नीलेश शाह ने कहा कि कोविड—19 की पाबंदियों के कारण भारत के गोल्ड इंपोर्ट में 95 फीसदी तक की कमी आई है। इसका फायदा देश को मिलेगा। पिछले दिनों पैकेज अनाउंस हुआ है, उसका असर जल्द से जल्द जमीन पर दिखाई देने लगेगा। इस समय भारत में ब्याज दर भी आरबीआई ने काफी कम कर दी है। इसका फायदा रीयल इस्टेट में जल्द नजर आएगा और देश का यह सेक्टर तेजी से आगे बढ़ने की संभावना है। आज दुनिया का सबसे ज्यादा गोल्ड रिजर्व भारत में है, यह आर्थिक तौर पर मजबूत बनाता है। एक समय था कि जब भारत में फारेन रिजर्व इतना कम हो गया था कि हमें आईएमएफ को अपना गोल्ड रिजर्व गिरवी रखना पड़ा था पर आज भारत के पास 500 अरब डॉलर का फॉरेन रिजर्व है। इस मामले में भारत दुनिया के टॉप पांच देशों में पहुंच चुका है।
नीलेश शाह ने कहा कि यह वक्त है कि जब हमें नए सिरे से विदेशी निवेश के बारे में सोचना चाहिए। एक बड़ा कारोबारी वर्ग है जो चीन से बाहर निकलना चाहता है। ऐसे में इन कंपनियों को भारत में लाने के लिए हमें बेहतर विकल्प सुझाने होंगे। हम एक नए विकल्प के तौर पर खड़े हो रहे हैं। चीन ने दुनिया को कोरोना दिया है और हमने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन। तो ऐसे में हम पूरी दुनिया के सामने आशावादी सोच के साथ खड़े हुए हैं। अगर हम निर्णय कर लें कि देश को आगे ले जाना है तो यह आपदा अवसर में बदल जाएगी।
कंपनियों को बेहतर विकल्प दें
नीलेश ने एक उदाहरण देते हुए कहा कि सैमसंग कंपनी आज भारत में भी है और वियतनाम में भी। लेकिन वियतनाम में जाने से पहले सैमसंग यहां आई थी, लेकिन वह यहां पर बेहतर मौजूदगी दर्ज नहीं करा पाई, जितनी कि वियतनाम पर दर्ज कराई। आज वियतनाम से सैमसंग पूरी दुनिया में अपने उत्पाद बनाकर भेजती है। उसका वियतनाम में उत्पादन भारत से पांच गुना से ज्यादा है। जबकि वियतनाम की अर्थव्यवस्था भारत से 10 गुनी छोटी है। ऐसे में हमें कंपनियों की जरूरत और उसके लिए बेहतर विकल्प सुझाने होंगे, तभी हम एक बेहतर विकल्प बन पाएंगे। उन्होंने कहा कि आज हमारे देश में कारोबारी को दो मोर्चों पर लड़ना पड़ता है। एक घर के भीतर और एक घर के बाहर। हमें जो मदद कंपनियों को देनी चाहिए, वह समय पर उपलब्ध नहीं है, जिसके कारण कई कंपनियां दम तोड़ देती हैं।
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