मन की बात पर कोरोना का प्रभाव पीएम ने अपने संबोधन में कहा कि कोरोना के प्रभाव से ‘मन की बात’ भी अछूती नहीं रही है। पिछली बार ‘मन की बात’ के दौरान तब पैसेंजर-बसें और हवाई सेवा बंद थीं। इस बार बहुत कुछ खुल चुका है। श्रमिक स्पेशल और अन्य विशेष ट्रेनें भी शुरू हो गई हैं। तमाम सावधानियों के साथ हवाई जहाज उड़ने लगे हैं, धीरे-धीरे उद्योग भी चलना शुरू हुए हैं।
विशेषज्ञों ने की Coronavirus से निपटने के तरीकों की आलोचना, कम्यूनिटी ट्रांसमिशन की आशंका प्रबल यानी अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा अब चल पड़ा है। ऐसे में हमें और ज्यादा सतर्क रहने की आवश्यकता है। दो गज की दूरी का नियम हो, मुंह पर मास्क लगाने की बात हो, जहां तक हो सके वहा तक घर में रहना हो, इन सारी बातों के पालन में जरा भी ढिलाई नहीं बरतनी चाहिए।
भारत की बड़ी उपलब्धि प्रधानमंत्री ने देशवासियों के सामूहिक प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कोरोना के खिलाफ लड़ाई बहुत मजबूती से लड़ी जा रही है। जब हम दुनिया की तरफ देखते हैं, तो हमें अनुभव होता है कि वास्तव में भारतवासियों की उपलब्धि कितनी बड़ी है।
हमारी जनसंख्या ज़्यादातर देशों से कई गुना ज्यादा है और देश में चुनौतियां भी भिन्न प्रकार की हैं, लेकिन फिर भी देश में कोरोना उतनी तेजी से नहीं फ़ैल पाया, जितना अन्य देशों में फैला। कोरोना से होने वाली मृत्यु दर भी हमारे देश में काफी कम है।
सेवा परमो धर्म: का संकल्प उन्होंने कहा कि जो नुकसान हुआ है, उसका दुःख सबको है। लेकिन जो कुछ भी बचा पाएं हैं, वो निश्चित तौर पर देश की सामूहिक संकल्पशक्ति का ही परिणाम है। इतने बड़े देश में हर-एक देशवासी ने खुद इस लड़ाई को लड़ने की ठानी है, ये पूरी मुहिम पीपुल ड्रिवेन है।
देशवासियों की संकल्पशक्ति को लेकर वो बोले कि इसके साथ एक और शक्ति इस लड़ाई में सबसे बड़ी ताकत बनी- वो है देशवासियों की सेवाशक्ति। वास्तव में इस माहामारी के समय भारतवासियों ने दिखा दिया है कि सेवा और त्याग का हमारा विचार, केवल हमारा आदर्श नहीं है, बल्कि भारत की जीवनपद्धति है और हमारे यहां तो कहा गया है- सेवा परमो धर्म:, सेवा स्वयं में सुख है, सेवा में ही संतोष है।
उन्होंने सेवा भाव को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि दूसरों की सेवा में लगे व्यक्ति के जीवन में कोई अवसाद या तनाव कभी नहीं दिखता। उसके जीवन में, जीवन को लेकर उसके नजरिए में भरपूर आत्मविश्वास, सकारात्मकता और जीवंतता प्रतिपल नजर आती है।
कोरोना योद्धाओं की प्रशंसा कोरोना योद्धाओं को लेकर पीएम बोले कि हमारे डॉक्टर्स, नर्सिंग स्टाफ, सफाईकर्मी, पुलिसकर्मी, मीडिया के साथी ये सब जो सेवा कर रहे हैं, उसकी चर्चा मैंने कई बार की है। सेवा में अपना सब कुछ समर्पित कर देने वाले लोगों की संख्या अनगिनत है। ऐसे ही एक सज्जन हैं तमिलनाडु में सैलून चलाने वाले के सी मोहन। इन्होंने अपनी बेटी की पढ़ाई के लिए पांच लाख रुपये बचाए थे, लेकिन पूरी राशि इस वक्त जरूरतमंदों, गरीबों की सेवा के लिए खर्च कर दी।
