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पूरा शहर विरोध में उतर आया
यहां बता दें कि नौ अगस्त 1942 को महात्मा गांधी ने मुंबई अधिवेशन में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन की घोषणा की थी। इसमें पूरा देश अंग्रेजों के विरोध में सड़कों पर उतर आया था। इस घोषणा के साथ ही पूरे देश के साथ ही मुरादाबाद में जबरदस्त आंदोलन शुरू हुआ, जिसे दबाने के लिए प्रदर्शन कर रही भीड़ पर अंग्रेजों ने गोली चलाईं। इसमें छह जाबांज शहीद हुए थे। यह संख्या तो इतिहास में दर्ज है, लेकिन वास्तव में बहुत बड़ी संख्या में गई थीं। इसमें एक 11 वर्षीय बालक भी शामिल था। नौ अगस्त को अंग्रेजों ने असहयोग आंदोलन की घोषणा के साथ ही देश भर में गिरफ्तारियां शुरू कर दी थीं। मुरादाबाद में सभी बड़े नेताओं के साथ बड़ी संख्या में गिरफ्तारी हुईं, जिससे कि आंदोलन आगे न बढ़ सके।
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अंग्रेजों ने चलाई थी गोलियां
शहर के पुराने लोगों के मुताबिक में दस अगस्त को मुरादाबाद में जीआइसी से विशाल जुलूस निकाला गया। लोग उस समय हाथों में झंडा लेकर अंग्रेजों के खिलाफ नारेबाजी करते हुए आगे बढ़ रहे थे। उस समय के अंग्रेज कप्तान ने मंडी बांस पर आंदोलनकारियों को रोकने के लिए फोर्स तैनात कर रखी थी। जीआइसी की ओर से आंदोलनकारी आगे बढ़ रहे थे तो मंडी बांस की ओर से अंग्रेजों के सैनिक। पान दरीबा पर जाकर जुलूस को रोका गया, लेकिन आजादी के दीवाने रुकने को तैयार नहीं थे। अंग्रेजों ने आंदोलनकारियों से वापस जाने के लिए कहा, जब वे नहीं माने तो लाठी चार्ज कर दी। इसके बावजूद देशभक्तों की टोली लाठी खाते हुए आगे बढ़ती जा रही थी। 11 वर्षीय बच्चा जगदीश प्रसाद शर्मा झंडा फहराने के लिए खंभे पर चढऩे लगे। इससे बौखलाए अंग्रेज कप्तान ने फायरिंग का आदेश दे दिया। इसके बाद चारों ओर से गोलियों की आवाज और लोगों की चीखें सुनाई देने लगीं। खंभे पर चढ़े जगदीश प्रसाद को भी गोली लगी और उनकी मौत हो गई। चारों ओर भगदड़ मच गई, लोग जान बचाने के लिए गलियों में भागने लगे। अंग्रेज सिपाहियों ने उनका पीछा करते हुए फायर किए। सैकड़ों की संख्या में लोग गोली लगने से घायल हो गए। गलियों में जहां देखो वहां घायल मदद के लिए तड़प रहे थे। कई शहीदों के शव पड़े हुए थे। जब सन्नाटा पसर गया तो अंग्रेजों ने शवों को अपने कब्जे में ले लिया। ठेलों पर लादकर शवों को अपने साथ ले गए। घोषणा सिर्फ छह के मरने की गई। जिन शहीदों में जगदीश प्रसाद शर्मा, प्रेमकाश अग्रवाल, झाऊलाल जाटव, मुमताज तांगे वाला, मोती लाल और रामकुमार शामिल थे।
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सिर्फ इन दिनों में होती है रौनक
पान दरीबा में शहीद हुए लोगों की याद में शहीद स्मारक बनवाया गया। लेकिन इस स्मारक की याद भी 15 अगस्त और 26 जनवरी व किसी और राष्ट्रिय पर्व पर ही आती है। जिसके चलते न यहां साफ सफाई या और कोई ऐसी व्यवस्था है, जिससे आने वाली पीढ़ी जान सके कि आजादी में इस शहर ने भी कई कुर्बानियां दीं थी।