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“अगर मैं कमांडर होता तो सीधे गोली चलाने के आदेश देता”

गलवान घाटी में हुए कायरानापूर्ण हमले पर बोले पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल अरुण साहनी
हमारे कमांडर को टैक्टिकल निर्णय लेने का अधिकार, चीनी सेना बिना आदेश कुछ नहीं करती

Jun 24, 2020 / 11:41 am

shailendra tiwari

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नई दिल्ली.
जब देश में इस बात पर विवाद हो रहा है कि आखिर भारतीय सेना ने चीनी सैनिकों की हरकत का जवाब गोली से क्यों नहीं दिया? क्या उनके पास हथियार नहीं थे या फिर वह दबाव में थे, जिसके कारण उन्होंने हथियार नहीं चलाए? क्या उनके पास अपना बचाव करने के लिए हथियार उपलब्ध नहीं थे। इस बीच में सेना के शीर्ष कमांडर रहे लेफ्टिनेंट जनरल अरुण साहनी ने कहा कि भारतीय सेना को ऐसे मौके पर संधियों को छोड़कर हथियार से जवाब देना चाहिए था। उन्होंने कहा कि अगर वह टैक्टिकल पोजिशन में होते तो सभी आदेशों को किनारे रखकर सेना को गोली चलाने का आदेश देते।
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सेना में टॉप कमांडर रहे अरुण साहनी पत्रिका कीनोट सलोन में सवालों का जवाब दे रहे थे। उन्होंने कहा कि हमारे देश में सत्ता में कोई भी सरकार रही हो, सेना के कमांडर को अपने अधिकार मिले हुए हैं। हमें कभी किसी सरकार ने कुछ भी करने से नहीं रोका है। जब दो देशों की सेना लड़ाई करती हैं तो उसमें एथिक होते हैं, लेकिन 15—16 को केवल दादागिरी दिखाने की कोशिश की गई। चीनी सैनिकों का व्यवहार सेना के सिपाहियों जैसा नहीं था। यह अंतराष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन है। लेफ्टिनेंट जनरल ने कहा कि अगर मैं कमांडर होता तो आदेशों के खिलाफ जाकर गोली चलाने का आदेश देता। लेकिन वहां अंधेरा हो गया था, ऐसे में दूर से दिखाई नहीं दे रहा था। ऐसे में संभव है कि वहां मौजूद कमांडर को निर्णय लेने में थोड़ा परेशानी हुई हो, आखिर दूर से यह पहचानना मुश्किल होता है कि कौन सा सैनिक हमारा है और कौन सा चीनी।
उनके कैंप से घसीट कर निकाला
शीर्ष कमांडर अरुण साहनी ने कहा कि हमारे सैनिकों का रिएक्शन भी कमजोर नहीं था। हमारे जवानों ने अपने सीओ को खोने के बाद उन पर जोरदार हमला बोला और उनको कैंपों से घसीटकर बाहर निकाला और उन्हें अपने साथ लेकर आए। हमसे ज्यादा उनके जवानों की मौत हुई है। लेकिन चीन की इतनी हिम्मत भी नहीं है कि वह अपने सैनिकों की शहादत को भी खुलकर बता सके।
जानबूझकर की गई हरकत
साहनी ने कहा कि चीन की हरकत जानबूझकर की गई है। हमारे यहां पर टैक्टिकल निर्णय कमांडर ले सकता है, चीन में ऐसा नहीं है। अगर उच्च स्तर से निर्णय नहीं हैं तो वहां कोई भी कमांडर कुछ नहीं कर सकता है। जबकि हमारे यहां पर अलग हालात हैं। यहां कोई भी सरकार सत्ता में रही हो, लेकिन उसने सेना के निर्णय लेने की क्षमता पर कभी रोक नहीं लगाई है। हमारे यहां पर परिस्थितियों को देखकर कमांडर को आदेश के विपरीत जाकर निर्णय लेने का भी अधिकार है। जबकि चीनी सेना को ऐसा कोई अधिकार नहीं मिला हुआ है।
चीन को युद्ध करना आसान नहीं
अरुण साहनी ने कहा कि अगर चीन को अपनी सेना पर घमंड है तो उन्हें यह जान लेना चाहिए कि उनका एयरबेस और सैन्य क्षमताएं चार हजार फीट पर हैं। जबकि लड़ाई का मैदान 15 हजार फीट पर है, यहां आकर लड़ने में उनकी क्षमता आधी रह जाएगी। उन्हें उस इलाके की आदत भी नहीं है। जबकि हमारे लिए यह सामान्य है, क्योंकि इसके लिए हमारे पंजाब के एयरबेस ही काफी होंगे। फिर हमें कारगिल से लेकर कई तरह की लड़ाइयों में इस तरह के इलाके में लड़ने की आदत है। हम पिछले कई सालों से इस तरह के इलाकों में लड़ाई लड़ रहे हैं, हमारी सेना इसके लिए हमेशा तैयार है।

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