ऑक्सफोर्ड ने अब एक नया शोध किया है। इसके मुताबिक, यदि ऑक्सफोर्ड एस्ट्रेजेनेका वैक्सीन की दो खुराक के बीच समय का अंतर करीब 10 महीने रखा जाए, तो कोरोना के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता अधिक बेहतर तरीके से काम करेगी। शोध में यह भी बताया गया है कि यदि तीसरा बूस्टर शॉट भी लगाया जाए, तो वह एंटीबॉडी बढ़ाने में मददगार साबित होगा।
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विशेषज्ञों का मानना है कि इस शोध के बाद वैक्सीन की कमी झेल रहे देशों में वैक्सीनेशन अभियान को सही तरीके से चलाने में मदद मिलेगी। शोध में यह भी सामने आया है कि वैक्सीन की पहली खुराक के बाद करीब एक साल तक एंटीबॉडी बनी रहती है। वहीं, बूस्टर डोज के लिए बताया गया कि यह दूसरी खुराक के छह महीने बाद दिया जा सकता है।
दरअसल, भारत का सीरम इंस्टीट्यूट ऑक्सफोर्ड-एस्ट्रेजेनेका वैक्सीन का सहयोगी रहा है। इस वैक्सीन का भारत में ट्रायल सीरम इंस्टीट्यूट ने किया है। सीरम इंस्टीट्यूट ने इस वैक्सीन का नाम कोविशील्ड रखा है। मौजूदा समय में भारत में सबसे अधिक आपूर्ति कोविशील्ड वैक्सीन की ही हो रही है। हालांकि, देश में वैक्सीन की दो खुराक के बीच के अंतर को कई बार बदला जा चुका है। इस समय यह अंतराल 12 से 16 हफ्ते का है।
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सीरम इंस्टीट्यूट की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक, जून में अब तक कोविशील्ड वैक्सीन की करीब दस करोड़ खुराक का उत्पादन किया जा चुका है। कोरोना महामारी की तीसरी लहर की आशंका को देखते हुए देश में वैक्सीनेशन को तेज कर दिया गया है। वहीं, गत 21 जून से शुरू हुए राष्ट्रव्यापी निशुल्क कोविड-19 टीकाकरण अभियान के बाद बीते छह दिन में रोज औसतन 69 लाख खुराक दी गई हैं।
अच्छी बात यह है कि सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया कोरोना वायरस से बचाव के लिए कोवोवैक्स नाम से एक और वैक्सीन का निर्माण कर रहा है। क्लीनिकल ट्रायल में कोवोवैक्स 90 प्रतिशत से अधिक असरदार पाई गई है। इसके साथ ही जुलाई से देश में बच्चों पर भी कोवोवैक्स वैक्सीन का क्लीनिकल ट्रायल शुरू हो सकता है।