इसी तरह अगरतला में ठेला चलाकर जीवनयापन करने वाले गौतमदास, अपनी बचत में से हर रोज़ दाल-चावल खरीदकर जरूरतमंदों को खाना खिला रहे हैं। पंजाब के पठानकोट में दिव्यांग राजू ने दूसरों की मदद से जोड़ी गई छोटी सी पूंजी से तीन हजार से अधिक मास्क बनवाकर लोगों में बांटे।
उन्होंने बताया कि देश के सभी इलाकों से महिला स्वयं सहायता समूह के परिश्रम की भी अनगिनत कहानियां इन दिनों सामने आ रही हैं। गांवों में, छोटे कस्बों में, हमारी बहनें-बेटियां हर दिन हजारों मास्क बना रही हैं। ऐसे कितने ही उदाहरण हर दिन दिखाई और सुनाई पड़ रहे हैं।
कितने ही लोग खुद भी मुझे नमो ऐप और अन्य माध्यमों के जरिए अपने प्रयासों के बारे में बता रहे हैं। कई बार समय की कमी के चलते बहुत से लोगों का, बहुत से संगठनों का, बहुत सी संस्थाओं का नाम नहीं ले पाता हूं। सेवा-भाव से लोगों की मदद कर रहे ऐसे सभी लोगों की मैं प्रशंसा करता हूँ, उनका आदर करता हूं और उनका तहेदिल से अभिनन्दन करता हूं।
इन्नोवेशन है जरूरत पीएम ने इन्नोवेशन को लेकर कहा कि एक और बात जो मेरे मन को छू गई है वो है संकट की इस घड़ी में इन्नोवेशन। तमाम देशवासी गांवों से लेकर शहरों तक, हमारे छोटे व्यापारियों से लेकर स्टार्टअप तक, हमारी लैब्स कोरोना के खिलाफ लड़ाई में नए-नए तरीके इज़ाद कर रहे हैं, नए-नए इन्नोवेशन कर रहे हैं।
नासिक के राजेंद्र यादव सतना गांव के किसान हैं। अपने गांव को कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए उन्होंने अपने ट्रैक्टर से जोड़कर एक सैनेटाइजेशन मशीन बना ली, और ये मशीन बहुत प्रभावी तरीके से काम कर रही है। इसी तरह सोशल मीडिया में कई तस्वीरें देख रहा था।
कई दुकानदारों ने दो गज की दूरी के लिए दुकान में बड़े पाइपलाइन लगा लिए हैं, जिसमें एक छोर से वो ऊपर से सामान डालते हैं, और दूसरी छोर से ग्राहक अपना सामान ले लेते हैं। इस दौरान पढ़ाई के क्षेत्र में भी कई अलग-अलग इन्नोवेशन शिक्षकों और छात्रों ने मिलकर किए हैं। ऑनलाइन क्लासेज, वीडियो क्लासेज उसको भी अलग-अलग तरीकों से इन्नोवेट किया जा रहा है। कोरोना की वैक्सीन पर हमारी लैब्स में जो काम हो रहा है उस पर तो दुनियाभर की नज़र है और हम सबकी आशा भी।
किसी भी परिस्थिति को बदलने के लिए इच्छाशक्ति के साथ ही बहुत कुछ इन्नोवेशन पर भी निर्भर करता है। हजारों सालों की मानव-जाति की यात्रा लगातार इन्नोवेशन से ही इतने आधुनिक दौर में पहुंची है, इसलिए इस महामारी पर जीत के लिए हमारे ये विशेष इन्नोवेशन भी बहुत बड़ा आधार हैं।
गरीब-मजदूर सबसे ज्यादा प्रभावित उन्होंने बताया कि कोरोना के खिलाफ़ लड़ाई का यह रास्ता लंबा है। एक ऐसी आपदा जिसका पूरी दुनिया के पास कोई इलाज ही नहीं है, जिसका कोई पहले का अनुभव ही नहीं है, तो ऐसे में नई-नई चुनौतियां और उसके कारण परेशानियां हम अनुभव भी कर रहें हैं। ये दुनिया के हर कोरोना प्रभावित देश में हो रहा है और इसलिए भारत भी इससे अछूता नहीं है।
