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विवाहित पुत्री को भी अनुकंपा नियुक्ति का अधिकार: हाई कोर्ट

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर हाई कोर्ट ने सरकारी कर्मचारी की मृत्यु के बाद उसकी विवाहित पुत्री को भी अनुकंपा नियुक्ति के योग्य माना है

Dec 03, 2015 / 02:23 pm

सुनील शर्मा

Bilaspur High Court

Bilaspur High Court

विलासपुर। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर हाई कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि सरकारी कर्मचारी की मृत्यु के बाद उसकी विवाहित पुत्री को भी अनुकंपा नियुक्ति दी जा सकती है। अदालत के अधिवक्ता अजय श्रीवास्तव ने बताया कि हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति संजय के. अग्रवाल की एकल पीठ ने महासमुंद की सरोजनी भोई मामले में दायर याचिका पर यह फैसला सुनाते हुए शासकीय सेवक की मृत्यु के बाद उसकी विवाहित पुत्री को अनुकम्पा नियुक्ति के योग्य माना है।

कोर्ट के अनुसार राज्य शासन की अनुकम्पा नियुक्ति के नियम लिंग भेद बढ़ाने वाले और संविधान के अनुच्छेद 16 (2) के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन है। अदालत ने सरकार को याचिकाकर्ता के आवेदन पर 45 दिनों में निर्णय लेने का निर्देश भी दिया है। श्रीवास्तव ने बताया कि जल संसाधन विभाग, महासमुंद में अमीन-पटवारी के पद पर कार्यरत जलदेव प्रधान की छह जनवरी 2011 को सेवा के दौरान मृत्यु हो गई थी।

मृतक प्रधान पर अपने परिवार जिसमें उसकी पत्नी हेमकांति तथा दो विवाहित पुत्रियां सरोजनी और संयुक्ता शामिल हैं के भरण-पोषण की जिम्मेदारी थी। मृत्यु के बाद उनकी विवाहित पुत्री सरोजनी भोई ने विभाग के समक्ष अनुकम्पा नियुक्ति के लिए आवेदन प्रस्तुत किया था। परन्तु विभाग ने विवाहित पुत्री को अनुकम्पा नियुक्ति नहीं दिए जाने की राज्य शासन की नीति वर्ष 2003 की कंडिका 3 (1)(सी) का हवाला देते हुए उसका आवेदन खारिज कर दिया था।

नियुक्ति नहीं दिए जाने पर सरोजनी ने उक्त नियम को असंवैधानिक बताते हुए अदालत में चुनौती दी थी। याचिका में यह भी कहा गया कि जब विवाहित पुत्र को नियुक्ति की पात्रता है तो विवाह कर लेने मात्र से पुत्री को नियुक्ति से वंचित नहीं किया जा सकता। सरोजनी के वकील ने इसे लिंग के आधार पर भेदभाव करने वाला और संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 के तहत समानता के अधिकार के विपरीत बताया।

याचिका पर दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत की एकल पीठ ने निर्णय दिया कि लोक नियोजन में लिंग भेद के आधार पर और विवाहित होने मात्र से किसी को शासकीय सेवा से वंचित करना संविधान के अनुच्छेद 16 (2) के विपरीत है। साथ ही अदालत ने सरकार को आदेश दिया कि मामले में 45 दिनों के भीतर अनुकम्पा नियुक्ति की कार्रवाई कर याचिकाकर्ता को तुरंत राहत दिलाई जाए।

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