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हिंदुओं के अधीन होने का डर था मुस्लिम लीग कोमुस्लिम लीग खुद को इस आंदोलन से अलग रखना चाहती थी। वह नहीं चाहती थी कि बिना बंटवारा हुए भारत आजाद हो जाए। लीग का कहना था कि अगर ब्रिटिश भारत को इसी हाल में छोड़ देती है और भारत आजाद हो जाता है, तो मुस्लिमों को हिंदू आबादी के अधीन होना पड़ेगा। मुस्लिमों का शोषण होगा और बहुसंख्यक शासन का अनुचित लाभ उठाया जाएगा। मुहम्मद अली जिन्ना ने महात्मा गांधी के सभी विचारों और प्रस्तावों को मानने से इनकार कर दिया था।
इस आंदोलन में हिन्दू महासभा और इसके कट्टर समर्थकों ने भारत छोड़ो आंदोलन का खुलकर विरोध किया। हिंदू महासभा का कहना था कि यह हिंदुओं के सही अधिकारों के लिए नहीं है। उन्होंने ऐलान कर दिया था कि कोई भी हिंदू इस आंदोलन में महात्मा गांधी का साथ नहीं दे। इसके बाद संगठन के पदाधिकारियों ने आंदोलन में शामिल होने से इनकार कर दिया।
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संघ ने भी नहीं दिया था आधिकारिक समर्थनराष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भी भारत छोड़ो आंदोलन को आधिकारिक समर्थन नहीं दिया। इनका मानना था कि सत्ता की धुरी केवल हिंदू होने चाहिए। ये पहले हिंदुओं को संगठित कर आजादी लेना चाहते थे। दिसंबर 1940 में महात्मा गांधी अंग्रेजों के खिलाफ सत्याग्रह चला रहे थे, तब जैसा कि गृह विभाग की ओर से उपनिवेशवादी सरकार को भेजे गए एक नोट से पता चलता है कि संघ नेताओं ने गृह विभाग के सचिव से मुलाकात की थी और उनसे यह वादा किया था कि वे संघ के सदस्यों को अधिक से अधिक संख्या में सिविल गार्ड के तौर पर भर्ती होने के लिए प्रोत्साहित करेंगे।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने भी इस आंदोलन का विरोध किया। दूसरे विश्व युद्ध में ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमरीका, सोवियत संघ और चीन नाजीवादियों के खिलाफ युद्ध कर रहे थे। सोवियत संघ से विचाराधारात्मक समानता के कारण ब्रिटेन सरकार की मदद की थी, क्योंकि वह जर्मनी के विरोध में युद्ध कर रहे थे। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी इसलिए भी ब्रिटिश सरकार का समर्थन कर रही थी, क्योंकि वह अपनी पार्टी पर लगे बैन को साथ देकर हटवाना चाहती थी और अंत में उसे इसका फायदा भी मिला।