देश में भी कोई वर्ग ऐसा नहीं है जो कठिनाई में न हो परेशानी में न हो, और इस संकट की सबसे बड़ी चोट अगर किसी पर पड़ी है तो हमारे गरीब, मजदूर, श्रमिक वर्ग पर पड़ी है। उनकी तकलीफ, उनका दर्द, उनकी पीड़ा, शब्दों में नहीं कही जा सकती। हम में से कौन ऐसा होगा जो उनकी और उनके परिवार की तकलीफों को अनुभव न कर रहा हो। हम सब मिलकर इस तकलीफ को, इस पीड़ा को बांटने का प्रयास कर रहे हैं, पूरा देश प्रयास कर रहा है।
हमारे रेलवे के साथी दिन-रात लगे हुए हैं। केंद्र हो, राज्य हो, स्थानीय स्वराज की संस्थाएं हो- हर कोई दिन-रात मेहनत कर रहें हैं। जिस प्रकार रेलवे के कर्मचारी आज जुटे हुए हैं, वे भी एक प्रकार से अग्रिम पंक्ति में खड़े कोरोना वॉरियर्स ही हैं। लाखों श्रमिकों को ट्रेनों से और बसों से सुरक्षित ले जाना उनके खाने-पाने की चिंता करना, हर जिले में क्वारंटाइन केंद्रों की व्यवस्था करना, सभी की टेस्टिंग, चेक-अप, उपचार की व्यवस्था करना, ये सब काम लगातार चल रहे हैं, और बहुत बड़ी मात्रा में चल रहे हैं। लेकिन जो दृश्य आज हम देख रहे हैं इससे देश को अतीत में जो कुछ हुआ, उसके अवलोकन और भविष्य के लिए सीखने का अवसर भी मिला है।
देश का ग्रोथ इंजन आज हमारे श्रमिकों की पीड़ा में हम, देश के पूर्वी हिस्से की पीड़ा को देख सकते हैं। जिस पूर्वी हिस्से में देश का ग्रोथ इंजन बनने की क्षमता है, जिसके श्रमिकों के बाहुबल में, देश को नई ऊंचाई पर ले जाने का सामर्थ्य है, उस पूर्वी हिस्से का विकास बहुत आवश्यक है। पूर्वी भारत के विकास से ही देश का संतुलित आर्थिक विकास संभव है। देश ने जब मुझे सेवा का अवसर दिया तभी से हमने पूर्वी भारत के विकास को प्राथमिकता दी है।
मुझे संतोष है कि बीते वर्षों में इस दिशा में बहुत कुछ हुआ है और अब प्रवासी मजदूरों को देखते हुए बहुत कुछ नए कदम उठाना भी आवश्यक हो गया है और हम लगातार उस दिशा में आगे बढ़ रहें हैं। जैसे कहीं श्रमिकों की स्किल मैपिंग का काम हो रहा है, कहीं स्टार्ट-अप्स इस काम में जुटे हैं, कहीं माइग्रेश कमिशन बनाने की बात हो रही है।
आत्मनिर्भर भारत इसके अलावा केंद्र सरकार ने अभी जो फैसले लिए हैं, उससे भी गांवों में रोजगार, स्वरोजगार, लघु उद्योगों से जुड़ी विशाल संभावनाएं खुली हैं। ये फैसले इन स्थितियों के समाधान के लिए हैं, आत्मनिर्भर भारत के लिए हैं। अगर हमारे गांव आत्मनिर्भर होते, हमारे कस्बे, हमारे जिले, हमारे राज्य आत्मनिर्भर होते तो अनेक समस्याओं ने वो रूप नहीं लिया होता, जिस रूप में वो आज हमारे सामने खड़ी हैं।
