धर्म के सर्वोच्च नियमों के मुताबिक परंपराएं हों
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले पर कहा कि इस मामले का असर सिर्फ इस मंदिर पर नहीं बल्कि मस्जिदों में महिलाओं की एंट्री, अग्यारी में पारसी महिलाओं के प्रवेश पर भी दिखेगा। अपने फैसले के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धर्म के सर्वोच्च नियमों के मुताबिक परंपरा होनी चाहिए। मुख्य न्यायाधिश रंजन गोगोई ने बताया कि धार्मिक परंपराओं को सार्वजनिक आदेश, नैतिकता और संविधान के प्रावधानों के विरुद्ध नहीं होना चाहिए।
3-2 से फैसला बड़ी बेंच को सौंपा गया
पांच जजों की बेंच में 3-2 से फैसला को बड़ी बेंच को सौंपा गया है। जस्टिस आर.एफ. नरीमन और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की राय अलग थी। दो जजों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला मानने के लिए सभी बाध्य हैं।
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कोर्ट में दाखिल की गई थी पुनर्विचार याचिका
बता दें कि सबरीमाला मामले में सुप्रीम कोर्ट पहले अपना फैसला सुना चुकी है, जिसमें कोर्ट ने मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की अनुमति दी थी, लेकिन अदालत के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई। जानकारी के मुताबिक, कोर्ट के 2018 के फैसले पर पुनर्विचार की मांग को लेकर कुल 65 याचिकाएं दायर की गई थीं। उन याचिकाओं पर सुनवाई के बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
मंदिर के आसपास बढ़ाई गई सुरक्षा
सबरीमाला विवाद पर कोर्ट के फैसले से पहले मंदिर के आसपास सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है। सुप्रीम कोर्ट में जो पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई है, उसमें कहा गया है कि अदालत को लोगों की धार्मिक अधिकारों में दखल नहीं देना चाहिए।
क्या है सबरीमाला मामला?
सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर लगी पाबंदी हटा दी थी। साथ ही कहा था कि महिलाओं के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश पर पाबंदी असंवैधानिक है। इस फैसले का भगवान अयप्पा के अनुयायी भारी विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि मंदिर के भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी हैं और 10 से 50 साल की महिलाओं के प्रवेश से मंदिर की प्रकृति बदल जाएगी। इसी को लेकर कुछ महीनों तक तो भारी घमासान मचा था।
SC पहले ही दे चुकी है अनुमति
सबरीमाला मामले में दायर पुनर्विचार याचिका पर चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, आरएफ नरीमन, एएम खनविल्कर, डीवाई चंद्रचूड़ और इंदु मल्होत्रा ने सुनवाई की है। इससे पहले 28 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायमूर्तियों की संविधान पीठ ने सबरीमाला मामले में 4:1 से अपना फैसला सुनाया था और सभी उम्र की महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश की इजाजत दी थी।