इससे पहले अमरीका अपने सबसे घातक जंगी पोतों को तैनात कर चुका है। अभी हाल ही में अमरीकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने कहा था कि दक्षिण चीन सागर में चीन के साथ प्रतिस्पर्धा चरम पर पहुंच चुकी है। बिडेन ने आगे यह भी कहा था कि दक्षिण चीन सागर में चीन से मुकाबला करने के लिए यूरोप और एशिया में समान विचारधारा वाले सहयोगी देशों को एक साथ आना चाहिए।
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अब फ्रांस का अपना परमाणु पनडुब्बी को तैनात करना बिडेन के आह्वान से जोड़कर देखा जा रहा है। अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकारों का कहना है कि फ्रांस के इस कदम से दक्षिण चीन सागर में संघर्ष की आशंका तेज हो गई है और बिडेन की इस अपील का असर यूरोपीय देशों पर पड़ा है। जानकारों का कहना है कि अमरीका के बाद अब फ्रांस के आने के बाद से दक्षिण चीन सागर में चीन की नई रणनीति क्या होगी।
अंतर्राष्ट्रीय नियमों के तहत उठाया गया है यह कदम
दक्षिण चीन सागर में परमाणु पनडुब्बी की तैनाती को लेकर फ्रांस ने कहा है कि अंतर्राष्ट्रीय नियमों के तहत यह कदम उठाया गया है। फ्रांस के रक्षा मंत्री फ्लोरेंस पारली ने ट्वीट करते हुए कहा कि पेरिस का यह कदम अंतरराष्ट्रीय विधि के अनुरूप है और यह फ्रांसीसी नौसेना की क्षमता का भी प्रमाण है।
उन्होंने आगे कहा कि हमारी नौसेना लंबे समय तक ऑस्ट्रेलिया, अमरीका और जापान के रणनीतिक साझेदार हैं। रक्षा मंत्री पारली ने कहा कि फ्रांस की यह कार्रवाई एक व्यापक अंतर्राष्ट्रीय प्रयास का हिस्सा है। इसका मकसद अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत समुद्री सीमा की सुरक्षा करना है। हालांकि, उन्होंने किसी भी तरह से चीन के खतरे का जिक्र नहीं किया।
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बता दें कि अमरीका और अब फ्रांस द्वारा दक्षिण चीन सागर में अपने युद्धपोत तैनात किए जाने के बाद से यूरोप के अन्य कई देशों की दिलचस्पी बढ़ गई है। एशिया टाइम ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि यूरोप के अन्य देश भी दक्षिण चीन सागर में अपने युद्धपोत तैनात यह जानकारी साझा की है कि फ्रांस के इस कदम के बाद यूरोप के अन्य देश भी ऐसा कदम उठा सकते हैं। इसमें कहा गया है कि ब्रिटेन और जर्मनी भी दक्षिण चीन सागर में अपने युद्धपोतों की तैनाती कर सकते हैं। एशिया टाइम ने बताया कि यहां अब यूरोपीय ताकतों की सक्रियता बढ़ने के पूरे आसार हैं।