हालांकि, इस गंभीर संकट की स्थिति में केंद्र सरकार ने तमाम उद्योगों के लिए अभी इसकी आपूर्ति को रोक दिया है, मगर ऑक्सीजन की कमी लगातार बनी हुई है। आइए जानते हैं कि क्या होती है मेडिकल ऑक्सीजन और कैसे यह कोरोना बीमारी से जूझ रहे गंभीर मरीजों की जान बचाती है।
अति आवश्यक मेडिकल जरूरत में शामिल वैसे तो ऑक्सीजन प्राकृतिक तौर पर वातावरण में मौजूद रहती है। यह वह हवा होती है, जिसे स्वस्थ्य फेफडे वाले लोग आसानी से ले सकते हैं, मगर जैसे ही सांस की किसी बीमारी से प्रभावित मरीज, जिसमें कोरोना संक्रमण भी शामिल है, के फेफड़े पर असर होता है, तो वह वातावरण में मौजूद ऑक्सीजन सीधे तौर पर नहीं ले पाता है। ऐसे में उस मरीज को मेडिकल ऑक्सीजन की जरूरत होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ ने भी इसे अति आवश्यक मेडिकल जरूरत में शामिल किया है।
मेडिकल ऑक्सीजन एक तरह की दवा दरअसल, यहां यह जानना भी बहुत जरूरी है कि मेडिकल ऑक्सीजन एक तरह की दवा है और इसे डॉक्टर की सलाह पर ही किसी मरीज को दवा दिया जा सकता है। मेडिकल ऑक्सीजन एक खास तरह के प्लांट में तैयार होती है। इस दौरान वातावरण में मौजूद हवा से विभिन्न गैसों में से केवल ऑक्सीजन को अलग किया जाता है। हवा में ऑक्सीजन की मौजूदगी करीब 21 प्रतिशत ही होती है। इसके अलावा दूसरी गैस और धूल भी होती है। इसमें मानव शरीर में काम कर रही व्यवस्था हवा में से सिर्फ ऑक्सीजन ग्रहण करता है। किसी मरीज को देने के लिए एयर सेपरेशन तकनीक से यही ऑक्सीजन शुद्ध स्वरूप में हवा से अलग की जाती है।
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इसकी शुद्धता 99.5 प्रतिशत तक ऑक्सीजन को अन्य गैसों से अलग करके तरल यानी लिक्विड ऑक्सीजन के रूप में एकत्रित करते हैं। इसकी शुद्धता 99.5 प्रतिशत तक होती है। इसे बड़े-बड़े टैंकरों में जमा किया जाता है। यहां से वे अलग टैंकरों में एक खास तापामान पर देश के विभिन्न हिस्सों में डिस्ट्रीब्यूटरों तक पहुंचाई जाती है। डिस्ट्रीब्यूटर के यहां तरल ऑक्सीजन को गैस प्रारूप में बदल दिया जाता है और इसे सिलेंडरों में भरा जाता है। यही ऑक्सीजन सीधे मरीजों के काम आती है।
मेडिकल ऑक्सीजन तैयार करने के कुछ और भी तरीके हालांकि, मेडिकल ऑक्सीजन तैयार करने के कुछ और भी तरीके हैं। इसमें वैक्यूम स्विंग एडजोरप्शन प्रोसेस भी शामिल है। इस प्रोसेस के तहत भी ऑक्सीजन को हवा से छानकर अलग किया जाता है और इसे तरल स्वरूप में एकत्रित किया जाता है। बाद में इसे गैस प्रारूप में तब्दील कर दिया जाता है। इसके अलावा, एक प्रोसेस है इलेक्ट्रोलिसिस। इस प्रोसेस के तहत पानी में मौजूद ऑक्सीजन अलग की जाती है। इसके लिए पानी को इलेक्ट्रिक करंट के जरिए हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में तोड़ दिया जाता है। दोनों गैस जैसे ही अलग होती हैं, उन्हें मशीनों की मदद से सोख लिया जाता है। इस दौरान ऑक्सीजन तो बनती ही है, हाइड्रोजन गैस भी तैयार मिलती है, जिसके कई इस्तेमाल हैं।
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रोज सात हजार मीट्रिक टन ऑक्सीजन बनती है विशेषज्ञों की मानें तो भारत में हर रोज सात हजार मीट्रिक टन ऑक्सीजन बनती है। यहां सबसे बड़ी ऑक्सीजन तैयार करने वाली कंपनी आइनॉक्स है और यह रोज दो हजार टन ऑक्सीजन तैयार कर लेती है, मगर कई वजहों से इसका पूरा उपयोग नहीं हो पा रहा है। सारी प्रक्रियाएं होने के बावजूद भारत में ऑक्सीजन तैयार करने में दिक्कत आ रही है। देश में पर्याप्त संख्या में क्रॉयोजेनिक टैंकर नहीं है। ये ऐसे टैंकर हैं, जिनमें कम तापमान पर तरल ऑक्सीजन रखी जाती है। यही नहीं, मेडिकल ऑक्सीजन को उसके गंतव्य तक पहुंचाने के लिए सडक़ मार्ग व्यवस्था भी सही नहीं है। ऐसे में छोटी जगहों, जहां ऑक्सीजन के स्टोरेज की व्यवस्था नहीं है। वहां मरीजों को ऑक्सीजन की कमी होने पर होने पर जीवन का संकट बढ़ जाता है, क्योंकि ऑक्सीजन पहुंचाने में समय लगता है।
कारखानों के लिए ऑक्सीजन के निर्माण पर रोक देश में कोरोना संक्रमण के बढ़ रहे संकट को दूर करने के लिए 22 अप्रैल से ही 9 उद्योगों को छोडक़र सभी कारखानों के लिए ऑक्सीजन के निर्माण पर रोक लग चुकी है। साथ ही यह निर्देश भी दिया गया है कि प्लांट केवल मेडिकल ऑक्सीजन ही तैयार किया जाए। साथ ही स्टोरेज के लिए बड़े टैंकर बनवाने पर भी जोर दिया जा रहा है। इससे मरीज की जरूरत पर तुरंत उसे ऑक्सीजन की आपूर्ति की जा सकेगी।