जैश पर प्रतिबंध का क्या होगा असर
बता दें कि मसूद पर प्रतिबंध के बाद अब पाकिस्तान के लिए भी मुश्किलें खड़ी होगी। अजहर पर प्रतिबंध का मतलब है कि अजहर की संपत्तियों को संयुक्त राष्ट्र के देशों द्वारा जब्त किया जाएगा और इन देशों में उसकी यात्रा पर पाबंदी होगी। भारत सरकार के एक अधिकारी ने नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर कहा कि अजहर चीनियों के लिए लगातार परेशानी का सबब बनता जा रहा था।
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चीन ने वीटो न करने के दिए थे संकेत
पुलवामा आतंकी हमले के गुनाहगार और जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मौलाना मसूद अजहर के ऊपर आज भारत को बड़ी कामयाबी मिली है। गौरतलब है कि भारत लंबे समय से इस कोशिश में लगा हुआ कि मसूद अजहर को ग्लोबल आतंकी घोषित कर उस पर सुरक्षा परिषद का बैन लगा दिया जाए, लेकिन हर बार चीन ने इस मामले पर अपने वीटो का इस्तेमाल किया। आखिरकार भारत की कोशिशें कामयाब हुई हैं। मालूम हो कि मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने को लेकर संयुक्त राष्ट्र में बीते 10 वर्ष में चार बार 2009, 2016, 2017 और 2019 में प्रस्ताव लाया गया था। लेकिन हर बार चीन ने वीटो का इस्तेमाल करते हुए मसूद को बचाया था। इस बार 14 फरवरी को पुलवामा में हुए हमल के बाद अमरीका, फ्रांस और ब्रिटेन ने एक प्रस्ताव यूएन में दिया था, जिसपर चीन ने वीटो लगाते हुए फिर से मसूद को बचा लिया था। इसके बाद से चीन पर लगातार दबाव बनाया गया। लिहाजा चीन ने अपने बर्ताव में नरमी लाते हुए वीटो न करने का संकेत दिए थे।
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इन बड़े हमलों में मसूद अजहर का रहा है हाथ
अजहर ने पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI के सहयोग से जनवरी 2000 में जैश-ए-मोहम्मद (JeM) की स्थापना की थी। भारत ने उसे एक भारतीय विमान में बंधक बनाए गए 166 यात्रियों को छुड़ाने के बदले जेल से रिहा किया था। काठमांडू से नई दिल्ली जा रहे विमान का अपहरण कर अफगानिस्तान के कांधार ले जाया गया और आतंकवादियों ने मसूद समेत अन्य आतंकवादियों को रिहा करने के बदले इन यात्रियों को छोड़ने की शर्त रखी थी। उसके बाद, उसके संगठन ने भारत में लगातार हमले किए, जिसमें 13 दिसंबर, 2001 को भारत की संसद पर किया गया हमला भी शामिल है। हाल ही में इस संगठन ने 14 फरवरी को कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के वाहन पर आत्मघाती हमला किया था, जिसमें 40 जवान शहीद हो गए थे। भारतीय अधिकारी ने कहा, “यह कहना कि बीजिंग ने अमरीका के दबाव में अजहर को प्रतिबंधित किया है, केवल एक कारण नहीं है। अमरीकियों का 1267 समिति में जाना और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपने मसौदे को लाने से भी निश्चित ही चीनियों को चिंता हुई होगी।”
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