आपको बता दें कि पिछले साल से ही प्लाज्मा थेरेपी मरीजों को दी जा रही थी। अप्रैल महीने में शुरू हुई दूसरी लहर के दौरान इसकी मांग काफी ज्यादा बढ़ गई थी। हालांकि एक्सपर्ट्स इसके इस्तेमाल के पक्ष में नहीं थे।
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Sputnik V के निर्माण के लिए डॉ. रेड्डी के साथ शिल्प मेडिकेयर के बीच हुआ समझौता, जानिए क्या होगा फायदा आईसीएमआर ने प्लाज्मा थेरेपी को हटाने के फैसले की जानकारी देते हुए कहा, ”कोविड-19 मरीजों के उपचार के लिए प्लाज्मा थेरेपी के उपयोग को प्रबंधन दिशा-निर्देश से हटा दिया गया है।
इसको लेकर नई गाइडलाइन जारी की गई है। इससे पहले कोविड-19 संबंधी भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) , नेशनल टास्क फोर्स की बैठक में सभी सदस्य इस पक्ष में थे कि प्लाजमा थेरेपी को कोरोना इलाज पद्धति से हटाया जाना चाहिए।
उनका कहना था कि कोरोना थेरेपी प्रभावी नहीं है और कई मामलों में इसका अनुचित रूप से इस्तेमाल किया गया है। ये है नई गाइडलाइन
आईसीएमआर की नई गाइडलाइंस में कोविड मरीजों के इलाज को तीन हिस्सों में बांटा गया है। इसमें हल्के लक्षण वाले मरीज, मध्यम लक्षण वाले और गंभीर लक्षण वाले मरीज शामिल हैं। हल्के लक्षण वाले मरीजों को होम आइसोलेशन में रहने का निर्देश दिया गया है, जबकि मध्यम और गंभीर संक्रमण वाले मरीजों को क्रमश: कोविड वॉर्ड में भर्ती और आईसीयू में भर्ती करने के लिए कहा गया है।
ICMR के शीर्ष वैज्ञानिक डॉ. समीरन पांडा के मुताबिक बीजेएम में छपे आंकड़ों में ये बात सामने आई है कि प्लाज्मा थेरेपी का कोई फायदा नहीं है। प्लाज्मा थेरेपी महंगी तो है ही साथ ही इससे तनाव भी बढ़ रहा है। इसे लेकर हेल्थकेयर सिस्टम पर बोझ बढ़ा है जबकि इससे मरीजों को मदद नहीं मिलती है।
डोनर के प्लाज्मा की गुणवत्ता हर समय सुनिश्चित नहीं होती है। प्लाज्मा की एंटीबॉडीज पर्याप्त संख्या में होना चाहिए जबकि यह सुनिश्चित नहीं रहता है।
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प्लाज्मा थेरेपी में कोविड-19 से ठीक हुए मरीज के खून में मौजूद एंटीबॉडी को गंभीर मरीजों को दिया जाता है। विशेषज्ञों के मुताबिक 11 हजार 588 मरीजों पर प्लाजमा थेरेपी के परीक्षण करने के बाद पाया गया कि, इससे मरीजों की मौत और अस्पताल से डिस्चार्ज होने के अनुपात में कोई फर्क नहीं आया।