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Vijay Diwas 2020: भारत-पाक युद्ध में बांग्लादेश ही नहीं कश्मीर का भी था कनेक्शन, जानिए क्यों किया जाता है याद

Vijay Diwas 2020 भारत ने 1971 के युद्ध में चटाई पाकिस्तान को धूल
भारत की बदौलत मानचित्र पर हुआ ‘बांग्लादेश’ का उदय
इस युद्ध में कश्मीर का भी था खास कनेक्शन

Dec 16, 2020 / 08:52 am

धीरज शर्मा

India Pakistan War 1971

1971 की जंग में कश्मीर का कनेक्शन

नई दिल्ली। 16 दिसंबर, वर्ष 1971 का विजय दिवस ( Vijay Diwas 2020 ) भारतीय इतिहास में वीर जवानों के हौसले और जज्बे के लिए जाना जाता है। जब भारत ने पाकिस्तान को युद्ध के मैदान में धूल चटाई। भारत की तरफ बढ़ते नापाक इरादों को तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ( Indira Gandhi ) ने ध्वस्त कर दिया था।
वो दिन बेहद ही खास था जब दुनिया के मानचित्र पर एक नए राष्ट्र का उदय हुआ, जिसे हम सब बांग्लादेश के नाम से जानते हैं। बांग्लादेश का उदय पाकिस्तान के बंटवारे के जरिए हुआ जो पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था। लेकिन इस ऐतिहासिक जीत और बांग्लादेश के उदय के बीच इस युद्ध से कश्मीर का भी कनेक्शन है। आईए जानते हैं क्यों इस युद्ध के साथ कश्मीर को भी याद किया जाता है।
विजय दिवस, भारत की सबसे बड़ी जीत, जिसने पाकिस्तान के कर दिए दो टुकड़े

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पश्चिमी पाकिस्तान यानी की मौजूद समय का पाकिस्तान अपने उस हिस्से को दोयम दर्जे का समझता था जो वर्तमान में बांग्लादेश है। लेकिन उसके इस दोयम दर्जे के हिस्से भारत ने अपनी सूझ बूझ और वीर जवानों के हौसले के दम पर पाकिस्तान ने आजाद कर नए राष्ट्र का दर्जा दिलाया था।
नए देश का हुआ उदय
16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान से चले 13 दिन के युद्ध में ही इंदिरा ने पाकिस्तान को पानी पिला दिया था। पूर्वी पाकिस्तान में मुक्ति वाहिनी के जरिए संघर्ष शुरू हुआ, जिसमें भारत से मदद मांगी गई। भारत ने साथ भी दिया और बांग्लादेश को आजाद भी कराया। इस जीत ने दुनिया में भारत का दबदबा बढ़ाया।
भुट्टो की बांह मरोड़ सकती थीं इंदिरा
जब 71 की लड़ाई में पाकिस्तान हार गया और घुटने टेक दिया। यहीं से जुड़ा इस युद्ध में कश्मीर का कनेक्शन। दरअसल िस युद्ध में भारत की जीत के साथ ही तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पास कश्मीर के मुद्दे पर जुल्फिकार अली भुट्टों की बांह नहीं मरोड़ने का मौका था।
उस वक्त भारत की कमान इंदिरा गांधी के हाथों थीं जिन्हें दुनिया आयरन लेडी के तौर पर जानती थी।

क्या चूक गईं इंदिरा गांधी
1971 के युद्ध में पाकिस्तानी सेना की करारी हार हुई थी और भारतीय फौज के कब्जे में करीब एक लाख पाकिस्तानी सैनिक थे। पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर करने के बाद पूर्व पीएम इंदिरा गांधी के पास एक बेहतरीन विकल्प था कि वे कश्मीर के मुद्दे पर जुल्फिकार अली भुट्टो पर दबाव बढ़ा सकें।
इस दौरान इंदिरा कश्मीर के मुद्दे को हमेशा के लिए सुलझा सकती थीं। लेकिन ऐसा नहीं हो सका।

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वार्ता टेबल पर बढ़ सकता था दबाव
बड़ी संख्या में पाकिस्तानी सैनिकों के सरेंडर के बाद जब इंदिरा गांधी की जुल्फिकार अली भुट्टो के साथ टेबल पर वार्ता हुई, उस दौरान उनके पास कश्मीर मुद्दे को हमेशा के लिए हल करने का विकल्प था।
वार्ता के टेबल पर इंदिरा गांधी दबाव बना सकती थीं। लेकिन जुल्फिकार अली भुट्टो की हार के बाद भी कूटनीति काम आई और इंदिरा ने इसको लेकर कोई कदम ही नहीं उठाया। इसके साथ ही कश्मीर का मुद्दा विवादित ही रह गया।
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कांग्रेस को घेरती आई बीजेपी
इंदिरा की इसी चूक को लेकर बीजेपी लगातार कांग्रेस को घेरती आई है। बीजेपी इसे इंदिरा गांधी की दुरदर्शिता की कमी के तौर पर बताती आई है।
बीजेपी का मानना है कि एक बेहरीन मौका हाथ से निकल गया। अगर कश्मीर के मुद्दे को पाकिस्तानी सैनिकों की रिहाई से जोड़ा गया होता तो जिस तरह के हालात का हम सामना कर रहे हैं वो नहीं करते।
71 की लड़ाई से पाकिस्तान कभी उबर नहीं पाया और बदले में वो कश्मीर के जरिए अपनी हार का गुबार निकालता रहता है, जिसका खामियाजा अब तक देश भुगत रहा है।

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