लेकिन, अंधेरे से रोशनी की ओर बढ़ना मानव स्वभाव है। तमाम चुनौतियों के बीच मुझे खुशी है कि आत्मनिर्भर भारत पर आज देश में व्यापक मंथन शुरू हुआ है। लोगों ने अब इसे अपना अभियान बनाना शुरू किया है। इस मिशन का नेतृत्व देशवासी अपने हाथ में ले रहे हैं। बहुत से लोगों ने तो ये भी बताया है कि उन्होंने जो-जो सामान उनके इलाके में बनाए जाते हैं उनकी एक पूरी लिस्ट बना ली है। ये लोग अब इन लोकल प्रोडक्ट्स को ही खरीद रहे हैं, और वोकल फॉर लोकल को प्रमोट भी कर रहे हैं। मेक इन इंडिया को बढ़ावा मिले इसके लिए सब कोई अपना-अपना संकल्प जता रहा है।
बिहार के एक साथी हिमांशु ने नमो ऐप पर लिखा है कि वो एक ऐसा दिन देखना चाहते हैं जब भारत, विदेश से आने वाले आयात को कम से कम कर दे। चाहे पेट्रोल, डीजल, ईंधन का आयात हो, इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स का आयात हो, यूरिया का आयात हो, या फिर खाद्य तेल का आयात। मैं उनकी भावनाओं को समझता हूं। हमारे देश में कितनी ही ऐसी चीजें बाहर से आती हैं, जिन पर हमारे ईमानदार कर दाताओं का पैसा खर्च होता है, जिनका विकल्प हम आसानी से भारत में तैयार कर सकते हैं।
असम के सुदीप ने लिखा है कि वो महिलाओं के बनाए हुए लोकल बांस के उत्पादों का व्यापार करते हैं। उन्होंने तय किया है कि आने वाले 2 वर्षों में वह अपने बांस के उत्पाद को एक ग्लोबल ब्रांड बनाएंगे। मुझे पूरा भरोसा है आत्मनिर्भर भारत अभियान इस दशक में देश को नई ऊंचाई पर ले जाएगा।
दुनिया पूछ रही राज पीएम मोदी बोले कि कोरोना संकट के इस दौर में विश्व के अनेक नेताओं से बातचीत हुई है, लेकिन मैं एक सीक्रेट जरूर आज बताना चाहूंगा। विश्व के अनेक नेताओं की जब बातचीत होती है तो मैंने देखा इन दिनों उनकी बहुत ज्यादा दिलचस्पी ‘योग’ और ‘आयुर्वेद’ के संबंध में होती है। कुछ नेताओं ने मुझसे पूछा कि कोरोना के इस काल में ये ‘योग’ और ‘आयुर्वेद’ कैसे मदद कर सकते हैं!
योग दिवस की तैयारी अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस जल्द ही आने वाला है। ‘योग’ जैसे-जैसे लोगों के जीवन से जुड़ रहा है, लोगों में अपने स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता भी लगातार बढ़ रही है। अभी कोरोना संकट के दौरान भी ये देखा जा रहा है कि हॉलीवुड से हरिद्वार तक घर में रहते हुए लोग ‘योग’ पर बहुत गंभीरता से ध्यान दे रहे हैं।
हर जगह लोगों ने ‘योग’ और उसके साथ-साथ ‘आयुर्वेद’ के बारे में और ज्यादा जानना चाहा है, उसे अपनाना चाहा है। कितने ही लोग जिन्होंने कभी योग नहीं किया, वे भी या तो ऑनलाइन योग क्लास से जुड़ गए हैं या फिर ऑनलाइन वीडियो के माध्यम से भी योग सीख रहे हैं। सही में ‘योग’- कम्यूनिटी, इम्यूनिटी और यूनिटी सबके लिए अच्छा है।
योग की अहमियत कोरोना संकट के इस समय में ‘योग’ इसलिए भी ज्यादा अहम है क्योंकि ये वायरस हमारे श्वसन तंत्र को सबसे अधिक प्रभावित करता है। ‘योग’ में तो इसको मजबूत करने वाले कई तरह के प्राणायाम हैं, जिनका असर हम लंबे समय से देखते आ रहे हैं। ये टाइम टेस्टेड टेक्नीक हैं, जिसका अपना अलग महत्व है। ‘कपालभाती’ और ‘अनुलोम-विलोम’, ‘प्राणायाम’ से अधिकतर लोग परिचित होंगे। लेकिन ‘भस्त्रिका’, ‘शीतली’, ‘भ्रामरी’ जैसे कई प्राणायाम के प्रकार हैं, जिसके अनेक लाभ भी हैं।
