AIIMS न्यूरो डिपार्टमेंट के हेड डॉक्टर ए के महापात्रा ने भी सर्जरी से पहले कहा था कि ऐसे केस काफी मुश्किल होते हैं और इनमें सफलता के चांस भी कम होते हैं। ए के महापात्रा के मुताबिक, दोनों बच्चों का ब्रेन भी आपस में जुड़ा होना डॉक्टरों के लिए बड़ी चुनौती है। डॉक्टरों ने कहा था कि सर्जरी से पहले बच्चों को इन्फेक्शन था और इस वजह से कई टेस्ट नहीं किए जा सके थे। न्यूरो डॉक्टर दीपक गुप्ता ने कहा था कि सिर जुड़े होने की वजह से 2 बच्चों की ऑपरेशन का सेटअप तैयार करना ही चुनौती था।
डॉक्टर्स और विशेषज्ञों की टीम के मुताबिक, बच्चों का बचना उनके शरीर के मुख्य अंगो पर निर्भर था। डॉक्टरों ने बताया कि वैसे तो दोनों बच्चे जुड़वां थे, लेकिन जब इन्हें इलाज के लिए लाया गया था तो जग्गा सेहतमंद था और बलिया कमजोर था। डॉ. महापात्रा ने कहा कि आखिरी फेज में सबसे ज्यादा मुश्किल इस बात की थी कि बलिया को दी जाने वाली मेडिसिन की ज्यादातर मात्रा जग्गा के शरीर में चली जाती थी। इस वजह से जग्गा के हार्ट को ज्यादा काम करना पड़ रहा था। इसलिए उसके हार्ट में अभी भी दिक्कत है।
प्लास्टिक सर्जरी डिपार्टमेंट के चीफ फ डॉ. मनीष सिंघल के मुताबिक, इस सर्जरी के लिए स्किन की भी जरूरत थी, जो जग्गा और बलिया की पीठ और जांघ से ली गई। मनीष सिंघर ने बताया कि पीठ की स्किन लेकर सिर पर लगाई गई और जांघ स स्किन लेकर पीठ पर लगाई गई। जग्गा और बलिया के सिर के ऊपरी हिस्से में फिलहाल कोई बोन नहीं है। अभी स्किन के माध्यम से सिर की री-कंस्ट्रक्टिव सर्जरी की गई है। घाव भरने और सेहत में सुधार होने के बाद संभव है कि दोनों की एक सर्जरी और की जाए। इसके बाद स्कल पूरी तरह से तैयार की जाएगी।
जग्गा-बलिया की सर्जरी को लीड कर रहे न्यूरो साइंसेज सेंटर के चीफ प्रो. एके महापात्रा ने बताया कि पहली सर्जरी के बाद बलिया को दिक्कत हो रही थी। उसे दौरे पड़ रहे थे। इसके बाद जब उसे मिर्गी की मेडिसिन दी जा रही थी तो वह मेडिसिन जग्गा में चली जाती थी। कुछ समय के बाद यह देखा गया कि बलिया को असर नहीं हो रहा है। तब जाकर दो मरीजों वाली डोज देनी शुरू की गई।