यही नहीं, इस विधेयक का कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष ने समर्थन किया है। ऐसे में सरकार के लिए संविधान संशोधन पास कराने में कोई दिक्कत नहीं होगी। इस विधेयक के पारित होने के बाद हरियाणा में जाट, महाराष्ट्र में मराठा, कर्नाटक में लिंगायत और गुजरात में पटेल को ओबीसी में शामिल करने का राज्यों को अधिकार मिल जाएगा। इसका सीधा असर राज्यों की राजनीति पर पड़ेगा, जिसे भाजपा वोट बैंक में बदलने की कोशिश करेगी। हालांकि, अन्य पिछड़ा वर्ग को लेकर केंद्र सरकार का यह दूसरा बड़ा फैसला है। इससे पहले केंद्र सरकार ने मेडिकल के केंद्रीय कोटे में पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का ऐलान किया था।
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यूपी में वर्ष 2022 में विधानसभा चुनाव हैं। यादवों को छोडक़र दूसरी पिछड़ी जातियां भाजपा को वोट करती रही हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में बड़ी संख्या में ओबीसी ने भाजपा को वोट किया था, इसलिए भाजपा अपना जनाधार मजबूत कर रही है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बसपा दोनों की नजर पिछड़ा वर्ग पर है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो संशोधन विधेयक के पारित होने के बाद मराठा आरक्षण का रास्ता साफ हो जाएगा। हालांकि, भाजपा को मराठों के साथ-साथ ओबीसी की भी चिंता है। वर्ष 2014 के चुनाव में विदर्भ में भाजपा को बड़ी संख्या में वोट मिले थे। वहीं, वर्ष 2019 के चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा। इसकी बड़ी वजह ओबीसी की नाराजगी को माना जा रहा है। यही नहीं पिछड़ा वर्ग के कई नेताओं ने भाजपा का साथ छोडक़र दूसरी पार्टियों का दामन थाम लिया।
गत जुलाई में सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 324-ए की व्याख्या के आधार पर मराठा समुदाय के लिए कोटा को खत्म करने के अपने 5 मई के आदेश के खिलाफ केंद्र की समीक्षा याचिका को खारिज कर दिया था। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने के लिए वर्ष 2018 में संविधान में 102वें संशोधन के जरिए अनुच्छेद 324ए लाया गया।
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सुप्रीम कोर्ट ने तीन और दो के बहुमत से 102वें संशोधन को सही बताया था। बहुमत से 102वें संविधान संशोधन को वैध करारा दिया गया, लेकिन कोर्ट ने कहा कि राज्य सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग यानी एसईबीसी की सूची तय नहीं कर सकती बल्कि, केवल राष्ट्रपति उस सूची को अधिसूचित कर सकते हैं।