योग प्रतियोगिता आपके जीवन में योग को बढ़ाने के लिए आयुष मंत्रालय ने भी इस बार एक अनोखा प्रयोग किया है। आयुष मंत्रालय ने माई लाफ माई योग नाम से अंतर्राष्ट्रीय वीडियो ब्लॉग की प्रतियोगिता शुरू की है। भारत ही नहीं पूरी दुनिया के लोग इस प्रतियोगिता में हिस्सा ले सकते हैं। इसमें हिस्सा लेने के लिए आपको अपना तीन मिनट का एक वीडियो बना करके अपलोड करना होगा।
इस वीडियो में आप जो योग या आसन करते हों वो करते हुए दिखाना है और योग से आपके जीवन में जो बदलाव आया है उसके बारे में भी बताना है। मेरा आपसे अनुरोध है आप सभी इस प्रतियोगिता में अवश्य भाग लें और इस नए तरीके से अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस में आप हिस्सेदार बनिए।
आयुष्मान भारत मारे देश में करोड़ों-करोड़ गरीब दशकों से एक बहुत बड़ी चिंता में रहते आए हैं। अगर बीमार पड़ गए तो क्या होगा? अपना इलाज कराएं या फिर परिवार के लिए रोटी की चिंता करें। इस तकलीफ को समझते हुए इस चिंता को दूर करने के लिए ही करीब डेढ़ साल पहले ‘आयुष्मान भारत’ योजना शुरू की गई थी। कुछ ही दिन पहले ‘आयुष्मान भारत’ के लाभार्थियों की संख्या एक करोड़ के पार हो गई है। एक करोड़ से ज्यादा मरीज मतलब देश के एक करोड़ से अधिक परिवारों की सेवा हुई है।
एक करोड़ से ज्यादा मरीज का मतलब क्या होता है मालूम है? एक करोड़ से ज्यादा मरीज़ मतलब नॉर्वे जैसा देश, सिंगापुर जैसा देश, उसकी जो कुल जनसंख्या है, उससे दो गुना लोगों को मुफ्त में इलाज दिया गया है। अगर गरीबों को अस्पताल में भर्ती होने के बाद इलाज के लिए पैसे देने पड़ते, इनका मुफ्त इलाज नहीं हुआ होता, तो उन्हें एक मोटा-मोटा अंदाज़ है करीब-करीब 14 हज़ार करोड़ रुपये से भी ज्यादा अपनी जेब से खर्च करने पड़ते। ‘आयुष्मान भारत’ योजना ने गरीबों के पैसे खर्च होने से बचाए हैं। मैं ‘आयुष्मान भारत’ के सभी लाभार्थियों के साथ-साथ मरीजों का उपचार करने वाले सभी डॉक्टरों, नर्सों और मेडिकल स्टाफ को भी बधाई देता हूं।
‘आयुष्मान भारत’ योजना के साथ एक बहुत बड़ी विशेषता पोर्टेबिलिटी की सुविधा भी है। इसने देश को एकता के रंग में रंगने में भी मदद की है। यानी बिहार का कोई गरीब अगर चाहे तो, उसे कर्नाटक में भी वही सुविधा मिलेगी, जो उसे अपने राज्य में मिलती। इसी तरह महाराष्ट्र का कोई गरीब चाहे तो उसे इलाज की वही सुविधा तमिलनाडु में मिलती। इस योजना के कारण किसी क्षेत्र में जहां स्वास्थ्य की व्यवस्था कमजोर है, वहां के गरीब को देश के किसी भी कोने में उत्तम इलाज कराने की सहूलियत मिलती हैं।
आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि एक करोड़ लाभार्थियों में से 80 प्रतिशत लाभार्थी देश के ग्रामीण इलाकों के हैं। इनमें भी करीब-करीब 50 प्रतिशत लाभार्थी, हमारी माताएं-बहने और बेटियां हैं। इन लाभार्थियों में ज्यादातर लोग ऐसी बीमारियों से पीड़ित थे जिनका इलाज सामान्य दवाओं से संभव नहीं था। इनमें से 70 प्रतिशत लोगों की सर्जरी की गई है। आप अनुमान लगा सकते हैं कि कितनी बड़ी तकलीफों से इन लोगों को मुक्ति मिली है।
