59 Chinese app Ban किए जाने से बैचेन China, India के साथ Bilateral talks में उठाया मुद्दा
श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है, जिसका निर्माण 6वीं सदी में त्रावणाकोर के शासकों ने करवाया था। 9वीं सदी के ग्रंथों में विवरण मिलता है कि त्रावणाकोर राजघरानों ने अपना संपूर्ण जीवन व अपनी समस्त संपत्ति भगवान पद्मनाभ स्वामी को अर्पित कर दी थी। इसके बाद 1750 में महाराज मार्तेंड वर्मा ने खुद को पद्मनाभ दास घोषित किया था और मंदिर की देखरेख का काम शुरू किया था। आपको बता दें कि सरकार को पद्मनाभ स्वामी मंदिर में सात तहखाने मिले हैं, जिनको सुप्रीम कोर्ट की अनुमति के बाद खोलने का काम शुरू किया। सरकार को मंदिर के 6 तहखानों में 1,32,000 करोड़ की संपत्ति प्राप्त हुई। इन तहखानों में भगवान विष्णु की 3.5 फुट की एक हीरे व रत्न जड़ित सोेने से बनी एक मूर्ति मिली थी। इसके अलावा हीरे व जवाहरात समेत 18 फुट लंबी सोने से बनी चेन भी मिली थी।
इसके बाद जैसे ही तहखाने के 7वें दरवाजे यानी वॉल्ट बी को खोलने का प्रयास किया गया तो दरवाजें पर बने कोबरा सांप का चित्र को देखकर काम यहीं पर बंद कर दिया गया। माना जाता है कि इस दरवाजे को खोलने पर कोई अशुभ घटना घट सकती है। मान्यता है कि त्रावणाकोर के राजाओं ने मंदि के तहखाने व दीवारों में बेशकीमती खजाने को छिपाया है। इसको हजारों साल से कभी नहीं खोला गया। यही वजह है कि इस तहखाने को शापित माना जाता है।
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के यू.यू ललित की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि प्रशासनिक समिति मंदिर मामलों का प्रबंधन करेगी, जबकि तिरुवनंतपुरम के जिला न्यायाधीश समिति के अध्यक्ष होंगे। इस मामले से जुड़े एक वकील के अनुसार, शासक की मृत्यु पर रिवाज के अनुसार प्रबंधन किया जाता है और जिला न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति, जो शीर्ष अदालत द्वारा नियुक्त कार्यकारी अधिकारी है, का गठन किया गया है। श्रद्धालुओं का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ने कहा, “26वें संविधान संशोधन के बावजूद, शासक की मृत्यु से संपत्ति सरकार के पक्ष में नहीं चली जाती।”
शीर्ष अदालत का फैसला देश के सबसे धनी मंदिरों में से एक, श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के प्रबंधन के विवाद पर आया है। ऐतिहासिक मंदिर के प्रशासन और प्रबंधन के संबंध में मामले शीर्ष अदालत में करीब नौ वर्षों से लंबित हैं।