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मोदी सरकार को प्रवासी मज़दूरों की भूख का ख़्याल, हर महीने देगी गेहूं, चावल और दाल

 

मजदूरों को राशन मुहैया कराने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की
वित्त मंत्री बोलीं – सरकार मजदूरों के हित में काम करने के लिए प्रतिबद्ध
पीएम मोदी ने कहा था किसी को भूखे नहीं सोने देंगे

May 14, 2020 / 07:08 pm

Dhirendra

Nirmala Sithraman
नई दिल्ली। कोरोना संकटकाल में मंदी से जूझ रही अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो दिन पहले आत्मनिर्भर भारत अभियान का आगाज किया था। इसके लिए पीएम ने 20 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज की घोषणा की थी। उसी कड़ी में गुरुवार को आर्थिक पैकेज की दूसरी किस्त का ब्यौरा वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान पत्रकारों को दी।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने कहा कि 8 करोड़ प्रवासी मजदूरों को राशन की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए सरकार 3,500 करोड़ रुपए का प्रावधान करने जा रही है। जो लोग नेशनल फूड सेक्योरिटी में नहीं आते या जिनको अभी तक राशन कार्ड नहीं मिल पाया है, उनके लिए यह प्रावधान किया गया है।
वित्त मंत्री ने कहा कि ऐसे प्रवासी मजदूरों को प्रति व्यक्ति पांच-पांच किलो गेहूं और चावल मिलेंगे। साथ में प्रति फैमिली एक किलो दाल अगले दो महीनों तक मिलेगा। इस योजना पर अमल की जिम्मेदारी राज्य सरकारों को सौंपी गई है।
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इसके अलावा प्रवासी मजदूरों और शहरी गरीबों को कम कीमत पर रहने की सुविधा मुहैया कराने के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत कम कीमत वाले किराए के घर आने वाले समय में मिलेंगे। सरकार मौजूदा बने हुए घरों को भी इसमें शामिल करेगी। इसके लिए सरकार उद्योगपतियों और राज्य सरकारों को प्रेरित करेगी। ताकि वो अपने राज्य में काम करने वाले मजदूरों के लिए रहने की व्यवस्था बनाएं।
दरअसल, जब से कोरोना वायरस महामारी की वजह से देशभर में लॉकडाउन लागू हुआ है तब से सबसे ज्यादा नुकसान प्रवासी मजदूरों का हुआ है। 25 मार्च से लॉकडाउन लागू होते ही प्रवासी मजदूरों का रोजगार छिन गया। सरकार की ओर से सभी तरह के आश्वासनों के बावजूद प्रवासी कामकारों सड़कों पर आ गए।
प्रवासी मजूदर पलायन करने को मजबूर हुए। गांव की छोटी सड़कों से लेकर राज्य मार्गों और राष्ट्रीय राज मार्गों पर भूखे पेट मजदूरों पैदल अपने परिवार सहित जाते हुए दिखाई देने लगे। मजदूरों की मजबूरी का यह नजारा देशभर में दिखाई देने लगा, जो आज भी जारी है।
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मजदूरों की दुर्दशा देखकर लोगों की आंखों में पानी भर आ रहा है। सोशल मीडिया पर एक नौजवान मजदूर की वीडियो वायरल हुई। इस 13 सेकंड के वीडियो को बनाने वाला शख्स मजदूर की दुर्दशा देखकर खुद ही रो पड़ा। वीडियो बनाने वाला शख्स बोलता है कि हम दुनिया को दिखाना चाहते हैं उसका चेहरा। इतना कहकर वो शख्स रोने लगता है।
इसी तरह गुड़गांव से एक छोटा बच्चा बिहार तक 1000 किमी के सफ़र पर निकला है। पास में पूंजी के नाम पर ख़ाली जेब है। एक पत्रकार उस बच्चे का इंटरव्यू लेते-लेते ख़ुद को रोने से नहीं रोक पाया। पत्रकार ने बच्चे के हाथ पर चंद रुपए रखे और बोलते-बोलते उसका गला रुंध गया, बच्चा भी रो पड़ा।
इसी तरह कोई मां अपने दुधमुहे बच्चे को लेकर धूप में 1200 किलोमीटर का लक्ष्य पैदल हासिल करने के लिए सड़क पर निकल पड़ी है तो ने साइकिल पर बच्चे को बांध रखा है। ताकि बच्चा साइकिल से गिरे नहीं। किसी बच्चे के पांव थककर चूर हैं, मजदूरों को टूटी हवाई चप्पलों से हज़ार किमी जाना है।
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एक आंकड़े के मुताबिक भारत में ऐसे दस करोड़ भूखे प्रवासी मजदूर हैं। इस कहानी में 6 महीने के बच्चे से लेकर 70 साल तक के बुजुर्ग मिल जाएंगे। लेकिन इनमें एक बात जो सामान्य है वो ये कि ये सभी गरीब मजदूर हैं।
ऐसे में सरकार द्वारा प्रवासी मजदूरों के लिए गेहूं, चावल और दाल की व्यवस्था मुहैया कराना राहत देने वाला कदम है, लेकिन इससे मजदूरों को राहत तभी मिलेगी जब उन्हें हकीकत में इस राहत का लाभ मिले। इस लक्ष्य को हासिल करना ही मोदी सरकार की सबसे बड़ी चुनौती है।

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