सरकार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के लिए इसी साल 25 फरवरी को गाइडलाइन जारी की थी और इन्हें लागू करने के लिए 3 महीने का समय दिया था। डेडलाइन मंगलवार यानी 25 मई को खत्म हो रही है।
गाइडलाइन के पालन को लेकर अब तक कोई आधिकारिक जवाब नहीं मिला है। लेकिन जब ये गाइडलाइन लागू की गईं और इसके लिए तीन महीने का वक्त दिया गया तब कुछ प्लेटफॉर्म ने वक्त बढ़ाने की बात कही। किसी ने 6 महीने मांगे तो किसी ने अपने अमरीका स्थिति हेडक्वार्टर से निर्देश मिलने का इंतजार करने का हवाला दिया।
– सोशल मीडिया कंपनियों को भारत में कंप्लायंस अधिकारी, नोडल अधिकारियों की नियुक्ति करने के लिए कहा गया था।
– इसके साथ ही उन सभी का कार्यक्षेत्र भारत में होना जरूरी रखा गया था।
– ये प्लेटफॉर्म ये भी बताएं कि शिकायत दर्ज करवाने की व्यवस्था क्या है।
– अधिकारी शिकायत पर 24 घंटे के भीतर ध्यान दें और 15 दिन के भीतर शिकायत करने वाले को बताएं कि उसकी शिकायत पर एक्शन क्या लिया गया और नहीं लिया गया तो क्यों नहीं लिया गया।
– शिकायत समाधान, आपत्तिजनक कंटेट की निगरानी, कंप्लायंस रिपोर्ट और आपत्तिजनक सामग्री को हटाना आदि के नियम हैं।
– ऑटोमेटेड टूल्स और तकनीक के जरिए ऐसा सिस्टम बनाएं, जिसके जरिए रेप, बाल यौन शोषण के कंटेंट की पहचान करें।
– सभी प्लेटफॉर्म हर महीने एक रिपोर्ट साझा करें। इस रिपोर्ट में महीने भर आईं शिकायतों और उन पर की गई कार्रवाई की जानकारी हो।
– टफॉर्म किसी आपत्तिजनक जानकारी को हटाता है तो उसे पहले इस कंटेंट को बनाने वाले, अपलोड करने वाले या शेयर करने वाले को इसकी जानकारी देनी होगी।
सरकार की ओर से दी गई समय अवधि खत्म होने तक किसी भी सोशल मीडिया का जवाब नहीं आता है तो सरकार कड़ी कार्रवाई कर सकती है।
वापस ले सकती है इम्युनिटी
एक्शन को तौर पर सरकार इन सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स को दी हुई इम्युनिटी वापस ले सकती है। इस इम्युनिटी के तहत सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स का रोल भारत में intermediary यानी बिचौलिए के तौर पर दर्ज है।
इम्युनिटी का ये असर होता है कि अगर कोई यूजर किसी पोस्ट को लेकर कोर्ट जाता है, तो इन प्लेटफॉर्म्स को अदालत में पार्टी नहीं बनाया जा सकता है।
लेकिन अगर सरकार इम्युनिटी हटा लेगी तो इन सोशल मीडया प्लेटफार्म को भी कोर्ट में पार्टी बनाया जा सकता है। ऐसे में सरकार ने ये फैसला लिया तो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स की मुश्किल बढ़ सकती है।