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पंजाब में दलितो का अनोेखा आंदोलन, नाम के आगे लगा रहे हैं दैत्य-राक्षस जैसे सरनेम

साल 1925 में मद्रास से इनके लिए आंदोलन शुरू करने वाले ईवी रामस्वामी पेरियार ने कभी नहीं सोचा होगा कि उनका द्रविड़ आंदोलन कभी भारत के बिल्कुल उत्तरी कोने में अपनी साख बनाने लग जाएग।

Jul 06, 2018 / 04:50 pm

Shweta Singh

Punjab dalits opting dravidian identity as a part of their andolan

पंजाब में दलितो का अनोेखा आंदोलन, नाम के आगे लगा रहे हैं दैत्य-राक्षस जैसे सरनेम

जालंधर। पंजाब के दलित अपनी असली पहचान छोड़कर अजीबो-गरीब उपनाम अपना रहे हैं। साल 1925 में मद्रास से इनके लिए आंदोलन शुरू करने वाले ईवी रामस्वामी पेरियार ने कभी नहीं सोचा होगा कि उनका द्रविड़ आंदोलन कभी भारत के बिल्कुल उत्तरी कोने में अपनी साख बनाने लग जाएगा। दरअसल पंजाब के दलित अब द्रविड़ या अनार्य की पहचान अपना रहें हैं।

नाम के आगे दैत्य, दानव, अछूत जैसे सरनेम

जानकारी के मुताबिक इनमें से कई दलित अपने नाम के आगे दैत्य, दानव, अछूत और यहां तक कि राक्षस तक लगा रहे हैं। बता दें कि आंदोेलन के 90 वर्षों के बाद अब पंजाब के कई दलितों ने खुद की पहचान द्रविड़ बताना शुरू कर दिया है। खास बात ये है कि इनमें से कई ऐसे भी हैं जिन्हें पेरियार या उनके दक्षिण भारत के आंदोलन के बारे में किसी तरह की भी कोई जानकारी नहीं हैं लेकिन फिर भी उनको ये लगता है कि उन्हें खुद को अलग तरह से परिभाषित करने की जरूरत है। गौरतलब है कि पंजाब में भारत के अन्य राज्यों की तुलना की जाए तो पंजाब में दलितों का आंकड़ा सबसे अधिक है। पंजाब में ये आकड़ा 32 फीसदी है।

सबसे ज्यादा मामले वाल्मीकि समुदाय में

बता दें कि द्रविड़ पहचान अपनाने का ये चलन वाल्मीकि समुदाय में सबसे ज्यादा देखा जा रहा है। इससे पहले भी 50 साल पहले पंजाब में इस तरह एक पहचान बनाने की शुरुआत की गई थी। हालांकि उस वक्त कुछ लोगों ने ही इस कदम में सक्रियता दिखाई थी। इस मामले के अचानक तूल पकड़ने के कारण ये भी है कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एसटी-एसटी ऐक्ट में संशोधन किया था, जिसके बाद दलितों के बीच ये मुद्दा गर्म है। इन सरनेम को बदलने की औपचारिक प्रक्रिया की मुश्किलें देखते हुए फिलहाल इन दलितों ने अनौपचारिक रूप से ही अपने नामों को बदल दिया है और खुद को अपने चुने हुए सरनेम से पहचाना जाना पसंद करते हैं।

शहरों में रावण सेना यूनिट की शुरुआत करना चाहते हैं

इस बारे में आदि धर्म समाज के संस्थापक दर्शन रतन रावण ने जानकारी देते हुए कहा कि, ‘सुप्रीम कोर्ट का फैसला के आने के बाद 13 अप्रैल को पंजाब के कपूरथला के फगवाड़ा में दलितों और दक्षिणपंथी हिंदू गुटों के लोगों के बीच हुए झड़प में एक वाल्मीकि युवक मारा गया था। जिसके बाद से इस संबंध के हितों को देखा गया।’ बता दें कि दर्शन रतन का संगठन ही इस आंदोलन की अगुवाई कर रहा है। उन्होंने आगे बताया कि,’हम द्रविड़ उपनाम को अपना रहे हैं। हमारे धार्मिक रीति-रिवाज भी हिंदुओं के रिवाज से अलग हैं। हम वाल्मीकि की पूजा करते हैं।’ वहीं रावण सेना के प्रमुख लखबीर लंकेश का कहना है कि उनके समुदाय के लोग शहरों में रावण सेना यूनिट की शुरुआत करना चाहते हैं।’

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