सदन में 275 सदस्यों में से 258 सदस्य मौजूद थे और सभी ने नए नक्शे के पक्ष में वोट डाला। खास बात यह है कि विरोध में एक भी वोट नहीं डाला गया। दरअसल भारत नेपाल के इस नक्शे को लेकर अपना विरोध जता चुका है।
इससे पहले नेपाल की संसद का विशेष सत्र शनिवार को शुरू हुआ। इस सत्र में सरकार की ओर से देश के राजनीतिक नक्शे को संशोधित करने संबंधित महत्वपूर्ण संवैधानिक संशोधन विधेयक पर चर्चा हुई। कानून, न्याय और संसदीय मामलों के मंत्री शिवमाया थुम्भांगफे ने देश के नक्शे में बदलाव के लिए संविधान संशोधन विधेयक पर चर्चा के लिए इसे पेश किया।
इस नए नक्शे में भारतीय सीमा से लगे लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा जैसे रणनीतिक क्षेत्र पर दावा किया गया है। इस विधेयक के पास होने के साथ ही नेपाल के आधिकारिक मानचित्र में संशोधन लागू हो जाएगा।
नेपाली संसद सीटों का खेल
नेपाल में कुल 275 सदस्यों का निचला सदन है। निचले सदन में विधेयक को पारित करने के लिये दो तिहाई बहुमत की जरूरत होती है, जिसे सरकार ने हासिल कर लिया। निचले सदन से पारित होने के बाद विधेयक को नेशनल असेंबली में विधेयक पास हो गया। ।
नेशनल असेंबली को विधेयक के प्रावधानों में संशोधन प्रस्ताव लाने के लिये सांसदों को 72 घंटे का वक्त देना होता है।
राष्ट्रपति लगाएगी मुहर
विधेयक के नेशन असेंबली से पारित होने के बाद इसे राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी के पास भेजा जाएगा। उनकी मंजूरी मिलते ही इसे संविधान में शामिल कर लिया जाएगा। आपको बता दें कि संसद ने 9 जून को आम सहमति से इस विधेयक के प्रस्ताव पर विचार करने पर सहमति जताई थी जिससे नए नक्शे को मंजूर किये जाने का रास्ता साफ हो गया था।
ये है विवाद
भारत के लिपुलेख में मानसरोवर लिंक बनाने को लेकर नेपाल ने कड़ा रुख अख्तियार कर लिया था। भारत के इस कदम के बाद नेपाल ने दावा किया था कि लिपुलेख, कालापानी और लिपिंयाधुरा उसके क्षेत्र में आते हैं।
इतना ही नहीं नेपाल ने इसके जवाब में अपना नया नक्शा भी जारी कर दिया।
इसमें ये तीनों क्षेत्र उसके अंतर्गत दिखाए गए। इस नक्शे को जब देश की संसद में पारित कराने के लिए संविधान में संशोधन की बात आई तो सभी पार्टियां एक जुट हो गईं। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भी भारत को लेकर रवैया काफी सख्त रखा।