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अफगान शांति वार्ता से किसको, कितना फायदा, आखिर तालिबान से क्या बात कर रहा है अमरीका ?

अफगानिस्तान में सरकार और तालिबान के बीच वर्षों से संघर्ष है।
2001 में अमरीका ने तालिबान के खिालफ अभियान शुरू किया था।
अफगान शांति वार्ता के लिए अमरीका-तालिबान कई दौर की बातचीत कर चुके हैं।

May 12, 2019 / 10:44 pm

Anil Kumar

us-taliban meeting

अफगान शांति वार्ता से किसको, कितना फायदा, आखिर तालिबान से क्या बात कर रहा है अमरीका ?

नई दिल्ली। अफगानिस्तान ( Afghanistan ) में 18 साल से चल रहे युद्ध को खत्म कर शांति बहाली को लेकर अमरीका ( America ) और तालिबान के बीच छठे दौर का बातचीत बीते साल अक्टूबर में कतर की राजधानी दोहा में हुआ था। अफगानिस्तान में शांति बहाली को लेकर कई अन्य कदम भी उठाए जा रहे हैं। इनमें से एक सबसे बड़ा सवाल यह है कि अफगानिस्तान की सरकार इस वार्ता में शामिल नहीं है। अब सवाल यह उठता है कि आखिर अमरीका अफगान मामले में इतना रूची क्यों ले रहा है? इससे किसको फायदा हो रहा है और अमरीका तालिबान ( Taliban ) से क्या बात कर रहा है? दरअसल, 2001 में अमरीका में हुए हमले में आतंकी संगठन अल-कायदा के संरक्षण में तालिबानी आतंकियों ने अंजाम दिया था। इसके बाद से अमरीका सेना ने अफागानिस्तान में पैर जमा चुके तालिबानी सरकार को उखाड़ फेकने के लिए कार्रवाई शुरू कर दी। अब इतने वर्षों की लड़ाई के बाद तालिबान और अमरीका के बीच बातचीत जारी है पर अफगानिस्तान सरकार इसमें शामिल नहीं है। सशस्त्र समूहों का मानना है कि अफगानिस्तान अमरीका की कठपुतली है, इसलिए सीधे-सीधे अमरीका के साथ बातचीत की जाएगी। अभी बीते गुरुवार को ही अमरीकी राजदूत जल्मय खलीलजाद ने अफगानिस्तान शांति वार्ता को लेकर कहा कि तालिबान के साथ बातचीत बहुत तेजी से आगे बढ़ी है। हालांकि विशलेषकों का मानना है कि अमरीका से बातचीत शुरू करना कभी भी अफगानिस्तान में संघर्ष खत्म करने के करीब नहीं रहा है। आखिर इसके पीछे क्या कारण रहा है?

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अब तक अमरीका-तालिबान में क्या समहति बनी?

अफगान-अमरीकी राजनयिक खलीलजाद जो कि संयुक्त राष्ट्र ( United Nation ) में अमरीकी राजदूत (2007-2009) और अफगानिस्तान (2003-2005) रहे, अमरीका की ओर से और तालिबान की ओर से समूह के चीफ शेर मोहम्मद अब्बास स्टानिकजाई और मुल्ला अब्दुल गनी बरादर ( Mullah Abdul Ghani Baradar ) वार्ता में भाग लेते रहे हैं। तालिबान चाहता है कि दोहा में हुए वार्ता के मुताबिक अमरीकी सेना अफगानिस्तान से वापस चला जाए, जबकि अमरीका चाहता है अफगानी धरती का इस्तेमाल अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के लिए नहीं किया जाएगा। पर तालिबान ने कहा जब तक अमरीकी सेना अफगानिस्तान से वापस नहीं जाती है तब तक वह इस तरह के वादा नहीं करेंगे। इन्हीं दो विन्दुओं पर बातचीत लगातार जारी है। बीते गुरुवार को तालिबान की ओर से जारी बयान में भी कहा गया है कि दोनों पक्षों में सकारात्मक बातचीत रही है।

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अफगान सरकार वार्ता से बाहर क्यों?

अफगान शांति वार्ता में एक महत्वपूर्ण कड़ी सरकार है। पर इस वार्ता मे अफगान सरकार को शामिल नहीं किया गया है। आखिर ऐसा क्यों है? दरअसल तालिबान अफगान सरकार को बातचीत में शामिल नहीं करना चाहता है। हालांकि अमरीका यह चाहता है और इसके लिए कोशिश भी की कि तालिबान तैयार हो जाए। जब तालिबान तैयार नहीं हुआ तो अमरीका ने छोड़ दिया और फिर खुद ही इस वार्ता में शामिल हो गया। सरकार को शामिल नहीं करने को लेकर तालिबान ने कई कारण बताए हैं। तालिबान का कहना है कि 2001 में अमरीका ने उनकी सेना को उखाड़ फेंका था तो यहां पर उसकी सरकार है और बातचीत भी उसी से होगी। तालिबान का कहना है कि अफगान सरकार तो अमरीका का केवल एक कठपुतली है।

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क्यों सफल नहीं हो रहा अमरीका-तालिबान वार्ता?

वर्षों से अमरीका और तालिबान के बीच वार्ता चल रही है, लेकिन शांति बहाली को लेकर कोई ठोस कदम अभी तक नहीं बढ़ पाए हैं। विशलेषकों का मानना है कि दोनों पक्षों में कोई सहमति नहीं बन पाने के कारण ऐसा हुआ है। यह अफगान सरकार और गैर-तालिबान अफगान की असफलता है। तालिबान के साथ वार्ता के लिए प्रक्रिया आगे बढ़ती है, समझौते के टेबल पर सब आते हैं और अंततः समझौता नहीं हो पाता है। इसके पीछे एक और कारण है कि तालिबान को विश्वास है कि बिना समझौते के वह सैन्य ताकत के बल पर सत्ता हासिल कर लेगा। वार्ता सफल नहीं होने के पीछे एक कारण यह भी माना जा रहा है कि तालिबान के कई गुट हैं और शांति वार्ता पर सभी शामिल नहीं हो पाते हैं। अब जब ट्रंप सरकार ने अफगानिस्तान से सेना वापसी की घोषणा की है तो संभवत: शांति वार्ता आगे बढ़ सकता है और समझौते हो सकते हैं।

 

 

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