यह बात जल पुरुष के रूप में ख्यात तरुण भारत संघ के अध्यक्ष राजेंद्र सिंह ने रविवार को राजस्थान पत्रिका से बातचीत में कही। उन्होंने कहा कि सरकार वर्षा जल संग्रहण कार्य को समाज का काम नहीं मानती। सरकार यह मानती है कि वह ही सबको पानी पिलाएगी। यह उनका घमंड है। ऐसे में समाज काम करना छोड़ देता है। सरकार का सिंचाई विभाग तालाब,बांध, चेक डेम बनाने में नहीं देता। जब मैंने किसी जमाने में कार्य शुरू किया था, तब हम लोगों के खिलाफ सेक्शन 55 और 58 में कई मुकदमें दर्ज हुए, लेकिन हम कहते हुए लगे रहे कि यह काम हमारे लिए देश के लिए किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इस कानून को बदलने के लिए हमने काफी प्रयास किए, लेकिन सिंचाई विभाग इसे बदलने के लिए तैयार नहीं है। हमारे नेता भी इस पानी के कार्य से अपनी आय बढ़ाना चाहते हैं क्योंकि जब पानी का काम ठेकेदार करता है तो नेताओं और इंजीनियरों की आय बढ़ती है। उन्होंने कहा कि जब हम राजस्थान में कार्य कर रहे थे तब तत्कालिन राष्ट्रपति काम देखने आए और बोले कि इसी तरह के कार्य की जरूरत है, लेकिन सब जगह तो राष्ट्रपति नहीं जा सकते। उन्होंने कहा कि देश में महाराष्ट्र, कनार्टक, मध्यप्रदेश आदि राज्यों की सरकारें हमें सहयोग करती है, वहां हमने ज्यादा कार्य किया।
छोटे स्ट्रक्चर पर हो रहा कार्य
प्रदेश में हमारी शुरुआत के बाद कई संस्थाएं आगे आई जैसे वेल्स ऑफ इंडिया, वाटर हार्वेस्ट, तरुण भारत संघ जैसी संस्थाओं ने यह तय किया कि सरकार जो कार्य नहीं करने देती वह काम नहीं करेंगे। जो छोटी पुरानी तकनीक और ढांचे जो कानून के दायरे से बाहर है, उस पर कार्य किया जा रहा है।
नीचे से हो विकास
वाटर हार्वेस्ट संस्था के संस्थापक मार्क टूली ने बताया कि भारत की पुरानी संस्कृति और ज्ञान के उपयोग से जल संरक्षण किया जा सकता है। विकास नीचे से ऊपर की ओर होना चाहिए, ना कि ऊपर से नीचे की ओर। राजनीति गांवों में भी होती है। जहां झगड़ा होगा, वहां विकास नहीं हो सकता। सरकार का हर कार्य के लिए इंतजार करना जहां गलत है, मगर सरकार को भी गांवों की बात सुननी होगी। जल संरक्षण के लिए सरकार मदद कर सकती है।