मणिपुर के चुरा-चांदपुर में छह साल के बच्चे केलेनसांग, उसको भी इसी तरह आयुष्मान योजना से नया जीवन मिला है। केलेनसांग को इतनी छोटी उम्र में ब्रेन की की गंभीर बीमारी हो गई। इस बच्चे के पिता दिहाड़ी-मज़दूर हैं और मां बुनाई का काम करती हैं। ऐसे में बच्चे का इलाज़ कराना बहुत कठिन हो रहा था। लेकिन ‘आयुष्मान भारत’ योजना से अब उनके बेटे का मुफ्त इलाज हो गया है।
कुछ इसी तरह का अनुभव पुडुचेरी की अमूर्था वल्ली जी का भी है। अमूर्था वल्ली के पति की हार्ट अटैक से दुखद मृत्यु हो चुकी है। उनके 27 साल के बेटे जीवा को भी हार्ट की बीमारी थी। डॉक्टर्स ने जीवा के लिए सर्जरी की सलाह दी थी, लेकिन, दिहाड़ी-मजदूरी करने वाले जीवा के लिए अपने खर्च से इतना बड़ा ऑपरेशन करवाना संभव ही नहीं था। लेकिन अमूर्था वल्ली ने अपने बेटे का ‘आयुष्मान भारत’ योजना में रजिस्ट्रेशन करवाया और नौ दिनों बाद बेटे जीवा के हार्ट की सर्जरी भी हो गई।
अंफान का कहर देशवासियों एक तरफ हम महामारी से लड़ रहें हैं तो दूसरी तरफ हमें हाल में पूर्वी भारत के कुछ हिस्सों में प्राकृतिक आपदा का भी सामना करना पड़ा है। पिछले कुछ हफ्तों के दौरान पश्चिम बंगाल और ओडिशा में सुपर साइक्लोन अंफान का कहर देखा। तूफान से अनेकों घर तबाह हो गए। किसानों को भी भारी नुकसान हुआ। हालात का जायजा लेने के लिए मैं पिछले हफ्ते ओडिशा और पश्चिम बंगाल गया था। पश्चिम बंगाल और ओडिशा के लोगों ने जिस हिम्मत और बहादुरी के साथ हालात का सामना किया है- प्रशंसनीय है। संकट की इस घड़ी में देश भी हर तरह से वहां के लोगों के साथ खड़ा है।
टिड्डियों का हमला देश के कई हिस्से टिड्डियों के हमले से प्रभावित हुए हैं। इन हमलों ने फिर हमें याद दिलाया है कि ये छोटा सा जीव कितना नुकसान करता है। टिड्डी दल का हमला कई दिनों तक चलता है, बहुत बड़े क्षेत्र पर इसका प्रभाव पड़ता है। भारत सरकार हो, राज्य सरकार हो, कृषि विभाग हो, प्रशासन भी इस संकट के नुकसान से बचने के लिए किसानों की मदद करने के लिए आधुनिक संसाधनों का भी उपयोग कर रहा है। नए-नए आविष्कार की तरफ़ भी ध्यान दे रहा है और मुझे विश्वास है कि हम सब मिलकर के हमारे कृषि क्षेत्र पर जो ये संकट आया है, उससे भी लोहा लेंगे, बहुत कुछ बचा लेंगे।
पर्यावरण दिवस और प्रकृति कुछ दिन बाद ही 5 जून को पूरी दुनिया ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ मनाएगी। ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ पर इस साल की थीम है- बायो डायवर्सिटी यानी जैव-विविधिता। वर्तमान परिस्थितियों में यह थीम विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। लॉकडाउन के दौरान पिछले कुछ हफ़्तों में जीवन की रफ़्तार थोड़ी धीमी जरूर हुई है, लेकिन इससे हमें अपने आसपास, प्रकृति की समृद्ध विविधता को, जैव-विविधता को करीब से देखने का अवसर भी मिला है।
