चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण मार्च 2018 में जीएसएलवी मार्क-2 से करने की योजना है। इसरो ने इस महत्वाकांक्षी मिशन के लिए आवश्यक कई नई तकनीकों का स्वदेशी विकास किया है। देश का दूसरा चंद्र मिशन चंद्रयान-2 पहले मिशन की तुलना में काफी उन्नत होगा। पहले चंद्र मिशन में केवल एक आर्बिटर भेजा गया था। जिसने चांद की 100 किलोमीटर वाली कक्षा में परिक्रमा किया और आंकड़े भेजे।
चंद्रयान-1 के साथ भेजा गया एक उपकरण मून इमपैक्ट प्रोब (एमआईपी) आर्बिटर से निकलकर चांद की धरती से जा टकराया था और उसी दौरान चांद पर पानी की मौजूदगी के साक्ष्य मिले। अब 9 साल बाद भेजे जाने वाले दूसरे मिशन में सिर्फ आर्बिटर ही नहीं लैंडर और रोवर भी होगा। आर्बिटर चांद कक्षा में परिक्रमा करेगा वहीं लैंडर निकलकर चांद की धरती पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा। लैंडर से रोवर निकलकर चांद की धरती पर चहलकदमी करेगा और आंकड़े रोवर एवं आर्बिटर के जरिए धरती पर इसरो के विभिन्न केंद्रों तक पहुंचाएगा।
इसरो के उच्च पदस्थ अधिकारियों के अनुसार चांद के चिन्हित स्थान पर उतारे जाने वाले लैंडर की संरचना, उसके पे-लोड आदि को अंतिम रूप दिया जाचुका है। रोवर का मृदा मिश्रण परीक्षण (सॉयल मिक्सिंग एक्सरसाइज) और मोबिलिटी परीक्षण किया जाएगा। इस दौरान मिट्टी के साथ रोवर के पहिए की प्रतिक्रिया देखी जाएगी। इसरो अध्यक्ष ए एस किरण कुमार ने कहा कि चंद्रयान-2 की तैयारियां चल रही हैं। आर्बिटर तैयार हो रहा है।
फ्लाइट इंटीग्रेशन (उड़ान समाकलन) गतिविधियां प्रगति पर हैं। लैंडर और रोवर के कई परीक्षण किए जाने हैं जिसकी योजना तैयार की जा चुकी है। परीक्षण चल भी रहे हैं। चंद्रयान-2 प्रक्षेपण की सारी तैयारियां सही दिशा में प्रगति पर हैं और उम्मीद है कि मार्च 2018 में इसका प्रक्षेपण हो जाएगा।
इसरो अध्यक्ष ने कहा कि चंद्रयान-2 पूरी तरह भारतीय परियोजना है। इस मिशन में किसी भी अन्य देश के साथ कोई साझेदारी नहीं है। पहले मिशन में एमआईपी अनियंत्रित तरीके से चांद की धरती से टकराया लेकिन इस बार नियंत्रित तरीके से लैंडर उतारा जाएगा। लैंडर के धरती पर उतरने के बाद रोवर वहां की जमीन पर कुछ प्रयोग करेगा और रेडियो संपर्क के जरिए उन प्रयोगों से जुड़े परिणाम प्राप्त किए जाएंगे।