नई दिल्ली. गलवान घाटी में चीन की हरकतों पर सवाल उठ रहे हैं। कई तरह की बातें हो रही हैं और सवाल भी उठ रहे हैं कि क्या वाकई में चीन इस समय भारत से युद्ध चाह रहा है? क्या वह इस तरह के हालात पैदा कर कोई कूटनीतिक सौदा करना चाहता है या फिर इसके सहारे वह पूरी दुनिया को अपनी ताकत का एहसास कराना चाह रहा है? इन सबके बीच में सीआरपीएफ के पूर्व महानिदेशक रहे एनके त्रिपाठी कहा कहना है कि हमें बेहतर हो कि चीन को सीधी भाषा के साथ कूटनीतिक तौर पर जवाब देना चाहिए, जोकि अभी तक करने से हम पूरी तरह से बचते रहे हैं।
पत्रिका कीनोट सलोन में सवालों का जवाब देते हुए सीआरपीएफ के पूर्व महानिदेशक एनके त्रिपाठी ने कहा कि अब समय आ गया है जब हमें चीन को लेकर अपनी विदेश नीति के बारे में सोचना होगा। जरूरी है कि हम अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चीन के खिलाफ बोलने की हिम्मत दिखाएं। चीन का मकसद केवल हमारी जमीन पर कब्जा पाना नहीं है। वह संदेश देना चाहता है कि विश्व और एशिया में कोई भी उसके रास्ते में आएगा, चीन उसे खत्म कर देगा। वह चाहता है कि भारत हमेशा उसके सामने सहमा हुआ दिखाई दे। अभी तक भारत हमेशा चीन के सामने खामोश ही रहा। जबकि चीन अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के खिलाफ खुलकर बोलता रहा। हमें भी चीन की कमजोर नसों पर प्रहार करना चाहिए। उसकी कमजोरियों पर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर खुलकर बोलना चाहिए। दुनिया के सामने उसकी हरकतों का विरोध करना चाहिए।
विवादों के पीछे दुनिया को दिखाना चीन से हमारा सीमा विवाद 1950 से चला आ रहा है। 1996 में दोनों देशों ने सीमा पर फायरिंग नहीं करने का निर्णय लिया। उसी का असर है कि आज तक वहां पर गोली नहीं चली। यह इलाका हमारा था और उन्हें खाली करना चाहिए था। जिस तरह का रवैया उन्होंने दिखाया वह गलत है। लेकिन चीन की आदत है, जब हमने बीआरआई के खिलाफ आवाज उठाई तो उसने डोकलाम विवाद शुरू कर दिया। यह घटना चीन के लिए भी संदेश है कि वह भारत को हल्के में न ले।
आर्थिक मजबूती से ही चीन को हराना संभव चीन के खिलाफ सीधी लड़ाई कोई विकल्प नहीं है। चीन खुद भी ऐसी लड़ाई नहीं चाहता है। वह केवल आंखें दिखाकर विवाद बनाकर दुनिया को अपनी ताकत का एहसास भर कराना चाहता है। वह बताना चाहता है कि भारत जैसे मजबूत देश को भी दबाने की ताकत रखता है। इसके लिए वह इस तरह के प्रयास करता है। लेकिन हमें जवाब देना आता है और इस घटना के दौरान दिया भी है। लेकिन स्थाई जवाब के लिए जरूरी है कि हम खुद की अर्थव्यवस्था को मजबूत करना होगा। भारत से लेकर अमेरिका तक उसका बड़ा निवेश है।