोषियों पर एक-एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया। उन्होंने बताया कि दोषियों को मुरादाबाद जिला कारागार भेजा गया है।
लड़कियों के भाई पहले ही हुए गिरफ्तार बता दें कि घटना के बाद पुलिस ने लड़कियों के भाइयों राकेश और राजेश को भी गिरफ्तार कर लिया था। पुलिस के अनुसार, राकेश 9 दिसंबर 2010 को हुई डकैती के दौरान हत्या का आरोपी था। उस पर एक 30 वर्षीय महिला और उसकी बेटी की हत्या का आरोप लगा था। उसी के बाद गुस्साई भीड़ ने आरोपियों के घर में आग लगा दी थी।