चीन के पत्रकार ने सवाल किया है कि क्या इसरो ने केवल 14 दिनों के लिए ही लैंडर विक्रम को चांद पर भेजा था, क्योंकि उन्होंने उसमें वो थर्मल उपकरण नहीं लगाया था, जो इस लैंडर को चांद पर रात होने की सूरत में ठंड से बचाता और गर्म रखता।
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दूसरा बड़ा कारण
इसके अलावा अगले 14 दिनों में ठंडे कहे जाने वाले चांद के साउथ पोल में चंद्रमा पर बर्फ की ऐसी परत जम सकती है कि फिर ये किसी आर्बिटर को शायद ही नजर आए। तब ना तो इसरो का चंद्रमा की कक्षा में चक्कर लगता हमारा आर्बिटर तलाश पाएगा और ना ही नासा का आर्बिटर।
ऐसे में 14 दिन लैंडर विक्रम की कहानी को पूरी तरह खत्म कर देंगे।
अब हम जानते हैं उस उपकरण के बारे में जिसके नहीं होने पर सवाल उठ रहे हैं।
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में प्रकाशित ते यांग पार्क, जांग जून ली और ह्यून ओंग ओ ने इस बारे में एक लेख लिखा है, जिसका शीर्षक है, प्रारंभिक थर्मल डिजाइन और रात में चांद पर लैंडर के बचाव का विश्लेषण।
इसमें कहा गया है कि चांद एक दिन पृथ्वी के करीब एक माह के बराबर होता है। इसमें 14 दिनों का दिन और लगातार 14 दिनों की रात होती है।
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ये रातें बेहद ठंडी होती हैं। लिहाजा ऐसे में जब चांद पर कोई लैंडर भेजा जाता है तो उसमें उपयुक्त तरीके से थर्मल डिजाइन करना एक अहम टास्क ही नहीं होता है बल्कि ये ही वो पहलू है, जिसके पुख्ता तरीके से काम करने के लिए लैंडर इतनी ठंड में बचा रहता है।