इस बीमारी का खुलासा एक शोध में हुआ है जिसमें 15 से 16 साल तक के 2,600 किशोरों पर दो साल तक अध्ययन किया गया। इस शोध में जो बात निकलकर सामने आयी है। दरअसल जिन किशोरों ने मोबाइल फोन का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया था उनमें इस बीमारी के लक्षण दिखाई दिए हैं। यह बीमारी सबसे ज्यादा किशोरों को ही हो रही है।
स्टॉकहोम के केटीएच रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं के अनुसार, दिमाग खाली समय में जानकारियों को सुरक्षित करने का काम करता है ऐसे में अगर खाली समय में हम अपने आप को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बिज़ी रखते हैं तो हमारा दिमाग जानकारियों को सुरक्षित नहीं रख पाता है और आप चीजों को भूलने लगते हैं और आपका ध्यान किसी भी काम में केंद्रित नहीं हो पाता है। ऐसे में सोशल मीडिया आपके दिमाग के लिए घातक साबित हो सकता है।
आपको बता दें कि इस बीमारी के होने का ख़तरा उस वक्त सबसे ज्यादा होता है जब रात को हम फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर एक्टिव रहते हैं और लोगों के पोस्ट और फोटोज देखते हैं। इस वक्त आम तौर पर हमारा दिमाग जानकारियां स्टोर करता है लेकिन जब आप सोशल मीडिया पर एक्टिव रहते हैं तो दिमाग का ये काम रुक जाता है और आप धीरे-धीरे अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर की चपेट में आ जातें और और आपकी यादाश्त पहले से कम हो जाती है और आप अपने काम पर ध्यान नहीं लगा पाते हैं।