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करतारपुर कॉरिडोर के बारे में सबकुछ, आस्था से विवाद तक का सफर

गुरुद्वारा दरबार साहिब… गुरुनानक देव की कर्मस्थली
भारत पाक सीमा पर बन रहा Kartarpur Corridor
गुरुनानक देव के 550वें जन्मोत्सव तक पूरा होगा करतारपुर कॉरिडोर

Jul 14, 2019 / 10:36 am

Chandra Prakash

करतारपुर कॉरिडोर

करतारपुर कॉरिडोर

नई दिल्ली। दुनिया के नक्शे पर आस्था और इतिहास के लिहाज से करतारपुर कॉरिडोर ( Kartarpur Corridor ) बहुत अहमियत रखता है। ये सिखों के पहले गुरु गुरुनानक देव ( Guru Nanak ) की कर्मस्थली है। नानक देव ने इसी स्थान पर अपनी अंतिम सांस ली थी।

क्यों है खास

माना जाता है कि 22 सितंबर 1539 को इसी जगह गुरुनानक देव ने अपना नश्वर शरीर त्यागा था। उनके निधन के बाद पवित्र गुरुद्वारे का निर्माण कराया गया।

गुरुनानक की शिक्षाएं सभी धर्मों के लिए प्रकाश पुंज की तरह हमेशा चमकती रही हैं। यही वजह है कि इस स्थान पर जहां सिखों के लिए नानक उनके गुरु हैं, वहीं मुसलमानों के लिए नानक उनके पीर हैं।

बंटवारे में किस ओर गया गुरुद्वारे का हिस्सा

अगस्त 1947 में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के दौरान उस ओर रहने वाले हजारों सिख इधर आ गए और इधर रहने वाले हजारों सिख सीमा पार चले गए।

बंटवारे की आंच गुरुनानक के दर तक भी पहुंची। इलाके में हजारों लाशें बिछी हुई थीं। उस समय ये गुरुद्वारा वीराना हो गया था।

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Kartarpur Corridor

कहां है यह पवित्र गुरुद्वारा

बंटवारे में गुरुद्वारा दरबार साहिब करतापुर पाकिस्तान के हिस्से में चला गया। यह भारतीय सीमा से महज चार किलोमीटर दूर है। वर्तमान में यह नारोवाल जिले के शकरगढ़ तहसील के कोटी पिंड में रावी नदी के पश्चिम दिशा में स्थित है।

दुनियाभर की आस्था का केंद्र

विभाजन के बाद बेशक यह गुरुद्वारा पाकिस्तान के हिस्से में चला गया लेकिन दोनों मुल्कों के लिए यह आज भी आस्था के सबसे बड़े केंद्र में से एक है।

यही वजह है कि भारतीय सिख समुदाय द्वारा भारत-पाक सीमा पर गलियारे की मांग लंबे समय से की जाती रही, ताकि गुरु नानकदेव के दर्शन होते रहे।

हिंदुस्तानी अभी कैसे करते हैं दर्शन

दरबार साहिब सीमा के उस पार होने की वजह भारतीय सीमा के पास एक बड़ा टेलिस्कोप लगाया गया है। ताकि जिनके पास वीजा नहीं है इसके जरिए भारतीय तीर्थयात्री अपने आराध्य करतारपुर गुरुद्वारे के दर्शन कर सकें।

Kartarpur Corridor

क्या है करतारपुर कॉरिडोर

भारत और पाकिस्तान के संयुक्त प्रस्ताव के मुताबिक दोनों मुल्कों की सीमा पर चार किलोमीटर लंबे गलियारे का निर्माण होना है।

इसमें दो किलोमीटर का निर्माण भारत और दो किलोमीटर का निर्माण पाकिस्तान को करना है। भारत और पाकिस्तान ने तीर्थस्थलों के दौरे के लिए द्विपक्षीय प्रोटोकॉल पर 1974 में हस्ताक्षर किए थे।

कॉरिडोर का क्या होगा फायदा

करतारपुर कॉरिडोर बन जाने से श्रद्धालुओं को गुरुद्वारा जाने के लिए वीजा की जरूरत नहीं होगी। दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालु टिकट खरीदकर इसी रास्ते से गुरुद्वारे तक पहुंच सकेंगे।

यहां भारत की ओर से वीजा और कस्टम की सुविधा मिलेगी। इलाके को हेरिटेज टाउन की तरह विकसित किया जाएगा।

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Kartarpur Corridor

अब विवाद क्या है

इससे कुछ दिन पहले ही पाकिस्तान ने करतारपुर कॉरिडोर को लेकर भारत के प्रस्तावों को मानने से इनकार कर दिया था। साथ ही वार्ता के लिए कुछ नियम और शर्तें भी लगाई थीं।

भारत ने प्रस्ताव दिया था कि भारतीय नागरिकों के अलावा ‘ओवरसीज इंडियन कार्ड ’ ( OIC ) धारकों को भी तीर्थयात्रा की इजाजत दी जाए। इसपर पाकिस्तान ने साफ इनकार कर दिया था और कहा था कि केवल भारतीय नागरिकों को ही इजाजत दी जाएगी।

भारत ने सुझाव दिया था कि करतारपुर कॉरिडोर को हफ्ते के सातों दिन और साल के 365 दिन खुला रखा जाए। इस पर पाकिस्तान ने कहा कि केवल तीर्थयात्रा के समय ही खुला रखने की अनुमति दी जाएगी।

पाकिस्तान ने कहा था कि श्रद्धालुओं को सिर्फ एक विशेष परमिट व्यवस्था के तहत ही करतारपुर की यात्रा करने की इजाजत दी जाएगी।

इसके अलावा 5000 श्रद्धालुओं को अनुमति दिए जाने के सुझाव पर पाकिस्तान ने कहा कि केवल 700 को अनुमति दी जाएगी।

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