‘ऐसे ध्यान सिंह बने ध्यानचंद’ ध्यानचंद का असली नाम ध्यान सिंह (Dhyan Singh) है। उनका जन्म 26 अगस्त, 1905 को उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के इलाहाबाद में एक राजपूत परिवार में हुआ था, जो अब प्रयागराज के नाम से जाना जाता है। ध्यान सिंह महज 16 साल की उम्र सेना में भर्ती हो गए थे। लेकिन, हॉकी के प्रति उनका ऐसा जुनून था कि प्रैक्टिस के लिए हमेशा मौके की तलाश में रहते थे। इतना ही नहीं ध्यान सिंह को अक्सर चांद की चांदनी में हॉकी का प्रैक्टिस करते देखा जाता था। लिहाजा, उनके दोस्तों ने उनके नाम के आगे चांद जोड़ दिया, जो बाद में चंद बन गया। इसके बाद से लोग उन्हें ध्यानचंद के नाम से जानने लगे। कहा जाता है कि ध्यानचंद (Dhyan Chand) के पास अगर एक बार गेंद आ जाती थी तो मानो उनके हॉकी स्टीक से वह चिपक जाती थी। सामने वाली टीम के खिलाड़ी को ध्यानचंद से बॉल छीनना मुश्किल हो जाता था। ध्यानचंद ने 1928, 1932 और 1936 ओलंपिक के लिए भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया था और तीनों में भारतीय टीम ने गोल्ड मेडल जीता था।
‘ध्यानचंद ऐसे बने हॉकी के जादूगर’ साल 1928 की बात है। नीदरलैंड (Netherland) की राजधानी एम्सटर्डम ( Amsterdam ) में ओलंपिक ( Olympic) का आयोजन किया गया था। ध्यानचंद ने भारतीय हॉकी टीम का प्रतिनिधित्व किया था। इस ओलंपिक में ध्यानचंद ने भारतीय टीम के लिए कुल 14 गोल किए थे। इतना ही नहीं ध्यानचंद सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ी बने थे। भारतीय टीम को गोल्ड मेडल मिला था। एक पत्रकार ने उनके खेल की जमकर तारीफ की। स्थानीय पत्रकार ने कहा था, ‘जिस तरह ध्यानचंद हॉकी खेलते हैं, वह जादू है। उनका खेल हॉकी नहीं बल्कि जादू है और वह हॉकी के जादूगर’। इसके बाद से ही ध्यानचंद का हॉकी के जादूगर कहा जाने लगा। एक बार तो उनके हॉकी स्टीक पर सवाल भी उठा था। ऐसा कहा जाने लगा कि ध्यानचंद कहीं हॉकी स्टीक में चुंबक लगाकर तो नहीं खेलते। लिहाजा, नीदरलैंड में ध्यानचंद की हॉकी स्टीक को तोड़कर जांच भी किया गया था लेकिन कुछ नहीं निकला। इतना ही नहीं जर्मनी का तनाशाह हिटलर भी ध्यानचंद का बहुत बड़ा फैन था। हिटलर ध्यानचंद के खेल से इतना प्रभावित हुआ कि उसने उन्हें जर्मनी ( Germany ) से खेलने का ऑफर किया था। साथ ही सेना में बड़े पद का भी ऑफर किया गया था। लेकिन, ध्यानचंद ने साफ मना कर दिया था। देश के इस गौरव को पद्म भूषण से भी नवाजा जा चुका है। तीन दिसंबर, 1979 को ध्यानचंद का दिल्ली स्थित AIIMS में निधन हो गया था। ध्यानचंद का अंतिम संस्कार वहीं किया गया जिस मैदान में वह प्रैक्टिस करते थे।