scriptHunger crisis: कोरोना के चलते मिडिल क्लास वाले भी राशन के लिए लाइन में लगने को मजबूर – स्टडी | Hunger crisis Due to Corona even middle class people are forced to queue for ration – Study | Patrika News
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Hunger crisis: कोरोना के चलते मिडिल क्लास वाले भी राशन के लिए लाइन में लगने को मजबूर – स्टडी

 
Hunger crisis: स्टडी के मुताबिक भारत में 375 रुपए से कम आये वाले लोगों की संख्या कोरोना के चलते आठ माह के अंदर 29.86 करोड़ से बढ़कर 52.9 करोड़ तक पहुंच गई। इनमें से अधिकांश लोग अपने बच्चों को सोने से पहले भरपेट खाना देने की भी स्थिति में नहीं रहे।

Jul 14, 2021 / 06:40 pm

Dhirendra

hunger crisis
नई दिल्ली। सवा साल से ज्यादा समय से जारी कोरोना महामारी के प्रकोप की वजह से देश की अर्थव्यवस्था नाजुक मोड़ पर है। लंबे अरसे बाद देश में बड़े पैमाने प हंगर क्राइसिस के संकेत मिलने लगे हैं। कोरोना की पहली लहर लोगों के लिए कष्टदायक था तो दूसरी लहर की वजह से जमीनी हकीकत का अंदाजा लगाना पाना मुश्किल हो गया है। अगर तीसरी लहर आई तो पता नहीं कैसे हालात होंगे? कहने का मतलब यह है कि कोरोना महामारी और लॉकडाउन के कारण करोड़ों लोगों को आर्थिक संकट या यूं कहें कि भुखमरी के कगार पर ला खड़ा कर दिया है।
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सेंटर फॉर मॉनिटरिंग द इंडियन इकोनॉमी की रिपोर्ट:

15 मिलियन यानि डेढ़ करोड़ से अधिक भारतीयों ने अकेले मई में दूसरी लहर की वजह से अपनी नौकरी खो दी। मई वही समय है दिल्ली, मुंबई सहित अधिकांश शहरों में अस्पतालों में लोगों को आक्सीजन तक नहीं मिल रहे थे और कोरोना पीड़ित मरीज अकाल मृत्यु की स्थिति तक पहुंचने के लिए विवश थे। खासकर शहरी क्षेत्रों में यह नजारा बहुत ही कष्टप्रद हो गया था। संकट की यह स्थिति उस समय आ खड़ी हुई है जब हमारा देश पहले से ही दुनिया के लगभग एक तिहाई कुपोषित लोगों का शरणस्थली है।
अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय स्टडी रिपोर्ट:

अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय बेंगलूरु के एक अध्ययन के अनुसार पिछले साल भारतीय अर्थव्यवस्था में 7.3% की कमी दर्ज की गई थी। इस घटना ने 23 करोड़ लोगों को 375 रुपए कम वेतन यानि $5 की सीमा से नीचे ला खड़ा किया। स्टडी के दौरान 90% उत्तरदाताओं ने बताया कि उनके परिवारों को लॉकडाउन के परिणामस्वरूप भोजन की मात्रा में कमी का सामना करना पड़ा था। बच्चों को भरपेट भोजन देना भी गंभीर चिंता का विषय बन गया है। इस अध्ययन के मुताबिक मार्च 2020 में दैनिक आय 375 रुपए कम वाले लोगों की संख्या 298.6 मिलियन यानि 29.86 करोड़ थी जो अक्टूबर 2020 में बढ़कर 529 मिलियन यानि 52.9 करोड़ हो गई।
अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर सस्टेनेबल एम्प्लॉयमेंट के निदेशक और स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया रिपोर्ट के सह-लेखक अमित बसोले का कहना है कि अगर पिछला साल कष्टदायक था तो इस साल संकट की वास्तविक समझ हासिल करना मुश्किल है। इस साल लोगों ने बचत कम कर दी है। कर्ज चुका रहे हैं। हमें उम्मीद नहीं है कि कोई भी इस कैलेंडर वर्ष में जनवरी-फरवरी 2020 आय के स्तर पर वापस आ पाएगा।
10 करोड़ लोग सार्वजनिक वितरण प्रणाली से बाहर

पिछले साल अर्थशास्त्री रीतिका खेरा, मेघना मुंगिकर और ज्यां द्रेज द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक 100 मिलियन से अधिक लोग सरकार की सार्वजनिक वितरण प्रणाली से बाहर हैं। ऐसा इसलिए कि कवरेज की गणना पुरानी जनगणना के आंकड़ों पर की जाती है। इसका मतलब साफ है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत आने वालों की श्रेणी में करोड़ों लोग आ चुके हैं, लेकिन वे सरकारी रजिस्टर में कहीं नहीं हैं। ऐसे लोगों के बारे में जब आप सोचेंगे तो हालात और चिंताजनक दिखाई देंगे।
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इन लोगों के बयानों से जानिए देश की राजधानी की जमीनी हकीकत

1. देश की संसद से कुछ दूर लाल गुंबद बस्ती में रहने वाली चंचल देवी का कहना है कि उनके तीन बच्चों ने करीब एक साल से दूध स्वाद नहीं चखा है। कोरोना महामारी की वजह से उनके पति और मैं काम खो चुकी हूं। दूसरी लहर की वजह से हमारी स्थिति और गंभीर हो गई। अब भोजन खरीदने के लिए पैसे उधार लेना पड़ता है। बच्चों को कम खाते हुए देखना हमारी दिनचर्या में शामिल हो गया है। यह सब हमारे लिए असहनीय है। खासकर बच्चों को खाली पेट सो जाना। अब मै। रातों को सो नहीं पाती हूं। मैं अगले दिन के लिए भोजन की व्यवस्था की चिंता कर बहुत थक गई हूं।
2. दक्षिण-पूर्वी दिल्ली निवासी 45 वर्षीय नरेश कुमार को अपनी स्थानीय खाद्य वितरण दुकान के बाहर जून में लगभग हर दिन सुबह 5 बजे लाइन लगानी पड़ती थी। ताकि आपूर्ति खत्म होने से पहले वह वहां पहुंच सके और खाने के लिए राशन हासिल कर सके। उन्होंने कहा कि एक दिन ऐसा भी आया कि मेरी बारी आने से पहले राशन खत्म हो गया।
3. सतर्क नागरिक संगठन से जुड़ी अदिति द्विवेदी कहती हैं भोजन के लिए लोगों को हताश और वेतनभोगियों को भी राशन के लिए लंबी लाइनों में लगे देखना अभूतपूर्व और दुखद अनुभव है। वह इस स्थिति से पार पाने के लिए सरकार से तत्काल अधिक खाद्य सहायता की अपेक्षा रखती हैं।
पीएम इस बात का भरोसा देने के लिए क्यों हुए मजबूर?

ये स्थिति केवल चंचल और नरेश की नहीं है। ऐसे करोड़ों लोग देश भर में हैं जो कोरोना महामारी की वजह से बेरोजगारी के साथ ऐसी अमानवीय स्थिति से गुजर रहे हैं। यही वजह है कि जब दूसरी लहर शुरू हुई और व्यवस्था चरमराने लगी तो देश के प्रधानमंत्री भी लोगों के निशाने पर आ गए। यही वजह है कि पीएम मोदी को 7 जून को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में यह कहना पड़ा कि सरकार गरीबों के साथ उनकी हर जरूरत के लिए उनके साथी के रूप में खड़ी है।

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