आज कितने ही ऐसे पक्षी जो प्रदूषण और शोर-शराबे में ओझल हो गए थे सालों बाद उनकी आवाज़ को लोग अपने घरों में सुन रहे हैं। अनेक जगहों से जानवरों के उन्मुक्त विचरण की खबरें भी आ रही हैं। मेरी तरह आपने भी सोशल मीडिया में ज़रूर इन बातों को देखा होगा, पढ़ा होगा।
बहुत लोग कह रहे हैं, लिख रहे हैं, तस्वीरें साझा कर रहे हैं, कि वह अपने घर से दूर-दूर पहाड़ियां देख पा रहे हैं, दूर-दूर जलती हुई रोशनी देख रहे हैं। इन तस्वीरों को देखकर कई लोगों के मन में ये संकल्प उठा होगा क्या हम उन दृश्यों को ऐसे ही बनाए रख सकते हैं। इन तस्वीरों ने लोगों को प्रकृति के लिए कुछ करने की प्रेरणा भी दी है। नदियां सदा स्वच्छ रहें, पशु-पक्षियों को भी खुलकर जीने का हक़ मिले, आसमान भी साफ़-सुथरा हो, इसके लिए हम प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर जीवन जीने की प्रेरणा ले सकते हैं।
स्वच्छ पर्यावरण सीधे हमारे जीवन, हमारे बच्चों के भविष्य का विषय है। इसलिए हमें व्यक्तिगत स्तर पर भी इसकी चिंता करनी होगी। मेरा आपसे अनुरोध है कि इस ‘पर्यावरण दिवस’ पर कुछ पेड़ अवश्य लगाएं और प्रकृति की सेवा के लिए कुछ ऐसा संकल्प अवश्य लें, जिससे प्रकृति के साथ आपका हर दिन का रिश्ता बना रहे। हां, गर्मी बढ़ रही है, इसलिए पक्षियों के लिए पानी का इंतजाम करना मत भूलिएगा।
जल है तो जीवन है हम बार-बार सुनते हैं ‘जल है तो जीवन है- जल है तो कल है’, लेकिन जल के साथ हमारी जिम्मेवारी भी है। वर्षा का पानी, बारिश का पानी- ये हमें बचाना है, एक-एक बूंद को बचाना है। गांव-गांव वर्षा के पानी को हम कैसे बचाएं? बहुत सरल उपाय हैं, उन सरल उपाय से भी हम पानी को रोक सकते हैं। पांच दिन-सात दिन भी अगर पानी रुका रहेगा तो धरती मां की प्यास बुझाएगा, पानी फिर जमीन में जाएगा, वही जल, जीवन की शक्ति बन जाएगा और इसलिए, इस वर्षा ऋतु में हम सब का प्रयास रहना चाहिए कि हम पानी को बचाएं, पानी को संरक्षित करें।
लड़ाई को कमजोर नहीं होने देना है हम सबको ये भी ध्यान रखना होगा कि इतनी कठिन तपस्या के बाद, इतनी कठिनाइयों के बाद देश ने जिस तरह हालात संभाला है, उसे बिगड़ने नहीं देना है। हमें इस लड़ाई को कमज़ोर नहीं होने देना है। हम लापरवाह हो जाएं, सावधानी छोड़ दें, ये कोई विकल्प नहीं है। कोरोना के खिलाफ़ लड़ाई अब भी उतनी ही गंभीर है।
आपको, आपके परिवार को कोरोना से अभी भी उतना ही गंभीर ख़तरा हो सकता है। हमें हर इंसान की ज़िन्दगी को बचाना है, इसलिए दो गज की दूरी, चेहरे पर मास्क, हाथों को धोना, इन सब सावधानियों का वैसे ही पालन करते रहना है जैसे अभी तक करते आए हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि आप अपने लिए, अपनों के लिए, अपने देश के लिए, ये सावधानी ज़रूर रखेंगे।