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पुनर्विचार की मांग ठुकराई
सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की अधिकतम 50 फीसद सीमा तय करने वाले साल 1992 के इंदिरा साहनी फैसले को पुनर्विचार के लिए बड़ी पीठ को भेजने की मांग भी ठुकराई। कोर्ट ने कहा कि मराठाओं को कोटा देने वाले महाराष्ट्र के कानून में 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन करता है। मराठा आरक्षण देते समय 50 फीसद आरक्षण का उल्लंघन करने का कोई वैध आधार नहीं था। कोर्ट के इस फैसले में यह साफ हो गया है कि मराठा समुदाय के लोगों को शैक्षणिक और सामाजिक रूप से पिछड़े समुदाय के रूप में घोषित श्रेणी में नहीं लाया जा सकता है।
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राज्य सरकार को बड़ा झटका
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से महाराष्ट्र सरकार को बड़ा झटका लगा है। आपको बता दें कि साल 2018 में महाराष्ट्र सरकार ने मराठा वर्ग को सरकारी नौकरी और उच्च शिक्षा में 16 प्रतिशत आरक्षण दिया था। बॉम्बे हाईकोर्ट में इस आरक्षण को 2 मुख्य आधारों पर चुनौती दी गई। पहला- इसके पीछे कोई उचित आधार नहीं है। इसे सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए दिया गया है। दूसरा- यह कुल आरक्षण 50 प्रतिशत तक रखने के लिए 1992 में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार फैसले का उल्लंघन करता है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में मराठा समुदाय के लोगों को आरक्षण देने के राज्य सरकार के निर्णय को सही बताया था।
कोर्ट ने सभी राज्यों को जारी किया था नोटिस
जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता में 5 जजों की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा था कि मामले का सभी राज्यों पर असर पड़ेगा। इसके संबंध में कोर्ट ने सभी राज्यों को नोटिस जारी किया था। अधिकतर राज्यों ने कहा था कि आरक्षण की सीमा कोर्ट की तरफ से तय नहीं होनी चाहिए। वहीं केंद्र सरकार ने महाराष्ट्र का समर्थन किया था।