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सुप्रीम कोर्ट ने खत्म की आईपीसी की धारा 497, व्यभिचार को अपराध मानने से इनकार

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ आज यानी गुरुवार को व्यभिचार कानून से जुड़ी भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा-497 पर अपना फैसला सुना दिया है।

Sep 27, 2018 / 01:49 pm

Mohit sharma

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अडल्ट्री यानी व्याभिचार को अपराध बताने वाले कानूनी प्रावधान को असंवैधानिक करार दिया है। कोर्ट के पांच सदस्यी वाली संवैधानिक पीठ ने अपने फैसले में कहा कि व्याभिचार से संबंधित भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी की धारा 497 संविधान के खिलाफ है। मुख्य न्यायाधीश और जस्टिस खनविलकर ने फैसला सुनाते हुए कहा हम आईपीसी की धारा 497 और आपराधिक दंड संहिता की धारा 198 को असंवैधनिक क़रार देते हैं। आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट को जिस संवैधानिक पीठ धारा 497 पर फैसला सुनाया है, उसमें मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खनविलकर, जस्टिस आरएफ़ नरीमन, जस्टिस इंदू मल्होत्रा और जस्टिस चंद्रचूड़ शामिल हैं।

व्याभिचार पर फैसले के मुख्य बातें—

1— पत्नी 24 घंटे पति और बच्चों का खयाल रखती है।
2— चीन जापान और यूरोप में एडल्ट्री अपराध नहीं
3— पत्नी का मालिक नहीं हो सकता पति
4— 497 सम्मान से जीने के अधिकार के खिलाफ
5— धारा 497 मनमानी का अधिकार देती है
6— महिला का अस्म्मान गलत
7— शादी के बाद संबंध अपराध नहीं
8— आईपीसी की धारा 497 समानता के अधिकार के खिलाफ
9— अवैध संबंध को सीधे अपराध नहीं माना जा सकता
10— तलाक के लिए अवैध संबंध आधार लेकिन अपराध नहीं
11— सुप्रीम कोर्ट ने व्याभिचार की धारा 497 को खत्म किया
12— सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों का सर्वसम्मति से फैसला
13— पुरुषों को मनमाना अधिकार देने वाला कानून खत्म
14— अपराध मानने से उन पर असर जो शादीशुदा जिंदगी से नाखुश हैं

इस दौरान जस्टिस नरीमन ने कहा कि यह कानून समानता के अधिकार और महिलाओं को एकसमान अधिकारों के प्रावधान का उल्लंघन है। कोर्ट ने कहा कि व्याभिचार तलाक का आधार हो सकता है, लेकिन अपराध नहीं है। इसके साथ ही कोर्ट ने 1860 में बने इस 158 साल पुराने कानून को खत्म कर दिया। आपको बता दें कि इटली निवासी एनआरआई जोसेफ शाइन ने दिसंबर 2017 में सुप्रीम कोर्ट में व्याभिचार कानून को लेकर एक जनहित याचिका दायर की थी। याचिका में उन्होंने अपील थी कि आईपीसी की धारा 497 के तहत बने व्याभिचार कानून में पुरुष और महिला दोनों को ही बराबर सजा दी जानी चाहिए। याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब तलब किया। कोई दाखिल अपने हलफनामें में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा करने के लिए व्याभिचार कानून में बदलाव करने पर कानून काफी हल्का हो जाएगा, जिससे समाज पर इसका गलत प्रभाव पड़ेगा।

दरअसल, सरकार ने ‘शादी की पवित्रता’ को बनाए रखने के लिए भारतीय दंड संहिता(आईपीसी) की धारा 497 का बचाव किया है, जिसपर न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सरकार से पूछा था कि वह कैसे ‘पवित्रता’ बचाए रखेगी, जब महिला का पति अगर महिला के पक्ष में खड़ा हो जाए तो विवाहेतर संबंध गैर दंडनीय बन जाता है। न्यायमूर्ति नरीमन ने पूछा कि तब विवाह की पवित्रता कहां चली जाती है, जब पति की सहमति होती है। चीफ जस्टिस ने कहा था कि हम कानून बनाने को लेकर विधायिका की क्षमता पर सवाल नहीं उठा रहे हैं, लेकिन आईपीसी की धारा 497 में ‘सामूहिक अच्छाई’ कहां है। पति केवल अपने जज्बात पर काबू रख सकता है और पत्नी को कुछ करने या कुछ नहीं करने का निर्देश नहीं दे सकता।”

 

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क्या है व्यभिचार कानून?

दरअसल, भारतीय कानून में 158 साल पुरानी आईपीसी की धारा-497 के तहत अगर कोई विवाहित पुरुष किसी गैर—विवाहित महिला के साथ शारीरिक संबंध बनाता है आपसी रजामंदी से तो उस महिला का पति एडल्टरी (व्यभिचार) कानून के तहत उक्त पुरुष के खिलाफ केस दर्ज करा सकता है। जबकि इसी कानून के अनंतर्गत वह व्यक्ति अपनी पत्नी के खिलाफ कोई केस फाइल नहीं कर सकता। यहां तक कि विवाहेतर संबंध में लिप्त उक्त पुरुष की पत्नी भी दूसरी महिला के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर सकती है। कानून में यह भी प्रावधान है कि विवाहेतर संबंध में लिप्त पाए जाने वाले पुरुष के खिलाफ केवल उसकी साथी महिला का पति की ओर से से ही कार्रवाई की जा सकती है। किसी अन्य की ओर से उस पुरुष के खिलाफ कोई कानूनी कदम नहीं उठाया जा सकता।

 

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