उस वक्त दुनिया भर की महाशक्तियां विश्वयुद्ध में उलझी हुई थी, ब्रिटेन भी मित्र राष्ट्रों के साथ जंग लड़ रहा था। दूसरी ओर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिन्द फौज का गठन कर भारत की ओर कूच का नारा दिया। उनका एकमात्र उद्देश्य भारत को सैन्य बल का प्रयोग करते हुए शीघ्रातिशीघ्र आजादी दिलाना था। ऐसे मौके पर गांधीजी ने मामले की नजाकत को भांपते हुए 8 अगस्त 1942 की रात ही भारतीयों से “करो या मरो” का आह्वान करते हुए सविनय अवज्ञा आंदोलन छेड़ दिया।
एक साथ कई मोर्चों पर घिरी ब्रिटिश सरकार ने तुरंत ही गांधीजी तथा अन्य बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। हालांकि इससे आंदोलन पर कोई असर नहीं पड़ा वरन अन्य छोटे नेताओं ने अपने-अपने क्षेत्र में इसकी कमान संभाल ली और देखते ही देखते यह आंदोलन पूरे भारत में प्रचण्ड हो गया। इस आंदोलन में लाल बहादुर शास्त्री पहली बार एक नेता के रूप में उभर कर सामने आए।
अंग्रेजों ने कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सभी सदस्यों को गिरफ्तार कर कांग्रेस को गैरकानूनी संस्था घोषित कर दिया। राष्ट्रव्यापी इस आंदोलन में सरकारी आंकड़ों के अनुसार 940 लोग मारे गए जबकि 1630 घायल हो गए थे, इसी तरह 60,000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया। भारत के आने वाले भविष्य पर इस आंदोलन का बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा। एक तरफ जहां सुभाष चन्द्र बोस सशस्त्र आंदोलन छेड़ रहे थे वही दूसरी ओर महात्मा गांधी अहिंसक आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे।
संक्षेप में, हम कह सकते हैं कि भारत छोड़ो आंदोलन ने भारतीय स्वाधीनता संग्राम को एक नई दिशा और ऊर्जा प्रदान की जिसके चलते इसमें तेजी आई और 1947 में अंग्रेजों को भारत छोड़कर जाना पड़ा।