पीएम स्कॉट मॉरिसन के लिए चुनौतियां
ऑस्ट्रेलिया की जनता ने बीते 12 वर्षों में 6 प्रधानमंत्री बनते देखें हैं। किसी ने भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया। इसका खामियाजा देश की जनता को उठाना पड़ा है। बीते 12 वर्षों में 6 प्रधानमंत्रियों का बदलना यह दर्शाता है कि ऑस्ट्रेलिया में राजनीतिक घमासान जोरों पर है, क्योंकि पार्टियों की आतंरिक लड़ाई के कारण तकरीबन हर प्रधानमंत्री को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा है| मौजूदा समय में भी पीएम स्कॉट मॉरिसन गठबंधन की सरकार की अगवाई कर रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि जनता के लिए जो उन्होंने काम किया है खास कर टैक्स कटौती और ऑस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना, उन्हें चुनाव में फिर से जीता सकता है। हालांकि उनके लिए कठिन चुनौती है। क्योंकि देश का आर्थिक विकास काफी धीमा रहा है और देशभर में जलवायु परिवर्तन ( climate change ) एक बहुत बड़ा मुद्दा रहा है। पिछले कुछ समय से देश में सबसे अधिक तापमान दर्ज किया गया और लोग गर्मी से बेहाल रहे। वहीं विपक्षी दल लेबर पार्टी के नेता बिल शॉर्टन आम नागिरकों के बीच चुनाव प्रचार करते हुए सरकार की नाकामियां गिना रहे हैं और जनता से वादा कर रहे हैं कि यदि वह सत्ता में आए तो शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा को बेहतर करने के साथ-साथ एक निष्पक्ष और भयमुक्त ऑस्ट्रेलिया बनाएंगे।
शनिवार को होते हैं चुनाव
ऑस्ट्रेलिया में चुनाव का दिन काफी पहले से तय होता है। इस बार 46 वें संसद के सदस्यों का चुनाव करने के लिए ऑस्ट्रेलियाई संघीय चुनाव शनिवार 18 मई 2019 को होगा। मतदान के लिए सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक मतदान केंद्र खुले रहेंगे। सामान्य तौर पर स्कूलों, चर्चों या अन्य सामुदायिक स्थानों पर मतदान केंद्र बनाए गए हैं। इस बार ऑस्ट्रेलिया में 16.5 मिलियन मतदाता अपने मदाधिकार का प्रयोग करने के लिए योग्य हैं। यहां पर मतदान करने की उम्र 18 वर्ष है। सबसे बड़ी बात कि ऑस्ट्रेलिया में मतदान करना अनिवार्य है और यदि कोई मतदाता वोट नहीं करता है तो उसे जुर्माना भरना पड़ता है।
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कैसे चुनाव होता है?
ऑस्ट्रेलिया की संसद यानी लोकसभा ( House of Representatives ) में 150 संसद सदस्य होते हैं, जबकि सीनेट ( Upper House ) में सदस्यों की संख्या 76 है। लोकसभा के सदस्यों के लिए चुनाव हर तीन साल में होते हैं। इसमें मतदाता अपने पसंदीदा उम्मीदवार के लिए वोट करता है। मतदाता वोटिंग के दौरान अपने पसंद के उम्मीदवार को प्राथमिकता देता है। मसलन यदि ‘A’ किसी की पहली पसंद है तो उसे 1 पर रखेंगे और फिर बाकी पंसद क्रमानुसार। अब जिस उम्मीदवार को पहले 50 प्रतिशत से अधिक मत मिलते हैं उसे विजेता मान लिया जाता है। यदि किसी को भी 50 फीसदी वोट नहीं मिलता है तो ऐसी स्थिति में सबसे कम वोट पाने वाले उम्मीदवार को बाहर कर दिया जाता है उसके बाद फिर दूसरी वरीयता के आधार पर वोटों को बांट दिया जाता है। इस तरह से 50 फीसदी मत पहुंचने तक यही प्रक्रिया चलती रहती है।
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रविवार की सुबह तो परिणाम की घोषणा
ऑस्ट्रेलिया में मतदान खत्म होने के साथ ही वोटों की गिनती शुरू हो जाती है। ऐसे में यह संभावना है कि चुनाव परिणाम की घोषणा शनिवार की देर रात या फिर रविवार की सुबह तक घोषित हो सकती है। चुनाव से पहले देश में लोगों के मिजाज से लगता है कि पीएम स्कॉट मॉरिसन के लिए वापसी करना आसान नहीं है। ज्यादातर ओपिनियन पोल में बदलाव की ओर संकेत किए गए हैं। न्यूज पोल में दिखाया गया है कि लेबर पार्टी मार्च से लगातार बढ़त बनाई हुई है। इसके पीछे एक वजह यह माना जा रहा है कि बीते 28 वर्षों में ऑस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था को लेबर पार्टी के नेतृत्व में गति मिली है, जबकि हाल के वर्षों में सत्ताधारी लिबरल या नेशनल गठबंधन पार्टी के कार्यकाल में गिरावट आई है। यही वजह है कि विपक्षी नेता शॉर्टन को मॉरिसन से अधिक वोट मिल रहे हैं जबकि शॉर्टन एक लोकप्रिय चेहरा नहीं है, उन्हें बहुत कम लोग जानते हैं।
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ये हैं अहम मुद्दे
ऑस्ट्रेलिया के आम चुनाव में इस बार कुछ अहम मुद्दे हैं जिनके आधार पर आम जनता नई सरकार का चुनाव कर सकती है। ओपिनियन पोल के हिसाब से अभी तक जो संकेत नजर आ रहे हैं उसके मुताबिक लोगों के लिए देश की गिरती अर्थव्यवस्था बड़ा मुद्दा है। 2018 में ऑस्ट्रेलिया की वार्षिक ग्रोथ 2.8 फीसदी थी और केंद्रीय बैंक ने हाल ही में ब्याज दर में कटौती कर दी, जिसके बाद से विकास दर घटकर इस वित्तीय वर्ष में 1.7 रह गई। इसके अलावा नौकरियों में वृद्धि, बजट अधिशेष और सेवानिवृत्ति में सुरक्षा आदि मुद्दे भी अहम हैं। विपक्षी दल लेबर पार्टी ने अपने चुनावी अभियान में शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, और जलवायु परिवर्तन को मुद्दा बनाया है। इस बार के चुनाव में पर्यावरण का मुद्दा भी बड़ा है। लोग जलवायु परिवर्तन को लेकर वोट करते दिखाई दे रहे हैं। विदेश नीति के मामले में सत्ताधारी दल अमरीका और चीन को महत्व दे रहे हैं वहीं लेबर पार्टी अपने पड़ोसी देश इंडोनेशिया, मलेशिया और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ रिश्ते बढ़ाने की बात कर रहे हैं और आम जनता इससे सहमत भी दिखाई दे रही है।
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